मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच टकराव कहीं राष्ट्रपति शासन की ओर तो कदम नहीं

रजनीश रोहिल्ला।
राजस्थान में तेजी से बदल रहे राजनीतिक घटनाक्रमों के बीच अब विधानसभा सत्र बुलाने को लेकर मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच टकराव शुरू हो चुका है।
राज्यपाल ने गहलोत सरकार के विधानसभा सत्र बुलाने की मांग को ठुकरा दिया है। राज्यपाल की ओर से कहा गया कि अभी कोरोना का समय चल रहा है। कई विधायक इससे पीड़ित हैं, ऐसे समय में सत्र बुलाना सही नहीं है।
इसके बाद मुख्यमंत्री ने प्रसवार्ता की। गहलोत ने राज्यपाल पर सीधा-सीधा आरोप लगाते हुए कि उपर यानि केंद्र के दबाव में राज्यपाल विधानसभा सत्र बुलाने का फैसला नहीं ले रहे हैं। गहलोत ने चेतावनी भरे शब्दों में कहा कि जनता अगर राजभवन को घेर लें, तो हमारी जिम्मेदारी नहीं होगी।
अब साफ हो गया है कि यह सत्ता की सियासत की यह लड़ाई अब गहलोत पायलट तक नहीं बल्कि राज्य और केंद्र बीच शुरू हो चुकी है। दूसरे शब्दों में कांग्रेस और भाजपा अब सीधे-सीधे आमने सामने आ चुकी हैं।

रजनीश रोहिल्ला
यह बात साफ हो गई है कि राज्यपाल फिलहाल विधानसभा सत्र नहीं बुलाएंगे। हाईकोर्ट के स्टे के बाद यह भी साफ हो गया है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक विधानसभा स्पीकर पायलट और 18 विधायकों के खिलाफ किसी भी तरह की कार्रवाई नहीं कर सकेंगे।
अब गहलोत के पास विधायकों के साथ प्रदर्शन करने के अलावा कुछ नहीं बचता है। यानि यह सब किसी के द्वारा लिखी गई स्क्रिप्ट की तरह लगता है। बहुत कुछ सामने आ चुका है, बहुत कुछ पर्दे के पीछे चल रहा है, बहुत कुछ जल्दी सामने आ जाएगा।
गहलोत इस बात को अच्छी तरह जानते थे कि विधायकों को लंबे समय तक होटल में बंद करके नहीं रखे जा सकते हैं। इसलिए ही वो विधानसभा का सत्र बुलाकर खुद ही बहुमत का प्रस्ताव रखना चाहते थे। चूंकि दावे के अनुसार गहलोत के पास पूरा बहुमत बताया जा रहा है, ऐसे में एक बार विधानसभा सत्र हो जाए तो गहलोत बहुमत साबित कर 6 महीने के लिए अपनी सरकार को सुरक्षित कर सकते हैं।
अब सारा मामले में केंद्र सरकार भी आ चुकी है। पायलट ने हाईकोर्ट में केंद्र सरकार को पार्टी बनाने का प्रार्थना पत्र लगाया था, जिसे हाईकोर्ट ने स्वीकार कर लिया है। यह तो हुआ कानूनी पहलू। अब जरा नजर डाल लिजिए, मुख्यमंत्री की राज्यपाल से नाराजगी के बाद उनके द्वारा दिया गया बयान। कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने भी कहा है कि अब यह लड़ाई आर-पार की है। लोकतंत्र को बचाने के लिए कांग्रेस को जो भी कुछ करना पड़ेगा, वो करेगी।
अब आगे क्या हो सकता है। अब तक सारी बात कोर्ट में चल रहे मामले तक थी लेकिन अब सारी नजरे राजभवन पर आ चुकी हैं। सरकार और राजभवन के बीच टकराव बढ़ता है तो राज्यपाल राजस्थान के राजनीतिक हालातों को लेकर केंद्र और राष्टपति को अवगत करा सकते हैं।
कोरोना काल में सरकार के इतने दिनों तक होटल में बंद रहने पर चिंता जता सकते हैं। सारी राजनीतिक स्थितियों के बीच जनता के हितों पर जो प्रभाव पड़ रहा, उससे भी दिल्ली को अवगत करा सकते हैं। प्रशासनिक कार्यों पर पड़ रहे असर से भी अवगत करा सकते हैं।
राज्यपाल बड़ा संवैधानिक पद है। उनके पास राज्य सरकार को लेकर बहुत बड़े निर्णय करने के अधिकार हैं। राज्यपाल की अनुशंसा से राज्य सरकार को बर्खास्त किया जा सकता है। उनकी अनुशंसा से राज्य में कुछ समय के लिए राष्टपति शासन लगाया जा सकता है।
मुख्यमंत्री गहलोत के जनता द्वारा राजभवन घेरने के बयान के बाद भाजपा से तीखी प्रतिक्रिया आई है। प्रतिपक्ष नेता गुलाबचंद कटारिया ने कहा है कि अगर राज्य का मुख्यमंत्री राजभवन के लिए ऐसा कहे तो फिर पुलिस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। ऐसी स्थिति में राजस्थान को सीआरपीएफ के हवाले किया जाना चाहिए। यानि अब आप समझ सकते हैं कि सारा मामला किस दिशा में जा रहा है।
हालांकि अभी और घटनाक्रम होने हैं, इंतजार करना होगा। राजनीतिक अस्थिरता बनी रहती है, हालातों में सुधार नहीं होता है, तो जनता के हित में राज्यपाल सख्त कदम भ्उठाने की सिफारिश कर सकते हैं।

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