क्या होगी निजी स्कूलों में फीस माफी…?

आपदा काल में आए आर्थिक संकट के दौरान संस्थानों को बनना चाहिए अभिभावकों का हित चिंतक
कहते हैं न कि मुसीबत अकेली नही आती, एक मुसीबत अपने साथ कई मुसीबतें लेकर आती है। कोरोना संक्रमण/महामारी के इस स्याह दौर में भी कई छोटी बड़ी अन्य समस्याएं पैदा हो रही हैं। अनेक तरह के संकट हैं जो आगामी जीवन पर बुरा प्रभाव डालेंगे।
एक मुद्दा इस बीच ये उठ रहा है कि कोरोना महामारी की वजह से lockdown हुए देश मे पेरेंट्स को राहत देने के लिए प्राइवेट/पब्लिक/मिशन स्कूल कम से कम तीन माह की फीस माफ करें।
*ये तीन माह कौन सा हो..??*
क्योंकि स्कूलों के सत्र जुलाई से जून तक माने जाते हैं (गर्मियों की छुट्टियां मिला कर) तो ऐसे में सारे स्कूल जून तक की फीस पहले ही ले लेते हैं।
अधिकतर तो ले ही लेते हैं, क्योंकि सबका फीस वसूलने का स्लैब इसी तरह बनाया हुआ होता है। जुलाई, अगस्त, सितंबर और अक्टूबर में एक एक महीने की फीस लेते हैं, इस तरह चार महीने की फीस जमा हो गई। फिर नवम्बर, दिसंबर, जनवरी और फरवरी में दो दो महीने की फीस एक साथ लेकर इन दूसरे चार महीनों में आठ माह की फीस ले ली जाती है। इस तरह जुलाई से फरवरी तक के आठ महीने में ही पूरी 12 महीने की फीस स्कूलों द्वारा पेरेंट्स से जमा करा ली जाती है।
कहीं कहीं स्टालमेंट्स के स्लैब अलग भी होंगे, मगर चालू सत्र की फीस एडवांस जमा करा ही ली जाती है।
क्योंकि, मार्च में एग्जाम और रिजल्ट आ जाते हैं, (बोर्ड के एग्जाम तो हो ही जाते हैं अप्रैल तक, भले रिजल्ट बाद में आए).. फिर गर्मियों की छुट्टी मई और जून में पड़ जाती है
तो छुट्टी में तो कोई पैरेंट फीस जमा कराने जाएगा नहीं। स्कूल भी मार्च में होने वाले फाइनल एग्जाम में बच्चे को तभी बैठने देते हैं, जब उसकी जून तक की पूरी फीस जमा होती है। मतलब स्कूल का कैलेंडर जुलाई से जून चलता है। इस बीच मार्च में एग्जाम होते हैं।
अब एग्जाम देना है तो फरवरी तक में ही पूरी फीस जमा कराओ जून तक की।
*अब यदि कोई स्कूल कह रहा है कि अप्रैल, may, जून की फीस माफ* तो मूर्ख बना रहा है, जबकि ये फीस वो ले चुका है। स्कूल को कहना चाहिये कि अगले सेशन, जो जुलाई से शुरू होगा, उस सत्र की जुलाई, अगस्त और सितंबर तीन माह की फीस नही ली जायेगी, तब कोई बात बने।
*हालांकि स्कूल फीस माफ नही करेंगे*
बड़े स्कूल के स्टाफ की तनख्वाह बड़ी होती है, स्कूल प्रबंधन यूँ चाहे तो अपनी जेब से स्टाफ को तनख्वाह दे सकते हैं, क्योंकि इन संस्थानों की हैसियत बड़ी होती है। ऐसे संस्थान अफोर्ड कर सकते हैं। ऐसी आपदा के समय यह इनका देश को आर्थिक योगदान माना जायेगा। मगर स्कूल ऐसा शायद ही करें..!! प्रबन्धन विशुद्ध व्यापारी हैं। खुद की जेब से तनख्वाह न देकर पेरेंट्स की जेब से ही निकलवाएंगे। जो स्कूल इंटरनॅशनल संस्थाओं के प्रबंधन के अधीन चलती हैं उनके पास तो अरबों रुपए का फंड है, वो चाहें तो फीस माफ कर सकती हैं। उन्हें अनुदान और दान दोनों ही इंटरनेशनल स्तर पर करोडों-अरबों रुपए का मिलता है, मगर ऐसी संस्थाएं तो पेरेंट्स को लूटने के लिए पहले ही बदनाम हैं। फिर ऐसी संस्थाओं को लगता है कि जो पेरेंट्स हमारे यहां बच्चों को पढ़ाने में सक्षम हैं, उनकी फीस माफ ही क्यों की जाए, बल्कि उन्हें तो निचोड़ा जाए। ऐसी संस्थाएं व संस्थान यदि इस आपदा की घड़ी में भी मध्यम वर्ग की आर्थिक स्थिति और मनः स्थिति को नही समझती, तो उनके चैरिटी व समाज हित मे किये जाने वाले दावों को खोखला ही समझा जाएगा।
बहरहाल अभी तो सिर्फ कुछ निजी यूनियन या राजनीतिक दलों ने फीस माफी की मांग उठाई है। पेरेंट्स तो इस मुद्दे पर खामोश हैं। पेरेंट्स की मजबूरी भी है, वो संस्थाओं व संस्थानों से बैर लेकर अपने बच्चे के भविष्य से खिलवाड़ नही कर सकते। ना जाने कब निष्ठुर संस्थाएं उनके बच्चे को किसी भी झूठे लांछन में स्कूल से बाहर का रास्ता दिखा दें। पेरेंट्स तो डर के मारे मांग नही उठाएंगे और खामोशी से फीस जमा करा देंगे। देखना तो ये है कि संस्थान व संस्था प्रबन्धन का ज़मीर जागता है या नहीं।
*होनी भी चाहिए फीस में कुछ राहत*
आखिर फीस में राहत क्यों न मिले..!! जब सारा देश कुछ न कुछ आर्थिक सहयोग महामारी के नाम पर देश को दे रहा है, तो ये संस्थान फीस में राहत देकर इस सहयोग में भागीदारी क्यों नही निभा सकते..!! जो बच्चे इन संस्थाओं के स्कूलों में पढ़ रहे हैं, उनमें से कुछ के पेरेंट व्यापारी होंगे, जिनके काम धंधे बंद पड़े हैं। कुछ बच्चों के पेरेंट्स प्राइवेट जॉब में होंगे, जिनकी तनख्वाहें कंपनियों ने बंद कर दी होंगी। कुछ बच्चों के पेरेंट्स सरकारी जॉब में होंगे, जिनकी 50 प्रतिशत तनख्वाह स्थगित कर दी गई, और कई कई हज़ार रुपए आपदा कोष में सहयोग के नाम पर तनख्वाह में से पहले ही काट लिए गए। कहने का तात्पर्य यह कि हर छोटा बड़ा, अमीर गरीब व्यक्ति जब प्रत्यक्ष या परोक्ष किसी भी तरह देश को योगदान दे रहा है, तो इन करोड़पति संस्थाओं को भी पहल करनी चाहिए कि आर्थिक मंदी झेल रहे पेरेंट्स को राहत दें।

-अमित टण्डन, अजमेर।

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