ईर्ष्या

Dinesh Garg
दैनिक जीवन में अर्थ इतना प्रधान हो गया है कि हम अपने दु:ख से दु:खी नहीं है जितने अपनो को समृद्ध होता देख कर दुखी हो रहे है। आखिर ऐसा क्यों? सभी अपने अपने कर्मो व प्रारब्ध से जीवन यापन करते है, प्रयास करेगे तो सफलता आपको भी मिलनी तय है। होना तो यह चाहिए कि हमें अपनो को समृद्ध होता देख अपने लिए भी कुछ प्रेरणा प्राप्त करनी चाहिए और अपने प्रयासो को बढ़ाना चाहिए। इस सदंर्भ में एक प्रसंग बहुत उपयोगी पढऩे को प्राप्त हुआ।
एक दिन राजा बुद्वप्रिय के दरबार में अजीब नजारा था। उसके दरबार में दो भाई एक दूसरे के विरूद्व फरियाद लेकर आए थे। बड़ा भाई मंद मंद मुस्करा रहा था जबकि छोटा क्रोध के मारे कांप रहा था। राजा ने दोनो की फरियाद सुनी। बड़े भाई ने कहा छोटा मुझसे नाहक ही जलता है, वह हमेशा मेरे खिलाफ साजिश रचता रहता है जबकि संकट में मैने हमेशा उसकी मदद की है और आज भी मेरे मन में उसके लिए सम्मान है, मैं अपने व्यवसाय में पूर्ण समय देकर परिवार के हित के लिए कार्य कर रहा हू और आज भी संकट के समय अपने भाई की सहायता के लिए तैयार हूं लेकिन इसका बर्ताव मेरे प्रति अजीब सा हो गया है। फिर छोटे भाई ने अपना क्रोध जाहिर किया और कहा महाराज हम दोनो को विरासत में जमीन समान मिली लेकिन बड़ा अधिक धनी है जिसके कारण मेेरी आंखो की नींद उड़ गई है और मैं बैचेन रहता हूं कि उसे कैसे अधिक धन की प्राप्ति हो रही है। मुझे क्यों नही। कहीं इसने बंटवारे के समय मुझसे कोई छल तो नहीं किया यह बात मेरे मस्तिष्क में हमेशा चलती रहती है। राजा ने धैर्य पूर्वक दोनो की बात सुनकर अपनी राय दी कि छोटे तुम्हें बड़े की उपलब्धि पर गर्व करते हुए उसके साथ रहना चाहिए। तुम्हारे मन में उसके लिए जो नफरत के बीज है वहीं तुम्हारी स्वयं की प्रगति में बाधक है। ऐसा कुछ नहीं हुआ है तुम नाहक ही उसकी समृद्धि से अपने आपको मायूस कर रहे हो जबकि बड़ा अब भी तुम्हारे साथ उचित व्यवहार कर रहा है। संदर्भ का अभिप्राय इतना सा है कि आज हमारे बीच में भी अनेक परिवारो में भाइयों में टकराव बढ़ता जा रहा है उसके पीछे कारण मात्र यह है कि आज हम अपने दुख से उतने दुखी नहीं है जितने अपनो की समृद्धि से दुखी है। हम स्वयं को बदलने व अपनी सोच को बदलने के स्थान पर व्यर्थ ही परिवार के रिश्तो में टकराव पैदा कर रहे है। हमें यह समझना होगा कि उस पिता के लिए जो जीवन भर हमारे लिए संघर्ष करते हुए अपना सब कुछ हमें देकर अपनी यात्रा को चले गए तो उन्हें इस बात के अहसास से कितना दुख होता होगा। सफलता के लिए अपने कदम बढ़ाइए, ईर्ष्या, द्धेष से आपको मनोबल ही टूटता जाएगा ऐसा होने से रोकना आप ही के हाथ में है।

DINESH K.GARG ( POSITIVITY ENVOYER)
dineshkgarg.blogspot.com

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