इस नास्तिकता में कोरोना का भय बेमानी

डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
ऐसी बीमारी जिसका न तो कोई उपचार है और न ही इससे बचाव का कोई साधन, पूरा विश्व उस बीमारी को लेकर पशोपेश में पड़ा हुआ है। बीमारी को वैश्विक महामारी का नाम दिया जा चुका है। देश में इस समय घोर संकटकाल चल रहा है। आम आदमी त्रस्त है। सभी कुछ असहज और असामान्य सा होकर रह गया है। छः महीने की अवधि कम नहीं होती। बीते छः महीनों में कोरोना वायरस जैसी वैश्विक महामारी से भयाक्रान्त आम आदमी हर तरह से टूट गया है। आर्थिक स्थिति जर्जर हो जाने की वजह से लोग कर्जो के पहाड़ तले दब गये हैं। सभी प्रकार के टैक्सेज़ देना आम जनों की नियति बन गई है। व्यवस्था में कफन खसोटी चालू है। सरकारी महकमों में कहीं से भी किसी भी तरह की पारदर्शिता नहीं दिखती। सब कुछ पूर्ववत् हो रहा है। या यह कहा जाये कि सरकारी स्तर पर मची लूट में महामारी की वजह से लाकडाउन/अनलाक ने क्षमता वृद्धि सा कर दिया है। आम आदमी तो कोरोना के भय से शरीर के अन्दर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की जुगत में परेशानहाल है। मास्क, सैनिटाइजर, दस्ताने, पीपीई किट का जो हौव्वा खड़ा कर दिया गया है उसे झेलते हुए आम आदमी छः महीने में एकदम संज्ञा शून्य सा हो चुका है।
कभी लाकडाउन अनलॉक होगा। कभी सड़क यातायात चालू होगा। कभी रेल और हवाई मार्ग पर यातायात सामान्य होगा। पूजास्थल से लेकर बड़े-बड़े माल होटल और रेस्तराँओं के नियमित होने के लिए सरकार ने गाइड लाइन्स जारी किया है। यदि किसी स्थान पर सामान्य तरीके से पूर्व की भाँति कार्य हो रहा है तो वह है सरकारी/राजकीय विभागीय कार्यालय। कलेक्ट्री से लेकर छोटे विभागों के दफ्तरों में आदमी दिखता है। विभागीय अधिकारी कार्यालयों में प्रभारी और बाबू अपने-अपने कार्यों में मशगूल। हाँ अभी स्कूल कॉलेज नहीं खुल सके हैं। इसके पीछे सरकार की क्या मंशा है? इसके बावत बस इतना ही कहा जा सकता है कि इसे …..देयो न जानाति…..कुतो मनुष्यः। इस सेनेरियो में जब कोरोना को पैन्डमिक कहा जा रहा है और इसका कोई उपचार व बचाव हेतु टीका नहीं ईजाद हो सका है तब मानव समाज में कुछ ऐसी बातें अवश्य ही सोच व चिन्ता का विषय बन गई है। मसलन यदि कोरोना महामारी के प्रकोप से मानव समाज का समापन हो जायेगा तब ऐसे में शादी, ब्याह, मनोरंजन और पैसा कमाने के लिए मचाई गई घूसखोरी जैसी लूट करने से क्या फायदा। इस सबसे इतर लोग मृत्यु भय से बेखौफ अपने समस्त क्रिया-कलापों में कोई कोताही नहीं बरत रहे हैं, और न ही किसी के चेहरे पर मृत्यु भय की सिकन ही दिखाई पड़ रही है।
यहाँ हम बात कर रहे हैं उन लोगों की जो तिजारती हैं और पैसा लगाकर हर तरह के व्यवसाय से लाभ कमाने की होड़ में लगे हैं। इसके अलावा वे लोग भी हैं जो कोरोना का भय दिखाकर सिस्टम में आई तब्दीली का रोना रो कर लूटम-लूट में व्यस्त हैं, ठीक उसी तरह जैसे गुड़ में लिपटे चींटे। कचहरियों में वकीलों ने अपनी फीस में कोई कमी नहीं की है। निजी प्रैक्टिस करने वाले डाक्टरों ने तो दोनों हाथ खोलकर धन कमाना शुरू कर दिया है। चुनावों की अधिसूचना जारी, चुनावी प्रक्रियाएँ शुरू। लोकतन्त्र मजबूत हो रहा है। किसान के उत्पादन और उनकी दुर्दशा पर किसी सरोकारी का ध्यान ही नहीं जा रहा। खाद, पानी, बीज, उर्वरक की सुचारू व्यवस्था नामाकूल, बिजली नहीं, पानी नहीं। हर मूलभूत आवश्यकता से महरूम हुआ आम आदमी। राजस्व देयों की वसूली तेजी से।
