लपटया पंडितजी की स्कूल !

व्यंग्य
पचास के दशक में अजमेर शहर में जो पाठशालाएं थी वह अधिकतर कहलाती तो अध्यापकों के नाम से थी मसलन उमरावजी की स्कूल, प्रहलादजी की स्कूल आदि लेकिन उनकी पहचान वहां विद्यार्थियों को मिलने वाले दंड से भी की जाती थी जैसे जयनारायणजी की स्कूल चूट्या यानि चिकोटीभरने वाले मास्साब के नाम से जानी जाती थी तो प्रहलादजी स्कूल में डंडे से पिटाई होती थी तो वह डंडेवाली स्कूल के नाम से जानी जाती थी. यानि दंड का अपना महत्व था. इन्ही में एक स्कूल लपट्या पंडितजी की भी थी.

शिव शंकर गोयल
यह स्कूल अजमेर के अंदरूनी, घनी आबादी वाले ईलाकें में एक गली में स्थित था. अन्य स्कूलों की तरह ही यह भी अध्यापन के मामलें में ‘वन मेन शो’ थी. मास्’साब का नाम भी वैसे तो कुछ और ही था लेकिन सब उन्हें लपटया पंडित ही कहते थे. यह नाम क्यों और कैसे पडा यह आज तक रहस्य ही है हां अब सीबीआई इसकी जांच करें तो कुछ पता लग सकता है.
उस समय इस स्कूल में भर्ती होने के लिए मास्’साब को सवा रू. ओैर एक नारीयल देना पडता था. यह स्कूल पहाडोंवाली स्कूल कहलाती थी. ‘पहाडोंवाली स्कूल’ नाम इसलिए पडा कि इसमें पढनेवालें बच्चें रोजाना सामूहिकरूप स्वर में जोर-जोर से पहाडें यानि टेबल्स ऊंचे स्वर में बोल बोलकर याद किया करते थे जिन्हें पास-पडौसवालें भी घर बैठे आसानी से सुन सकते थे. इस पाठशाला में कभी कभी दिलचस्प नजारा देखने को मिल जाता था मसलन कभी 2 घूमते-फिरते बंदर भी आकर कक्षा मे बैठ जाते थे.

पंडितजी कभी कभी हमें इमला, निबंध इत्यादि भी घर से लिखकर लाने को देते थे. एक बार उन्होंने हमें गाय पर निबंध लिखकर लाने को दिया. जब पंडितजी ने उनको देखा तो वह मेरे सहपाठी रामू से बोले कि यह निबंध तो तुम्हारें डैडी का लिखा हुआ मालुम पडता है ? तो रामू ने कहा कि लिखा तो मैंने ही है, डैडी तो सिर्फ बोल रहे थे.
हर शनिवार को दोपहर की खाने की छुटटी के बाद ‘ऐसेम्बली’-कृपया इसे पढकर आप गलत न समझ जाय. यह वह ऐसेम्बली थी जहां बिलकुल शांति रहती थी, जिसमें सभी बच्चों को एक गोल घेरे में बैठा दिया जाता औेर मास्’साब बीच में बैठकर उनके बस्तें अपने कब्जें में कर लेते थे. इसके बाद कभी शिक्षाप्रद कहानियां सुनाई जाती और कभी साधारण ज्ञान, गणित इत्यादि पर आधारित प्रश्न पूछे जाते और जो विद्यार्थी फटाफट उत्तर बता देता उसे तत्काल उसका बस्ता लौटाकर घर जाने की छुटटी देदी जाती.
ऐसे ही एक शनिवार को हमारी ऐसेम्बली हो रही थी. पंडितजी हमें बकरी और चरवाहें की कहानी सुना रहे थे. जिसके अनुसार एक चरवाहें के पास भेड-बकरियों का रेवड था. उसमें एक बकरी इधर उधर झाडियों में मुंह मारने के चक्कर में अकसर अपने झुन्ड से बिछुड गई. चरवाहें ने तंग होकर एक टहनी में घास लपेटकर उसे बकरी के गले में इस तरह बांध दिया कि घास उसे सामने दिखती तो रहे लेकिन वह उसे खा नही सके. इस तरह वह घास के लालच में आगे बढती रहती. इस बात को जब आज लोग पढते है तो सोचते है कि कही यही कहानी हमारे देशके नेताओं के बचपन के पाठयक्रम में तो नही थी जो देशकी जनताको गरीबी हटाओ, समृध्द भारत आदि झांसें देते रहते हैं.
