हास्य-व्यंग्य
ध्यान रहे, आगे की सारी कार्रवाही, मसलन मेरी मूर्ती स्थापना, मंदिर बनवाना, पूजा-पाठ, आरती-कीर्तन, कथा-कहांनिया, व्रत रखना आदि सभी काम संतोषी माता के प्रकट होने के समय हुए थे, वैसे ही करने है. कोई बॉलीवुड का बंदा चाहे तो संतोषी माता के अवतार की तर्ज पर मौका लगते ही कोरोना माता की फिल्म भी बना सकता है.
इतना कह कर माता तो अंतरध्यान होगई. अब उनकी आज्ञानुसार वाट्सअप, फेसबुक आदि पर मैसेज भेजे जाने लगे. जिन लोगों ने माता के आदेश को माना उनमें से ही :-
लॉकडाउन के दौरान एक किरयानेवाला चीजों के भावों में मनमानी करने लगा.
एक मेडीकल दुकानवाला, जो कोरोना से पहले बुझा बुझा सा रहता था, के पौ बारह होगए. उसकी दौलत में काफी ईजाफा होगया.
दुकानें खुलते ही एक भक्त, सोश्यल डिसटेन्स के नियम को जेब में रख कर भीड में घुस गया और सोमरस की एक बोतल खरीदने में कामयाब रहा भले ही इसके लिए उसे दूने पैसे देने पडे हो.
एक को हाथ धोने का फोबिया होगया. अब वह आयाराम-गयाराम की तर्ज पर बार बार हाथ धोने वाशरूम जाने लगा.
एक को बीस लाख करोड का सन्निपात होगया. अब वह नींद में भी यही दोहराता रहता है.
इसके विपरीत जिन लोगों ने माता के इस आहवान की अनदेखी की उनमें से
एक मजदूर अपने परिवार के साथ जिस ट्रेन मे सवार था वह रेल मुंबई से चली लेकिन गोरखपुर की बजाय राउरकेला पहुंच गई यानि जाते थे जापान पहुंच गए चीन, समझ गए ना.
एक व्यक्ति का रेस्टोरेंट का धंधा लडखडा गया.
एक व्यक्ति था तो शोले पिक्चर के हरीराम की बिरादरी का ही लेकिन हजामत की दुकानें बंद होने से उसके अच्छे दिन न जाने कहां खोगए.
एक व्यक्ति जैसे-तैसे गांव तो पहुंचा लेकिन वहां भी उसे मनरेगा में काम नही मिला.
एक निजी अस्पताल चलानेवाले के अस्पताल के 80 प्रतिशत बैड्स पर प्रशासन ने कब्जा कर लिया.
इति श्री रेवा खंडे कोरोना माता वृतांत समाप्त.
शिव शंकर गोयल