थोड़ा हँसकर बोल लिए क्या ,
कर दी चारों ओर मुनादी ।
प्यार हो गया ,प्यार हो गया ,
यह कहकर करवा दी शादी ।
सोचा था आज़ाद रहेंगे ,
आजीवन बनकर ब्रह्मचारी ।
समझ नहीं आया लोगों से ,
रोष करें या हो आभारी ।
घर गृहस्थी में ऐसे जकड़े ,
भूल गए हम सारी छकड़ी ।
उलझे भी तो ऐसे उलझे ,
जैसे हो जाले में मकड़ी ।
ऑफिस में अफ़सर का डंडा ,
घर में घरवाली की सत्ता ।
किसको व्यथा सुनाए अपनी ,
दोनों मधुमक्खी का छत्ता ।
दो बच्चे हैं , पर दोनों ही ,
अपनी माता की परछाई ।
दोनों ही भाषा बोलेंगे ,
मम्मीजी से पढ़ी – पढ़ाई ।
चलो बात अच्छी करते हैं ,
मस्ती का जीवन है भाई ।
चारों तऱफ ख़ुशी का आलम,
शायद मेरी नेक कमाई ।
बड़े भाग्य से ऐसी पत्नी ,
और मिले हैं प्यारे बच्चे ।
यह मज़ाक की बात नहीं है ,
मैं भी अच्छा , ये भी अच्छे ।
– *नटवर पारीक*, डीडवाना