पुलिस थाना क्षेत्रों एवं वर्दीधारियों की मनमानी जोरों पर। या यह कहा जाये कि कोरोना काल के अब तक के छः माह पुलिस महकमे के लिए मुफीद रहे तो कत्तई गलत नहीं होगा। बात-बात में चालान, कभी मास्क न पहनने का कारण तो कभी लाकडाउन प्रोटोकॉल की अनदेखी करने का आरोप लगाकर ये वर्दीधारी आम आदमी का चालान करने के साथ-साथ जेल के सलाखों में भी भेज रहे हैं। उधर चोरी, लूट, डकैती, बलात्कार एवं अन्य आपराधिक घटनाओं में बेतहाशा वृद्धि। कुल मिलाकर स्थिति ठीक उसी तरह बन गई है, जैसे- चोर चोरी कर रहा है और वर्दीधारी पुलिस डण्डा पीट रही है। हर कोई अपना-अपना काम कर रहा है, सिवाय सामान्य आदमी के। इन सभी क्षेत्रों में कहीं भी कोरोना जैसी कथित वैश्विक महामारी का भय नहीं दिख रहा है। बड़े लोगों के यहाँ धार्मिक अनुष्ठान जारी है। डीजे पर कानफाड़ू संगीत शुरू हो चुका है। बच्चे ऑनलाइन के नाम पर माँ-बाप का दिवाला निकालकर स्वयं के पैरों में बरबादी की कुल्हाड़ी मार रहे हैं।
किसी अक्लमन्द ने कहा कि जिस दिन लोग परोपकारी हो जायेंगे और अपने द्वारा अर्जित धन को जरूरमन्दों के हित हेतु बांटना शुरू करेंगे। कार्यालयों में लेन-देन कार्य ठप्प हो जायेगा, और सहज रूप से सम्बन्धितों के कार्य होने लगेंगे, तब समझिये कि कोरोना सचमुच प्राणघातक है। इसके संक्रमण से मानव जाति संकट में है। मतलब यह कि जब लोगों को जीवन और मृत्यु का बोध हो जायेगा, तब स्वयं लोग परोपकार जैसा कार्य करने लगेंगे। वह इसलिए कि मरने के बाद सब कुछ यहीं छूट जाने वाला है। इसीलिए बेहतर यह होगा कि इस महामारी संकटकाल में पुण्य कमा लो और लोगों में धन-दौलत बांट दो। अलानाहक परेशान करके लोगों को पीड़ा न पहुँचाओ। अभी तक इस स्थिति की शुरूआत नहीं हुई है बस वे लोग ही समाजसेवा का ड्रामा कर रहे हैं, जो पेशेवर कहे जाते हैं। यानि वे लोग जिन्हें समाजसेवा में ही अपना हित दिखाई पड़ता है। इस लेख के लिखने तक कहीं से भी स्पष्ट नहीं हो रहा है कि कोरोना वायरस जानलेवा है। मुण्डे-मुण्डे मतिर्भिन्ना यानि जितने लोग उतनी बातें (कोरोना को लेकर)।
आम आदमी के लिए इस समय हरी सब्जियों से लेकर अन्य उपभोक्ता वस्तुओं की खरीद दिन में तारे दिखाने का काम कर रही है। मतलब यह कि 10 रूपए किलो वाला सब्जियों का राजा आलू 50 से 60 रूपए किलो बिक रहा है, ऐसे में साधारण व्यक्ति की औकात नहीं कि वह आलू खरीदकर इसका स्वाद चख सके। रही अन्य उपभोक्ता वस्तुओं की बात तो उनकी कीमत आसमान पर। महंगाई की ऊँचाई बुर्ज खलीफा के मानिन्द हो गई है। सबसे बुरे दौर से निजी विद्यालयों/स्व वित्त पोषित विद्यालयों के अध्यापक गुजर रहे हैं। छः महीने से भुखमरी झेलने वाले इन शिक्षकों ने विकल्प के रूप में सब्जी ठेला एवं अन्य छोटे-मोटे धन्धों को अख्तियार कर लिया है। जिसने ऐसा नहीं किया है उसके पास विकल्प के रूप में अन्य कई क्षेत्र बताये जाते हैं। ठेकेदारों द्वारा दैनिक श्रमिकों का शोषण जारी है। आर्थिक रूप से विपन्न घरों में यदा-कदा रसोई के चूल्हे जलते हैं।
अधिकांश कोरोना भय और भूख से बेहाल पेट पर हाथ रखकर सोने को मजबूर हैं। शादी-ब्याह, मैय्यत-सुन्नत, खतना-मुण्डन, हैप्पी बर्थडे आदि का सेलीब्रेशन पैसे वालों द्वारा अपने पुराने रीति-रिवाज के साथ किया जा रहा है। पूजालय खुल गये हैं, मयखाने तो कभी बन्द ही नहीं हुए। सभी शौकीन मांस-मदिरा का सेवन सामान्य दिनों की तरह ही कर रहे हैं। मटन-चिकन, फिश, अण्डा एवं अन्य नॉनवेज डिसेज़ खाने में लोगों द्वारा हैसियत अनुसार नित्य-नियमित धन खर्च किया जा रहा है। भले ही उनके पड़ोस में कई दिनों से चूल्हे बुझे हुए हैं। आदमी नास्तिक से आस्तिक कब बनेगा? इसी की प्रतीक्षा है। हम तो चाहते हैं कि आदमी नास्तिक ही रहे ताकि हम कोरोना से सुरक्षित रह सकें। थोड़ा विस्तार से बता दिया जाये कि जब तक आदमी का आदमी से लगाव, प्रेम-भाव नहीं बढ़ेगा, आदमी खुदगर्ज ही रहेगा, तब तक समझिये कि कोरोना जानलेवा नहीं है और न ही ये महामारी है। परन्तु जब आदमी-आदमी के प्रति प्रेम-भाव और आपस में मिल-जुलकर रहना शुरू करेगा, समझिये कि कोरोना अवश्य ही प्राणघातक वैश्विक महामारी है।
-डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
वरिष्ठ नागरिक/स्तम्भकार
अकबरपुर, अम्बेडकरनगर (उ.प्र.)
9125977768, 9454908400

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