आज हिंसा की ज्वाला में झुलसते हुए सम्पूर्ण विश्व को आतंकवाद, अशांति, युद्ध की विभिषिका एवं अनुशासनहीनता और अव्यवस्था से बचाने का एकमात्र उपाय अहिंसा ही है । पूरेे देश के दूरस्थ गांवों में हजारों किलोमीटर की पदयात्रा कर यह संदेश फैलाने वाले जैन सन्त आचार्य महाप्रज्ञ का जन्म14 जून, 1920 (आषाढ़ कृष्ण 13) को राजस्थान के झुंझनू जिले के ग्राम टमकोर में हुआ था ।
बचपन में इनका नाम नथमल था। पिता श्री तोलाराम चोरड़िया का देहांत जल्दी हो जाने से इनका पालन माता श्रीमती बालू ने किया । धार्मिक स्वभाव की माताजी का बालक नथमल पर बहुत प्रभाव पड़ा । अतः माता और पुत्र दोनों ने एक साथ 1929 में जैन संत श्रीमद् कालूगणी से दीक्षा ले ली ।
श्रीमद् कालूगणी की आज्ञा से इन्होंने आचार्य तुलसी को गुरु बनाकर उनके सान्निध्य में दर्शन, व्याकरण, ज्योतिष,
आयुर्वेद,मनोविज्ञान, न्यायशास्त्र, जैन, बौद्ध और वैदिक साहित्य का अध्ययन किया । संस्कृत, प्राकृत तथा हिन्दी पर उनका अच्छा अधिकार था। वे संस्कृत में आशु कविता भी करते थे। जैन मत के सर्वाधिक प्राचीन ग्रन्थ ‘आचरांग सूत्र’ पर उन्होंने संस्कृत में भाष्य लिखा। उनकी प्रवचन शैली भी रोचक थी । इससे उनकी प्रसिद्धि बढ़ने लगी।
उनके विचार और व्यवहार को देखकर आचार्य तुलसी ने वर्ष 1965 में उन्हें अपने धर्मसंघ का निकाय सचिव बनाया। इस प्रशासनिक दायित्व का समुचित निर्वाह करने पर उन्हें 1969 में युवाचार्य घोषित किया गया तथा वर्ष 1978 में उनको महाप्रज्ञ घोषित किया गया । वर्ष 1998 में आचार्य तुलसी ने अपना पद विसर्जित कर इन्हें जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के दसवें आचार्य पद पर अभिषिक्त कर दिया ।
आचार्य महाप्रज्ञ ने अपने गुरु आचार्य तुलसी द्वारा 1949 में प्रारम्भ किये गये ‘अणुव्रत आंदोलन’ के विकास में भरपूर योगदान दिया । 1947के बाद जहां एक ओर भारत में भौतिक समृद्धि बढ़ी, वहीं अशांति, हिंसा,दंगे आदि भी बढ़ने लगे। वैश्वीकरण भी अनेक नई समस्याएं लेकर आया ।
आचार्य जी ने अनुभव किया कि इन समस्याओं का समाधान अहिंसा ही है । अतः उन्होंने 2001 से 2009 तक ‘अहिंसा यात्रा’ का आयोजन किया । इस दौरान लगभग एक लाख कि.मी की पदयात्रा कर वे दस हजार ग्रामों में गये । लाखों लोगों ने उनसे प्रभावित होकर मांस, मदिरा आदि को सदा के लिए त्याग दिया ।
भौतिकवादी युग में मानसिक तनाव, व्यस्तता व अवसाद आदि के कारण लोगों के व्यक्तिगत एवं पारिवारिक जीवन को चौपट होते देख आचार्य जी ने साधना की सरल पद्धति ‘प्रेक्षाध्यान’ को प्रचलित किया । इसमें कठोर कर्मकांड, उपवास या शरीर को अत्यधिक कष्ट देने की आवश्यकता नहीं होती । किसी भी अवस्था तथा मत, पंथ या सम्प्रदाय को मानने वाला इसे कर सकता है। अतः लाखों लोगों ने इस विधि से लाभ उठाया।
