*पूर्व विधायकों व सांसदों को पेंशन क्यों?*

👉यदि इन नेताओं को ताउम्र पेंशन दी जाती है, तो सरकारी मुलाजिमों की पेंशन सुविधा बंद क्यों की?🙄
👉पूर्व विधायकों व सांसदों की पेंशन बंद कर क्यों नहीं, यही धन अन्य कार्यों पर खर्च किया जाए?_🤨
👉इस सवालिया निशान पर मंथन आमजन को करना है, निर्णय तो सरकारें ही करेंगी_🧑‍⚖️

प्रेम आनंदकर
हमारे देश में कितनी अजीबोगरीब, विचित्र और हास्यास्पद स्थिति है। एक सरकारी मुलाजिम (चाहे किसी भी पद पर हो) 30 से 40 साल नौकरी करता है, तो उसे सरकार ने पेंशन देने की सुविधा बंद कर दी है। लेकिन यदि कोई नेता ढाई से पांच साल तक विधायक या सांसद रहे तो ना केवल उन्हें, बल्कि उनके मरने के बाद उनकी पत्नी को भी ताउम्र पेंशन दी जाती है। ऐसा क्यों है? अमुमन यह माना जाता है कि राजनीति में कमोबेश वही व्यक्ति आते हैं, जो आर्थिक रूप से सक्षम होते हैं। उनके पास चुनाव लड़ने के लिए लाखों-करोड़ों रूपए होते हैं। फिर चुनाव जीत कर अपने कार्यकाल में इतना अथाह धन इकट्ठा कर लेते हैं कि उनके मरने के बाद भी सात पीढ़ियां बैठ कर खाएं, तो नहीं बीते। इसके अलावा अपने बेटे-बेटी, भाई-भतीजों के नाम पेट्रोल पम्प, गैस एजेंसी आवंटित करा लेते हैं। यदि कोई नेता विधायक या सांसद बनने से पहले आर्थिक रूप से कमजोर होते भी हैं, तो चुनाव जीतने के बाद लाखों-करोड़ों में खेलने लग जाते हैं और कार्यकाल पूरा होने तक उनके मकान की सूरत आलीशान बंगले में बदल जाती है। बाइक की जगह ओडी कार तक आ जाती है। दुपहिया-चारपहिया वाहनों की संख्या बढ़ जाती है। बैंक बैलेंस में अच्छा-खासा इजाफा हो जाता है। बेटे-बेटियों की शादियां आलीशान तरीके से कर दी जाती हैं। शायद आपको जानकारी हो या नहीं, बता देते हैं कि एक पूर्व विधायक को प्रतिमाह करीब 45 हजार रूपए और पूर्व सांसदों को करीब 60 से 70 हजार रूपए पेंशन मिलती है। अब यह बात समझ में नहीं आती है कि इन नेताओं ने विधायक या सांसद रहते हुए देश और समाज की ऐसी कौनसी सेवा की या सेवा में अपना जीवन खपाया, जो उन्हें ताउम्र इतनी मोटी रकम पेंशन दी जाती है। जबकि करीब-करीब यह सभी पूर्व विधायक व पूर्व सांसद लाखों-करोड़ों के आसामी हैं। क्योंकि नहीं इन सभी पूर्व विधायकों व पूर्व सांसदों की पेंशन हमेशा के लिए बंद कर यही सरकारी धन विकास कार्यों, सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा साधन-संसाधन बढ़ाने, उपकरण खरीदने, भवन बनाने, सरकारी स्कूलों के भवनों की मरम्मत कराने या भवनविहीन स्कूलों के लिए भवन बनवाने, अभावग्रस्त व कच्ची सड़कों वाले गांवों को मुख्य सड़क से जोड़ने के लिए पक्की सड़कें बनवाने, गांवों में चिकित्सा व शिक्षा की सुविधाएं बढ़ाने, अनाथालय व वृद्धाश्रमों में सुविधाएं व अनुदान बढ़ाने, विधवा व वृद्धावस्था पेंशन की राशि में इजाफा करने, सरकारों के आपदा व राहत कोषों में इजाफा करने, सरकारी काॅलेजों-विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की कमी दूर करने, साधन व संसाधन बढ़ाने में खर्च किया जाता है। क्यों नहीं खाली पदों को भरकर बेरोजगारों को रोजगार देने के लिए सरकारी धन का उपयोग किया जाता है। जब भी कोई बड़ी आपदा या विपदा आती है, तो हम भामाशाहों की तरफ हाथ फैलाते हैं, आखिर क्यों? हां, अनेक पूर्व विधायक या पूर्व सांसद यह कह सकते हैं कि हमने हमारे क्षेत्र में फलां-फलां विकास कार्य कराए। वे विकास कार्य गिनाने लगेंगे। इसमें कोई बुराई भी नहीं है, लेकिन कोई उनसे यह भी तो पूछे कि क्या उन्होंने यह कार्य अपनी तिजोरी से कराए हैं। सारा पैसा सरकार का था, जो उन्हें विकास कार्यों के लिए ही मिला था। यदि उन्होंने विधायक फंड या संसफ़ फंड का पैसा विकास कार्यों पर खर्च कर दिया, तो इसमें जनता पर कौनसा अहसान किया। यदि पूर्व विधायकों व पूर्व सांसदों को ताउम्र पेंशन देना ज्यादा ही जरूरी है, तो फिर जीवन की आधी से ज्यादा उम्र सरकारी सेवा में खपाने वाले मुलाजिमों ने क्या कसूर किया, जो उनकी पेंशन बंद कर दी गई है, जबकि रिटायरमेंट पर मिलने वाली राशि से वह अपने बेटे-बेटियों की शादियां भी अच्छे से नहीं कर पाता है। हां, रिश्वतखोर, घूसखोर और भ्रष्टाचार मुलाजिमों की पेंशन जरूर बंद कर दी जानी चाहिए। लेकिन ’’गेहूं के साथ घुन क्यों पिसता है’’, यह बात आज तक समझ में नहीं आई है। हो सकता है कि यह ब्लाॅग भाजपा-कांग्रेस सहित सभी राजनीतिक दलों से जुड़े पूर्व विधायकों व सांसदों और मौजूदा विधायकों व सांसदों (जो कभी ना कभी पूर्व होंगे) को बुरी लग सकती है। लेकिन एक बार सोचिए जरूर, पेंशन की सबसे ज्यादा इन धापे हुए नेताओं को नहीं, सरकारी मुलाजिमों, विधवाओं, वृद्धों और दिव्यांग लोगों को है। हां, यदि कोई पूर्व विधायक व पूर्व सांसद आर्थिक रूप से कमजोर है और जीवनयापन में कष्ट झेल रहे हैं, तो उन्हें बेशक पेंशन दी जा सकती है, लेकिन वह भी इतनी जितना उनका गुजर-बसर हो सके। गठरी जोड़कर बेटे-बेटियों या पोते-पोतियों को मालामाल करने के लिए बिल्कुल नहीं। पूर्व विधायकों और पूर्व सांसदों को पेंशन मिलनी चाहिए या नहीं, इस सवालिया निशान पर मंथन आमजन ही कर सकते हैं। आमजन की आवाज पर सरकारें ही निर्णय कर सकती हैं।

✍️ *प्रेम आनन्दकर, अजमेर।*

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