ना इसकी कोई दवाई है ।
ऐ इश्क तेरे टक्कर की बीमारी पहली बार आई है ।
काम कर रहे हैं ,सब घर का- मकान मालिक और मालकिन ,
मगर मुफ्त में पगार ले रही ,
काम वाली बाई है ।
ऐ इश्क तेरे टक्कर की बीमारी पहली बार आई है ।
काम धंधे का है मीटर डाउन,
फुल ड्यूटी है ,पाजामा और गाउन
अलमारी में बंद पड़े, हंस रहे पेंट शर्ट और टाई है ।
ऐ इश्क तेरे टक्कर की बीमारी पहली बार आई है ।
रूक गये सारे सैर सपाटे,
बंद हो गई सब विदेश यात्रा-
अब तो चारों धाम ही,
घर की लुगाईं है ।
ऐ इश्क तेरे टक्कर की बीमारी पहली बार आई है ।
बंद हो गए सारे होटल मयखाने, ना कहीं चाट ना कहीं मिठाई है,
घर की दाल रोटी में रहो खुश,
ये ही अब सबकी रसमलाई है ।
ऐ इश्क तेरे टक्कर की बीमारी पहली बार आई है ।
अपने हाथों को हम धोएं,
बार बार,मुंह पर लगाएं मास्क
घर मौहल्ला शहर रखें साफ़, इसमें सबकी भलाई है,
ऐ इश्क तेरे टक्कर की बीमारी पहली बार आई है ।
हम सब अपने घरों में रहें,
निरोग और सुरक्षित ,
सबमिल कर करें मुकाबला
इस महामारी का ,
ऊपरवाले से हम करें दिलमें दुआ,
जब जब भी दुनिया पर कोई
भारी मुसीबतआई हैं,
उसने ही रहमत बरसाईं है ।
ऐ इश्क तेरे टक्कर की बीमारी, पहली बार आई है ।
प्रस्तुति
*बी एल सामरा नीलम*
पूर्व शाखा प्रबंधक
भारतीय जीवन बीमा निगम मंडल कार्यालय अजमेर