तारकेश कुमार ओझा
भारतीय राजनीति में रामविलास पासवान का उदय किसी चमत्कार की तरह हुआ । ८० – ९० के दशक के दौरान स्व . विश्वनाथ प्रताप सिंह की प्रचंड लहर में हाजीपुर सीट से वे रिकॉर्ड वोटों से जीते और केंद्र में मंत्री बन गए । यानि जिस पीढ़ी के युवा एक अदद रेलवे की नौकरी में जीवन की सार्थकता ढूंढ़ते थे , तब वे रेल मंत्री बन चुके थे । उन दिनों तब की जनता दल की सरकार बड़ी अस्थिर थी । एक के बाद प्रधानमंत्री बदलते रहे , लेकिन राम विलास पासवान को मानों केंद्र में ‘ सदा मंत्री ‘ का दर्जा प्राप्त था । हालांकि दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि उनसे पहले देश में किसी राजनेता को यह हैसियत हासिल नहीं थी । मेरे ख्याल से उनसे पहले यह दर्जा तत्कालीन मध्य प्रदेश और अब छत्तीसगढ़ के विद्याचरण शुक्ला को प्राप्त था ।
के शालबनी में हुई । पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के साथ वे जिंदल स्टील फैक्ट्री का शिलान्यास करने आए थे । इसी सभा से लौटने के दौरान माओवादियों ने काफिले को लक्ष्य कर बारुदी सुरंग विस्फोट किया था । बहरहाल कार्यक्रम के दौरान उनसे मुखातिब होने का मौका मिला । उन दिनों महाराष्ट्र में पर प्रांतीय और मराठी मानुष का मुद्दा गर्म था । मुद्दा छेड़ने पर राम विलास जी का दो टुक जवाब था कि महाराष्ट्र में कोई यूपीए की सरकार तो है नहीं लिहाजा सवाल उनसे पूछा जाना चाहिए जिनकी राज्य में सरकार है । स्मृतियों को याद करते हुए बस इतना कहूंगा … दिवंगत आत्मा को विनम्र श्रद्धांजलि …।