…तब बचेंगे वही जिनकी भाषा शुद्ध व संस्कारी होगी

मेरे ब्लॉग “क्या यूट्यूब न्यूज चैनल वाले फर्जी पत्रकार हैं?” पर एनसीईआरटी के असिस्टेंट प्रोफेसर और इंटरनेशनल टेनिस कोच श्री अतुल दुबे की प्रतिक्रिया

अतुल दुबे
यदि मैं किसी
1-समसामयिक घटना
2- दिन विशेष
3- व्यक्ति विशेष
पर
मेरे मौलिक विचार थोड़े बहुत शोध व
कुछ सांख्यिकीय आँकड़ों के साथ लिख कर
समाज में उक्त तत्व की उपादेयता के साथ
किसी सोशल नेटवर्किंग साईट पर अपलोड करता हूँ
तो यह
किस श्रेणी मे आयेगा…?

*ब्लॉग*
या
*ई पत्रकारिता*

क्योंकि

*ब्लॉग*

शब्द का जन्म पीटर मैर्होल्ज
ने मज़ाक़ मज़ाक़ में किया था
जब
*वर्ल्ड वाईड वैब*
पर लॉग इन कर कुछ कंटेंट टाईप किया
तो
WWW. पर लॉग इन करने को
कहा गया
वैब्लॉग

जो कालांतर में ब्लॉग रह गया

*तेजवानी सर*

मेरी दृष्टि से
अगले चार पॉंच सालों में

मंथन इतनी तेज गति से हो चुका होगा और
पुन: जैसे
पंत, निराला, गुप्त, दिनकर, वर्मा, बच्चन, गॉंधी, नेहरू, गोलवलकर, विनोबा भावे आदि के द्वारा प्रतिदिन की दैनंदिनी लिखी जाती थी जो कालांतर में उनकी जीवनी का रूप लेकर छपीं

उसी प्रकार
उपरोक्त वर्णित कथ्य के अनुसार

जैसे

आपके लेख पर मैनें अभी अपने मौलिक विचार लिखे उसी प्रकार की
ब्लॉगिंग का अस्तित्व बचा रहा जायेगा

उस स्थिति में
टीवी चैनल से समाचार सुनकर
अपने चैनल पर अपलोड कर के
ढेर सारी व्याकरणीय अशुद्धियों
व ग़ैर संसदीय शब्दों के साथ लिखे गये लेख को पढ़ने वालों की संख्या इकाई या दहाई से ज्यादा नहीं होगी

तब बचेंगे वही
जिनकी भाषा शुद्ध व संस्कारी होगी
जिनका व्याकरणीय ज्ञान स्तरीय होगा
जो तत्वान्वेषी के साथ साथ
ध्रुवीकरण से बचते हुए अपनी मूल भावना लिखेंगे

यानि की
फिर से
कुकुरमुत्तों के जंगल में
पुराने वटवृक्ष दूर से ही नजर आने लगेंगे

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