दशहरा पर्व एवं रामलीलाओं की विभिन्न 2 परम्पराएं

शिव शंकर गोयल
जहां दक्षिण में मैसूर और उत्तर में कुल्लु-मनाली में मनाये जाने वाले दशहरा पर्व का अपना महत्व है वही विभिन्नताओं वाले अपने देश में अलग 2 जगहों पर तरह तरह से आयोजित किये जाने वाले दशहरा पर्व और रामलीलाओं की अपनी खासियत है. आइये इन नवरात्रों में कुछ का अवलोकन करते है.

राजस्थान के राजसमंद जिले में चारभुजा नामक स्थान पर रावण के पुतले का दहन नही होता है. यहां पर देवस्थान विभाग द्वारा पत्थरों से रावण का पुतला तैयार किया जाता है. जिसके पेट, सिर तथा हाथों पर मटकियां-मिट्टी के घडें- रखे जाते है. बाद में विभाग के सिपाही बन्दूकों से फायर कर नाभी तथा सिर की मटकियां फोडते है. इससे मितव्ययता के साथ साथ पर्यावरण की भी रक्षा होती है.

रामायण यानि राम का मंदिर और रामचरितमानस यानि राम-सरोवर. दोनों धार्मिक ग्रंथ संवादों से लबालब फिर भी उन पर आधारित, मंचित हो रही मूक रामलीला, थोडा आश्चर्य है ना ? परन्तु न राम की महिमा का कोई पार है न उनके नाम की महिमा का. आइये देखते है पानीपत के आई. बी स्कूल में पाकिस्तान से विस्थापित लैय्या बिरादरी द्वारा की जाने वाली मूक रामलीला के बारे में. यहां पात्र संवाद नही बोलते है. साउंड के माध्यम से सीन समझाया जाता है.

इंदौर के पास 86 गांव मिलकर साथ मनाते है दशहरा
यहां सैमेस्टर सिस्टम से रावण-वध होता है हाडौती के इस अंचल में विजयादशमी को रावण दहन किया जाता है. वह जलने के छह महीने में ही फिर खडा हो जाता है यानि चैत्र नव रात्रों में मेले लगते है और दशमी को रावण के पुतले का भी फिर दहन किया जाता है यानि साल में दो बार रावण दहन होता है. कहते है कि यह केवल परम्परा है.

साम्प्रदायिक भाई चारे की प्रतीक है मंडी आदमपुर की रामलीला
सांझी संस्कृति का संगम है बिहार के कैमूर की रामलीला. इस रामलीला के सारे कलाकार मुस्लिम है.सन 1982 से यह मंचित की जाती रही है.

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