कोरोना चाहे दौड़ लगाए, मैं तो अब बस चलूँगा

प्रकृति के आगे बेबस हूं, अदृश्य विषाणु से मैं स्तब्ध हूं,
तुम चाहे अपनी शान बढ़ाओ,
बिना शान के जी लूंगा
तुम चाहे अब दौड़ लगाओ!
मैं तो बस अब चलूंगा!!

कोरोना काल में पता चला,
कितनी सी है मेरी हस्ती
परम शक्ति की भक्ति में
मैं तो बस रत रहूंगा
तुम चाहे अब दौड़ लगाओ!
मैं तो बस अब चलूंगा!!

क्षणभंगुर है जीवन अपना,
टूट गया अब उड़ता सपना,
तुम चाहे अब नाम कमाओ!
मैं तो मेरे अभिमान का कत्ल करूंगा!!
तुम चाहे अब दौड़ लगाओ!
मैं तो बस अब चलूंगा!!

सिमट जाएगी चादर अंधेरी,
नया सवेरा फिर आएगा,
तुम चाहे मद में खो जाना,
मैं तो इस कालखंड को अब ना बिसराऊंगां,
तुम चाहे अब दौड़ लगाओ!
मैं तो बस अब चलूंगा!!

अनिल कुमार कालानी
किशनगढ़ अजमेर राजस्थान

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