वैचारिकी- आइना दिखाइए

रासबिहारी गौड
यह सच है कि मौत से बड़ा कोई सच नहीं होता। वह सच आज नग्न नृत्य कर रहा है। ढोंगी संवेदनाएं इस नृत्य को अपने झूठ से बहला रही है। मौत को मतदाता समझ रही है। जोर शोर से ढिढोरा पीट रही है-
“इस वक्त सरकार को दोष मत दीजिए…. ।”
“एक आदमी क्या कर लेगा..।”
” अपनी अपनी जिम्मेदारी उठाइये..।”
कितनी बेशर्मी हैं ये आवाजें। हिंसक अनाचार से भरी हुई। किसी भी सभ्य समाज को कलंकित करती हुई। आपदा के अर्थों को संकुचित करती हुई।
*एक वर्ष की अवधि में कोई अस्पताल, ऑक्सीजन, दवाएं, व्यवस्थाएं कुछ भी नहीं जुटाई जबकि उसके नाम पर देश भर से चंदा, अनुदान, विदेशी मदद इकठ्ठी करती सरकार एक आदमी के चेहरे को चमकाती रही।*
जी हाँ, यह वही आदमी है जिसे हमनें देश नेतृत्व सौंपा था। जिसने हिसाब नहीं देने की शर्त पर राहत कोष बनाया था। जिसने अपने से पहले के सारे नेतृत्व को नकारा मानते हुए ‘अहम ब्रह्मास्मि’ का जाप दिया था। जिसने महामारी की दस्तक पर पूरे देश को कुछ ही घन्टो में सावधान की मुद्रा में खड़ा कर दिया था। धर्म, राष्ट्रवाद और नोटबन्दी सरीखे सपनें की कीमत पर नींदों का सौदा कर लिया था। सुपर मानव की छवि गढ़ एक व्यक्ति भारत का भगवान बन रहा था।
कितना आसान है यह कहना “अब उसे दोष ना दें..।” माना, आप उसके अनुयायी हो, लेकिन इतना तो समझो उसके कारण आज आपका परिवार मौत के बिल्कुल करीब खड़ा है। आपके फेफड़े की ऑक्सीजन उसकी चौखट से अनुमति माँग रही है। पानी मे बहती अनाथ लाशें तर्पण के लिए उसके मंत्रों को जिम्मेदार मान रही है।
सचमुच, इन दिनों जब कोई श्रद्धा इस सबके पक्ष में बोलती है तो लगता है पुरानी सीख से जलती लाशों से अपने दीपक के लिये रोशनी चुरा रही है।
एक अकेला आदमी जिम्मेदार नहीं होता।
जी, नहीं ..! एक ही होता है।
पूरी सेना लड़ती है हार या जीत राजा की ही होती है। अकेला हिटलर सबको नहीं मारता। ना ही किसी चंगेज खान की अकेली तलवार सारी गर्दनों को काटती है। लेकिन जिम्मेदार वह एक अकेला ही होता है।
“क्या कर सकती है सरकार..?”
सवाल यह नही होना चाहिए। सवाल होना चाहिए-
“क्या नहीं कर सकती है सरकार ? ”
*सरकार के पास हर तरह के संसाधन है। वह स्वास्थ्य आपातकाल के नाम पर सारे चिकित्सा अधिग्रहित कर सकती है। वह सारे होटल, महल, सार्वजनिक स्थलों को एक आदेश से अस्पताल में तब्दील कर सकती है। वह पूरी फौज को चिकित्सा कर्मी बना सकती है। वह राज्य सरकारों को आदेशित कर सकती हैं।*
लेकिन नहीं, वह दूसरे कामो में व्यस्त है। मन की बात करने में व्यस्त है। सेंट्रल विस्टा नाम का महल बनाने में व्यस्त है। विरोधियों के विधायक खरीद कर विपक्षी सरकारें गिराने में व्यस्त है। बड़े-बड़े सौदे करने में व्यस्त है…। वह प्रचार, प्रबंधन में व्यस्त है। वह मरते लोगो की ओर नहीं देख पा रही है। और हाँ, *आजकल सरकार का मतलब एक वही आदमी है जिसके बारे में कहा जा रहा है अकेला आदमी क्या कर सकता है।*
यूँ , कफन को धर्म के रंग से पहचाना जाता रहा है। राजनीति के चश्मे से निहारा जाता रहा है। लेकिन उसे झंडा बनाकर अपनी ड्योढ़ी पर कभी नहीं लटकाया गया। यह पहली मर्तबा है कि पूरा देश अपने लोगो की लाशें ढो रहा है। दूसरी ओर अंध अनुयायी जिंदा लोगो से लाश बन जाने का आव्हान कर रहे हैं। लाशों के बीच कोई लाश अनाथ होकर पानी मे बह रही है। कोई बहुत सारी लाशों के साथ अधजली लकड़ियों में पड़ी है। कोई बेवक्त खुदे गड्ढों में दफन है। तो कोई चलते फिरते शरीरों के साथ लाशों का कुनबा बड़ा करने की मुहिम में जुटी है।
इस समय हम सबको अपने आप से सवाल करते हुए सवाल रोकने वालो से सवाल करने चाहिए। हमें शिखर सत्ता से सवाल करने चाहिए। हमें उस एक आदमी से सवाल करने चाहिए जिस पर हमारी सुरक्षा का जिम्मा है। हमे किसी बहाने से नहीं बहकना चाहिए..। हमें दिशा भ्रम से बचना चाहिए। ताकि हम लाश होने और कहलाने से बच सके। जीवन को बचा सके।
*यकीन मानिए, अगर हमनें जिंदा रहने की जिद पकड़ ली तो हमारी साँसों के हम खुद मालिक होंगे..।* सपनों का महल बनाने वाले आत्ममुग्ध सिंहासन की नींद में खलल पड़ेगा..।सिंहासन को जगाइए..। उसका अनैतिक बचाव करने वालो को आईना दिखाइए।

*रास बिहारी गौड़*

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