उसी रोज की बात है थोडी देर बाद मास्’साब ने गणित का सवाल किया. उन्होंने मेरे दोस्त छगन से अगला सवाल पूछा कि अगर मैं तुम्हारें पिताजी को पांच सौ रू. दूं तो पांच प्रतिशत ब्याज सहित तीन साल बाद वह मुझे कितने रू. लौटाएंगे ? इस पर छगन कुछ नही बोला तो मास्’साब ने उसे कहा कि तीन साल से पढ रहे हो और इतना भी नही जानते ? तो छगन बोला मास्’साब ! मैं तो जानता हूं लेकिन आप मेरे पिताजी को नही जानते, वह आपको एक पैसा भी लौटानेवाले नही हैं.
एक बार पंडितजी ने हमसे पूछा कि एक आदमी के छः अंगुलियां थी. लोग उसे मांगीलाल कहते थे. बताओ क्यों ? गोलें में बैठे लडकें जब कोई जवाब नही दे सके तो उन्होंने स्वयं नेही बताया कि चूंकि उसका नाम मांगीलाल था इसलिए उसे मांगीलाल कहते थे. इस प्रश्न के बाद उन्होंने हमसे पूछा कि अच्छा बताओ ‘अ’ के बाद कौनसा अक्षर आता है ? तो एक लडके ने उत्तर दिया कि मास्’साब सभी अक्षर ‘अ’ के बाद ही आते हैं. यह सुनकर पंडितजी बहुत खुश हुए.
ऐसी ऐसेम्बली में कई बार मास्’साब हमें पंचतंत्र इत्यादि की कहानियां जैसे कछुआ औेर खरगोश, बाप,बेटा और गधे की सवारी, बंदर और मगरमच्छ इत्यादि भी सुनाते और उसके अंत में पूछते कि तुम्हें इनसे क्या शिक्षा मिलती हैं ?
एक बार उन्होंने हमें चींटियों की कहानी सुनाई. एक गोदाम में शक्कर का ढेर लगा हुआ था. वहां एक चींटी आई औेर एक दाना लेकर चली गई. इसी तरह एक के बाद एक कई चांटियां आई और शक्कर का दाना उठाकर चलदी. कुछ देर बाद इस कतार में एक और चींटी आई. उसने शक्कर को सूंघा और बिना कुछ लिए वापस चलदी. बताओ क्यों ? इस पर एक बच्चें ने बताया कि सा’बजी उस चींटी के कमर में लचक आगई होगी -इस बीमारी को आजकल स्लिप डिस्क कहते है जिसे ठीक कराने के लिए प्रा्रयवेट हास्पीटल के डाक्टर पहले तो अपनी फीस वसूलते है फिर अपने किसी मित्र को ऑबलाईज्ड करने हेतु सैकिंड ऑपीनियन के लिए मरीज को उसके पास भेजते है उसके बाद मरीज के तरह तरह के टैस्ट कराते है फिर ईलाज के नाम पर हजारों रू ऐंठ लेते है-जबकि पहले ऐसी बीमारी घर की बुजुर्ग महिलाएं मामूली ईलाज से ही ठीक कर देती थी.
एक बार मास्’साब हमें हिन्दी में एक दूसरें के विरूद्ध शब्दों के बारें में बता रहे थे. उन्होंने कई उदाहरण देते हुए हमें बताया जैसे ‘सुख-दुख’, ‘सर्दी-गर्मी’, ‘रात-दिन’, ‘काला-गोरा’ इत्यादि होते है ऐसे ही और उदाहरण देने के लिए कहा तो हमारा एक सहपाठी झट से बोल पडा सा’ब ! ‘पति-पत्नि’. यह सुनकर पंडितजी मुस्कराने लगे.
