हर पल जीवन का पर्व

Dinesh Garg
मनुष्य सदैव से अपने चारो और अपने आपको दुख से धिरा हुआ महसुस करता है ऐसा नहंी है कि जीवन में दुख नहीं आते लेकिन वह बाहरी दुनिया के आंडबर को देखकर हमेशा अपने आपको दुखी करता रहता है। धन का अभाव, पत्नी से तालमेल का अभाव, पुत्र का स्वभाव, मान सम्मान का अभाव, हमेशा केवल अपनी कमी का रोना लिए रहता है। लेकिन कभी उनसे भी तो पूछो जिन्हें यह अभाव नहीं है कि क्या वे सुखी हैं यदि नहीं तो फिर इन सुखों के पीछे की दौड़ व्यर्थ भर है। जीवन का प्रत्येक क्षण अच्छा-बुरा, सुख-दुख को समान परिस्थिति में जीना सीखेंगे तो ही जीवन का प्रत्येक क्षण पर्व के समान बन जाएगा।
हम हमेशा यह कहते हंै परमात्मा ने मुझे ही दु:ख क्यों दिया है लेकिन सत्य यह भी है कि यदि वह दु:ख नहंीं देता तो शायद हमें जागने के सारे रास्ते ही बंद हो जाते तो दु:ख आता है मात्र हमारी परीक्षा के लिए लेकिन प्रत्येक दु:ख के पीछे एक सुखद अहसास अवश्य छिपा होता है। हॉं इतना अवश्य है कि वह अहसास व्यक्ति को तुरंत महसूस नहीं होता इसलिए वह दु:ख में घबरा जाता है और विचलित हो जाता है। हमें प्राय: अधिकांश दु:ख मन की आशाओं को लेकर होते है क्योंकि एक मन ही तो है जो मानव को सपनों की दुनिया में भटकाता रहता है और हम है कि उसी मन के बहकावे में आकर अपना स्वयं का सुख समाप्त कर देते हंै। वास्तव में सुख उन्हें मिलता है जो स्वयं खुश होने का अभ्यास सीख लेते है। जो कर्म के बधंनो का रोना छोड़कर सेवा धर्म को अपना लेते है। अपने भीतर के मैं को जैसे ही हम समाप्त कर लेते है तो हमारे भीतर कृतज्ञता व करूणा का नैसर्गिक भाव उतपन्न होने लगता है और हम हमारे दुखो को किसी के सेवा कर भूलना प्रारंभ कर देते है। वर्तमान समय में भी हमें अपने भीतर के आत्मविश्वास को जगाकर, मानव सेवा कार्यो में जुड़कर अपने आपको प्रसन्न रखने के प्रयास स्वयं ही प्रारंभ करने होंगे और यही से आपके जीवन के हर दिन की शुरूआत पावन पर्व से होगी। आपको महसूस होगा कि जीवन कितना आनंदित होता है।

DINESH K.GARG ( POSITIVITY ENVOYER)
dineshkgarg.blogspot.com

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