आचार्य जी प्राचीन और आधुनिक विचारों के समन्वय के पक्षधर थे। वे कहते थे कि जो धर्म सुख और शांति न दे सके, जिससे जीवन में परिवर्तन न हो, उसे ढोने की बजाय गंगा में फेंक देना चाहिए। जहां समाज होगा, वहां समस्या भी होगी; और जहां समस्या होगी, वहां समाधान भी होगा। यदि समस्या को अपने साथ ही दूसरे पक्ष की दृष्टि से भी समझने का प्रयास करें, तो समाधान शीघ्र निकलेगा। इसे वे ‘अनेकांत दृष्टि’ का सूत्र कहते थे।
आचार्य जी ने प्रवचन के साथ ही प्रचुर साहित्य का भी निर्माण किया। विभिन्न विषयों पर उनके द्वारा रचित लगभग 150 ग्रन्थ उपलब्ध हैं। उन्होंने सम्पूर्ण राष्ट्र के विभिन्न भागों में पदयात्रा कर अहिंसा, प्रेक्षाध्यान और अनेकांत दृष्टि के सूत्रों का प्रचार किया। उन्हें अनेक उपाधियों से भी विभूषित किया गया । आचार्य महाप्रज्ञ जी को इंदिरागाँधी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार भी प्रदान किया गया । वैसे इस महान विभूति को उपाधि,अलंकरण अथवा पुरुस्कार की दरकार नहीं थी मगर कृतज्ञ राष्ट्र एवं समाज ने श्रद्धा पूर्वक इस महापुरुष की समूची मानवता के प्रति उनके महान योगदान के प्रति सम्मान प्रकट करते हुए अपने आप को धन्य महसूस किया ।
*आचार्य महाप्रज्ञ जन्मस्थली टमकोर व समाधि स्थल सरदारशहर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने हेतु संसद में उठी मांग*
सदन में पर्यटन मंत्रालय की अनुदान मांगों पर हुई चर्चा में भाग लेते हुए *चूरू सांसद राहुल कसवा* ने कहा कि पर्यटन की दृष्टि से विकसित किए जाने के लिए चुरू लोकसभा क्षेत्र में अनेकों सम्भावनायें हैं, जिन्हें चिन्हित किया जाना आवश्यक हैं।
सांसद महोदय ने भारत सरकार द्वारा बजट 2020-21 के तहत पर्यटन मंत्रालय के लिए 2500 करोड़ रूपये के बजट के प्रावधान को संज्ञान में लाते हुए कहा इसमें से 207 करोड़ रूपये प्रसाद योजना के लिए दिया जा रहा हैं। प्रसाद योजना के तहत धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थानों को सर्किट के तौर पर विकसित किये जाने का कार्य किया जाना हैं। चुरू लोकसभा क्षेत्र में भी ऐसे अनेकों धार्मिक स्थल हैं जिन्हें विकसित किया जा सकता हैं।
सांसद महोदय ने गोगामेडी गोगाजी व गुरु गोरक्षनाथ जी की जन्मस्थली व समाधी स्थल, सालासर, खाटू श्याम जी समेत *जैन धर्म के आचार्यश्री तुलसी व आचार्यश्री महाप्रज्ञ के स्थल सरदारशहर व टमकोर* को भी एक सर्किट के तहत विकसित किये जाने की मांग रखी, ताकि सभी धर्मावलम्बियों को इससे बेहतरीन सुविधाएँ मिल सकें।
एक दशक पूर्व इस महापुरुष द्वारा दुनियां को अलविदा कहने के साथ महामना आचार्य जी की जीवन यात्रा पूरी हुई और
*नौ मई, 2010 को जिला चुरू (राजस्थान) के सरदारशहर में हृदयाघात से उनका निधन हो गया । इस वर्ष देश भर उनका शताब्दी वर्ष श्रद्धा पूर्वक मनाया जा रहा है* *।
*शताब्दी वर्ष के अवसर पर इस महापुरुष महामना आचार्य महाप्रज्ञ जी को दिल की तमाम गहराइयों से श्रद्धांजलि नमन वंदन अभिनंदन !*
आलेख प्रस्तुति सौजन्य
*बी एल सामरा नीलम*
पूर्व प्रबन्ध सम्पादक कल्पतरू हिन्दी साप्ताहिक एवं मगरे की आवाज पाक्षिक पत्र
सेवानिवृत शाखा प्रबंधक भारतीय जीवन बीमा निगम मंडल कार्यालय अजमेर