ऐसेही एक मौकें पर मास्’साब ने हमसे पूछा कि ऐसा कोई वाक्य बताओ जो दफतर में बाबू, अदालत में अपराधी और क्लास में विद्यार्थी सबसे ज्यादा इस्तैमाल करते हो. जब कुछ देर तक कोई नही बोला तो उन्होंने मेरे एक सहपाठी की ओर ईशरा करके पूछा तो उसने खडे होकर जवाब दिया ‘मुझे पता नही’ यह सुनकर मास्’साब ने उसे शाबाशी दी और कहा बिलकुल ठीक !
समसामयिक महत्व की एक कहानी और, एक बार एक आदमी अपनी बीबी के कहने पर पडौस की दुकान पर नारियल खरीदने गया. यह उन दिनों की बात है जब नारियल 5-6 आनें में मिल जाता था. घरके पास ही जो किरयानें की दुकान थी उस दुकानदार ने नारीयल की कीमत छः आनें बताई तो उस व्यक्ति ने पूछा कि इससे सस्ता कहां मिल सकता है तो दुकानदार ने उसे किरयाने के बाजार जाने हेतु कहा. उस व्यक्ति ने वहां जाकर नारीयल की कीमत पूछी तो व्यापारी ने बताया कि चारआने का एक, अधिक सस्ता मिलने के चक्कर में वह थोक बाजार में चला गया तो पता पडा कि वहां एक नारीयल की कीमत दो आने ही हैं. अबतो उसका लालच बढता ही गया ओैर उसने इससे भी सस्ते होने की बात की तो उसे बताया गया कि जंगल में लगे पेड पर उसे मुफत में ही नारीयल मिल सकता है तो हुलसा हूलसा वह जंगल में पहुंचकर एक पेड पर चढ गया और एक नारीयल को पकडकर खैंचने लगा तो उसके पैर फिसल गए और वह नारीयल के सहारे पेड पर लटका रह गया.
अबतो वह ‘बचाओ बचाओ’ की आवाजें लगाकर चिल्लाने लगा. संयोग से उसी समय एक उॅट सवार उधर से निकल रहा था. उस व्यक्ति ने उस उॅट सवार से कहा कि मुझे बचाओ मैं तुम्हें ढेरसारे पैसे दूंगा तो वह सवार तैयार होगया लेकिन जैसेही उसने पेड के नीचे आकर उस व्यक्ति के पांव पकडे उसका उॅट बिदक कर नीचे से निकल गया. इसी तरह पहले एक घोडेंवाला और फिर एक गधेवाला वहां आया औेर उनके साथ लटक गया. अब सभी लोगों ने उस व्यक्ति को कहा कि तुम नारीयल को छोडना मत, उल्टे हम तुम्हें पैसे देंगे. वह आदमी लालची तो था ही अति उत्साह में आकर दोनों हाथों को फैलाकर बोला क्या इतने पैसे ? तभी सारे लोग धडाम से नीचे गिरे.
एक बार पंडितजी ने हमारे को एक पहेलीनुमा चुटकुला सुनाया. एक बार उनके एक मित्र दिल्ली के सुन्दरनगर स्थित चिडियाघर देखने गए. वहां एक जगह उन्होंने क्या नजारा देखा कि एक बाडें में बहुतसे जानवर खडे है और गधे के अलावा सभी हंस रहे है. संयोग की बात कि उसी मित्र को दो रोज बाद फिर वहां जाना पडा. इस बार उसने देखा कि बाकी जानवर तो चुपचाप खडे है लेकिन वह गधा हंस रहा हैं. यह बात सुनाकर पंडितजी ने हमें पूछा कि बताओ बच्चों ! ऐसा क्यों हुआ ?
जब हममें से कोई नही बता पाया तो उन्होंने ही कहा कि उनके उस मित्रने चिडियाघर के परिचायक से पूछा कि मैं दो रोज पहले आया था तो गधे के अलावा सभी हंस रहे थे और आज आया तो गधा अकेला हंस रहा है, क्या बात है ? इस पर परिचायक ने बताया कि मैंने दो रोज पहले इनको एक चुटकुला सुनाया था जिसे सुनकर बाकी जानवर तो उसी समय हंस दिए लेकिन गधे को आज समझ में आया है इसलिए वह अब हंस रहा हैं.
