शायद यही सब समझकर मौजूदा “कोरोना वायरस” के संकट के दौर में सरकार और देश की जनता ने अगर किसी पर भरोसा किया है तो वह “किराणा” वालों अर्थात बनियों पर किया है. बोलचाल की भाषा में किराणा, किरयाना, पंसारी, परचून की दुकान वालों को बनियां ही बोलते है. आज देश में सारा दारोमदार इन्ही बनियों पर है. सिर्फ इन्ही की दुकानें खुली है. कई तो यहां तक दावा कर रहे है कि अगर किसी के “अच्छे दिन आएं है” तो बनियों के आएं है.
जहां तक भरोसे की बात है उसका प्रमाण है अजमेर में केसरगंज स्थित परचून की दुकान जहां बोर्ड लगा है “चोर बनिया” और मजे की बात देखिये इस दुकान पर सबसे ज्यादा ग्राहकों की भीड होती है. अजमेर के दरगाह शरीफ आने वाले जियारिनों का यह हाल है कि उनमें से अधिकांश जब तक “सूगल्यां” (गंदा) हलवाई से सोहन हलवा न खरीद ले, उनका मन नही भरता, ठीक वैसे ही जैसे कानपुर जाकर लोग “ठग्गू के लड्डू” न खरीद ले, भलेही वहां लिखा है कि “ऐसा कोई सगा नही जिसको हमने ठगा नही”. अपने 2 विश्वास की बात है !
अत: अब बनियों को भी चाहिए कि वह विश्वास की इस परिक्षा में खरे उतरें.
शिव शंकर गोयल