आजकल देश में “सबका साथ-सबका विकास” योजना के अन्तर्गत जगह जगह शहरों, संस्थानों यहां तक कि स्टेडियम तक के नाम भी बदले जा रहे है तो उसी कडी में एक प्रस्ताव यह भी आया है कि रिश्ते-नातों में महत्वपूर्ण रिश्ते फूफा का भी अब नाम परिवर्तन कर फाफू या फाफूश्री रख दिया जाय. श्री शब्द जोडने से भक्त भी खुश हो जायेंगे.
एक नवीनतम परिभाषा के अनुसार फूफा ऊर्फ फाफू एक रिटायर्ड जीजा होता है, जिसने एक जमाने में जिस घर में शाही पनीर खाया हो उसे अब सुबह-शाम मूंग धुली या मूंग छिलका दाल खिलाई जाए, कोई मनुहार नही करे, किसी खास विषय में राय नही ले. यहां तक कि विवाह की एक रस्म सज्जनगोठ ( इसमें वरमाला के बाद जब वर पक्ष के खास 2 मेहमानों को वधु पक्ष द्वारा मनुहार के साथ खाना खिलाया जाता है ) तक में महत्व न दे, तो उसका बात बात में “फा” और “फू” करना लाजिमी है. अब हालात बिगडते 2 क्या से क्या होगए है, इसकी एक मिसाल पेश है :-
कोरोना काल की घटना है. संक्रमण से बचने के लिए जब सरकार ने शादी-विवाह में शामिल होने वालों मेजबान परिवार और मेहमानों को मिलाकर 100 की अधिकतम संख्या निर्धारित करदी, यानि 50 वर पक्ष के और 50 ही वधु पक्ष के, तो मजबूरन सभी ने इस नियम का पालन करना शुरू कर दिया. संयोग की बात कि इसी दौरान मुझें भी रिश्तेदारी में एक परिवार की रजिस्ट्री द्वारा शादी का निमंत्रण मिला वह भी वाट्सएप पर जिसमें मेरी पत्नि को सीरियल न. 51 पर और मुझें 52 वें नम्बर पर रखा गया लेकिन साथ ही दिलासा भी दिया गया कि अगर कोई नही आया तो आपका प्रवेश आसान हो जायेगा.
यह पढते ही मैंने फोन करके एतराज प्रकट किया कि आपने अपनी भूआ को 51 वे नम्बर पर रखा है तो उल्टें यह सुनने को मिला कि 51वें नम्बर का तो अपने धार्मिक ग्रन्थों तक में बडा महत्व बताया गया है. कहते है कि जब यक्ष ने अपने यज्ञ में अपने दामाद शिवजी को जानबूझ कर निमंत्रण नही दिया इसके बावजूद सती अपने पीहर गई और पिता द्वारा अपमानित हुई और सती ने अपना बलिदान कर दिया. इस पर रूष्ट होकर जब शिवजी ने तांडव किया फलस्वरूप सती के अंग के 51 हिस्सें उस समय के हिन्दुस्तान (शाकम्भरी देवी,बिलोचिस्तान, से लेकर कामख्या देवी, आसाम,विन्ध्याचल देवी मध्य भारत और कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक, जगह जगह गिरे जो आज भी शक्तिपीठ के नाम से जाने जाते है.
इतना ही नही आजाद भारत में सबसे पहले जन गणना सन 1951 में ही हुई थी. संविधान का 51वां संशोधन बहुत महत्वपूर्ण था.
जब मैंने 52 की बात शुरू करनी चाही तो उन्होंने दार्शनिक अंदाज में बताना शुरू किया कि ताश के खेल में 52 ही पत्तें होते है और जिन्दगी ताश के पत्तों का ही गेम है जिसमें हर इंसान को अलग अलग पत्तें मिलते है और उन्हें उन्ही पत्तों से खेलना पडता है. आगे उन्होंने बताया कि अपने अवतारों में ईश्वर ने एक बार बावन अवतार भी लिया और राजा बली से तीन पद पृथ्वी मांग ली जो वह दे नही सका. अजमेर के पास तीर्थ गुरू पुष्कर में 52 घाट है. आदि 2. खैर, आखिरकार मैं उनके तर्कों का कायल होगया.
मुझें यही सोचकर संतोष है कि इसमें मैं अकेला थोडे ही हूं वर के मौसा भी तो मेरी तरह ही है.
शिव शंकर गोयल