मास्’साब कभी कभी पहेलियां भी पूछते थे. मसलन एक बार उन्होंने हमसे पूछा कि चीनी में रेत मिल जाय तो वह आसानी से कैसे अलग होगी ? इस पर हमारें एक सहपाठी ने बताया कि साब ! इसको चीटियों के बिल के पास डालदो. चीटियां चीनी चीनी ले जायेगी ओैर रेत वही छूट जायेगी, किसी और को कोई चिंता करने की जरूरत नही हैं.
हमारें मास्’साब ‘शेर-बकरी और घास’ की यह पहेली भी खूब पूछते थे. एक किसान को यह तीनों चीजें लेकर नदी पार करनी थी. नाव में उसके साथ कोई सी एक चीज जा सकती थी. अगर वह पहले घास लेजाता है तो पीछे से शेर बकरी को खा जायेगा और अगर किसान शेर लेजाता है तो बकरी सारा चारा चट कर जायेगी जैसे बिहार में असरदार लोग भैंस का चारा चट कर गए थे. अब किसान क्या करें ? वह पहले बकरी को परले पार लेजाकर छोडता है और वापस आकर शेर को लेजाकर छोड आता है और बकरी को वापस लेआता है. फिर पहले घास और अंत में बकरी को लेजाता हैं. इस तरह वह तीनों का हित देखता है.
एक और पहेली वह अकसर पूछा करते थे. ‘दो मां दो बेटी, चली बाग को जाय, तीन नींबू लेलिए कितने कितने खाय?’ हमारें लिए यह बडी जटिल समस्या थी. चार महिलाएं और नींबू सिर्फ तीन, परन्तु हमारे मास्’साब इसे आसानी से सुलझा देते थे. कहते, महिलाएं तीन ही हैं. कहने.सुनने में चार हैं. एक लडकी, उसकी मां और उसकी नानी. मतलब दो मां है और दो ही बेटियां है, तीनों को एक एक नींबू मिल जायेगा. मास्’साब अकसर कहा करते थे कि अगर कोई समस्या है तो उसका समाधान भी हैं. उनका कहा आजभी उतना ही प्रासंगिक है. जितना उस समय था.
एक बार उन्होंने हमें एक बहुत ही दिलचस्प किस्सा, जिसमें पहेली भी शामिल थी, सुनाया. एक बार एक गांव में एक जमींदार की मृत्यु होगई. अपनी वसीयत में वह लिख गया कि मेरे पास जो 19 ऊंट है उन्हें ऐसे बांटा जाय कि आधे मेरी पत्नि को, 1/4 मेरे बेटे को और 1/5 मेरी बेटी को मिल जाय. कुछ दिनों बाद गांव पंचायत बैठी और बहुत बहस हुई. धरने, वाकआउट भी हुए लेकिन नतीजा कुछ नही निकला. इनमें से कुछ लोग, जो खाप पंचायत के नाम पर अपनी मनमानी करते थे औेर खुदको कानून से उपर समझते थे, मरने-मारने पर उतारू होगए, कुछ ऊंटों को काटने-पीटने की बातें करने लगे. जब गांवकी संसद यानि पंचायत और एक्जीक्यूटिव -पंच,प्रधान,पटवारी- किसी से भी कुछ नही हुआ तभी संयोग से एक उॅट सवार उधर से निकला. उसने पूछा कि मामला क्या है ? पंचों ने बताया तो उसने कुछ सोचा और फिर बोलाकि सारें ऊंटों को यहां लाओ, फिर उसमें अपना एक ऊंट मिलाकर बोला कि अब कुल कितने ऊंट हुए ? लोगों ने गिने कुल बीस थे. उसने आधे यानि दस जमींदार की पत्नि को 1/4 यानि 5 उसके लडके को और 1/5 अर्थात 4 उसकी लडकी को सौंप दिए. बाकी रह गया एक ऊंट जिसे वह लेकर आया था, वही लेकर सबको राम राम कहता हुआ वह वहां से चल दिया. हमारें मास्’साब का कहना था कि समस्या को हल करने के लिए कभी कभी परम्परा से हटकर भी सोचना पडता हैं. बस, उसे हल करने की नियत होनी चाहिए.

शिव शंकर गोयल

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