सिद्धान्तप्रिय और गांधी वादी राजनेता मोरारजी देसाई

आजकल राजनीति में सिद्धांतों के पालन की बात सुनकर लोग हंसते हैं; पर 29 फरवरी, 1896 को जन्मे पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी भाई रणछोड़जी देसाई ने कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। गांधी जी के परम भक्त मोरारजी 1924 में अपनी सरकारी नौकरी को छोड़कर सविनय अवज्ञा आंदोलन में कूद पड़े। स्वाधीनता आंदोलन में सक्रियता के कारण उन्हें पांच वर्ष जेल में बिताने पड़े।
मोरारजी भाई अविभाजित बम्बई राज्य के मुख्यमंत्री रहे। इससे पूर्व वे 1937 में बालासाहब खेर की कैबिनेट में भी मंत्री थे; लेकिन उन्होंने वहां अपना घर नहीं बनाया। वे सदा किराये के मकान में ही रहे।
जब उनके मकान मालिक ने उन पर मुकदमा किया, तो सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर उन्हें मकान छोड़ना पड़ा। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री शरद पवार ने उन्हें किराये पर एक मकान आवंटित किया। कैसा आश्चर्य है कि इसके बाद भी उनके विरोधी उन्हें अमरीका और पूंजीपतियों का दलाल कहकर आलोचना करते रहे।
प्रधानमंत्री नेहरू ब्रिटिश प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित अपनी पुस्तकों की बिक्री का धन लंदन के बैंक में जमा करते थे। इस पर वित्तमंत्री मोरारजी ने उन्हें चेतावनी दी कि यह विदेशी मुद्रा कानून का उल्लंघन है, जिससे उन्हें जेल और अर्थदंड हो सकता है। अतः नेहरू जी को वह धन भारत में लाना पड़ा।
जब इंदिरा गांधी ने अपने दोनों अवयस्क पुत्रों राजीव और संजय को इंग्लैंड में शिक्षा हेतु भेजने के लिए शासन से विदेशी मुद्रा मांगी, तो वित्तमंत्री मोरारजी ने तत्कालीन कानूनों का हवाला देते हुए उनकी प्रार्थना अस्वीकार कर दी।
मोरारजी शराब के घोर विरोधी थे। एक बार ब्रिटिश प्रधानमंत्री के स्वागत समारोह में वे इसी शर्त पर शामिल हुए कि वहां शराब नहीं परोसी जाएगी। उनके मुख्यमंत्री काल में सोवियत नेता निकिता ख्रुश्चेव और बुल्गानिन जब मुंबई आये, तो वे अपने लिए शराब रूस से साथ ही लेकर आये।

बी एल सामरा “नीलम “
1975 में इंदिरा गांधी के इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनाव संबंधी मुकदमा हारने पर मोरारजी ने उन्हें त्यागपत्र देने को कहा; पर इंदिरा गांधी ने आपातकाल थोपकर मोरारजी सहित हजारों नेताओं को जेल में ठूंस दिया।
आपातकाल के बाद 1977 में जो सरकार बनी, उसमें उनके अनुभव को देखकर उन्हें प्रधानमंत्री बनाया गया। यद्यपि उस सरकार में अधिकांश कांग्रेसी ही थे, जो सदा कुर्सी के लिए लड़ते रहते थे। अतः वह सरकार अधिक नहीं चल सकी।
एक बार गृहमंत्री चरणसिंह और स्वास्थ्यमंत्री राजनारायण ने सार्वजनिक रूप से शासन की आलोचना की। यह मंत्रिमंडल के सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत के विरुद्ध था। अतः मोरारजी ने उनसे त्यागपत्र ले लिया। यद्यपि इससे जनता सरकार गिर गयी; पर उन्होंने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।
मोरारजी भय से कोसों दूर थे। प्रधानमंत्री रहते हुए एक बार जोरहाट में उनका विमान धरती पर टकरा कर उलट गया; पर उन्होंने अपना मानसिक संतुलन नहीं खोया। वे शान्त भाव से विमान से उतरे, अपने कपड़े ठीक किये और आगे बढ गये।
गीता में वर्णित स्थितप्रज्ञता उनके मन, वचन और कर्म में समायी हुई थी।
विदेशी कम्पनियों के विरोधी, लघु और ग्रामोद्योग के समर्थक, ‘भारत रत्न’ तथा पाकिस्तान के सर्वोच्च सम्मान ‘निशान–पाकिस्तान’ से अलंकृत मोरारजी का 10 अप्रैल, 1995 को 99 वर्ष की आयु में देहावसान हुआ । वे सच्चे अर्थों में गांधी वादी राजनेता थे ।
*125 वी पुण्यतिथि पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि* !🙏

आलेख प्रस्तुति
*बी एल सामरा नीलम*
पूर्व प्रबन्ध सम्पादक कल्पतरू हिन्दी साप्ताहिक

error: Content is protected !!