हाँ मैं छोटी सी कलम हूं

महेन्द्र सिंह भेरूंदा
अभिव्यक्ति का जन्म हूं,
छोटा सा मेरा आकार है ।
मैं सरस्वती का शस्त्र हूं,
सत्य मुझ में साकार है ।
आज विचलित हूं धरा पर,
क्यों चहू दिश हाहाकार है ।
तबतब लिखा है जबजब,
हुई व्यवस्थाएं तारतार है ।
दे नहीं सकू दिशा देश को,
तो मेरा जन्म ही बेकार है ।
लोभ लालच कुछ नही है,
कहू नृप मुझे का दरकार है ।
डर नही मुझे तो क्यों देखु,
कौन किसकी सरकार है ।
अभिव्यक्ति का जन्म हूं,
छोटा सा मेरा आकर है ।

मैं ना तो उनकी भाट थी,
और ना मैं इनकी दलाल हूं ।
तुम मुझे कुछ भी समझो,
मैं भारत माँ की लाल हूं ।
शब्दों में मेरे तल्ख तेवर,
मैं संविधान की ख्याल हूं ।
तुम्हारे हर प्रतिउत्तर का,
मैं अनसुलझा सवाल हूं ।
ना महत्व है मेरे विरोध का,
परन्तु सत्य की मैं ढाल हूं ।
कलम कुरेदेगी कारनामें,
हर गलत नीति का काल हूं ।
तुम ना समझो महत्व मेरा,
मैं मां भारती का भाल हूं ।
मैं ना तो उनकी भाट थी,
और ना मैं इनकी दलाल हूं ।
हाँ मैं छोटी सी कलम हूं ।
अभिव्यक्ति का जन्म हूं ।

महेन्द्र सिह भैरूंदा

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