अंह का विसर्जन

Dinesh Garg
जब हमारा जन्म होता है तब शरीर पर सिवाय चमड़ी के आवरण के कुछ नहीं होता और जब हम मृत्यु को प्र्राप्त होते है तब भी हमारे शरीर से सारे वस्त्र हमारे ही परिजनो के द्वारा ही हटा लिए जाते है अर्थात कुछ शेष नहीं रहता। नाम भी हमारे जन्म के बाद हमें दिया जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि हमारे द्वारा जुटाए गए भौतिक संसाधन सभी यहीं के प्रयोग हेतु हमारे स्वयं के द्वारा ही निर्मित किए जाते है और हम उन्हीें संसाधनो को प्राप्त कर अपने में अंह पैदा कर लेते है कि यह सब मैंने प्राप्त किए है जबकि सत्य विपरीत है हम सभी केवल कर्म के कारक भर होते है। भौतिक संसाधान, शारीरिक सौंदर्य हमेशा के लिए स्थाई नहीं होते। एक तिनका यदि आंख में चला जाएं तो सारी सौदंर्यता को आईना दिखा देता है। शरीर में पनप आया रोग जीवन के प्राप्त समस्त संसाधनो को पल भर में क्षीण कर देता है इसका यह अभिप्राय नहीं है कि हम कुछ प्राप्त करने का प्रयास ही ना करे लेकिन प्राप्त के साथ में पनपने आने वाले अंह को प्रभावी होने से रोक देना है। ग्रंथो का अध्ययन करे तो प्रतीत होता है कि महाज्ञानी रावण का अंत भी के वल अंह का अंत ही था क्योंकि उसे अपने अजय होने का अहं था। ठीक उसी तरह अपने परिजनों मित्रता में यदि हमने अहं को स्थान दे दिया या हम उनसे अपने आपको श्रेष्ठ मानने लगे तो हो सकता है कि कुछ समय के लिए हम श्रेष्ठ होने का दर्जा भी प्राप्त कर ले लेकिन एक दिन ऐसा भी आएगा कि हमे अपने किए गए अहं का जवाब स्वयं को ही ढूंढऩा पड़ेगा और उस समय हम अपने आपको तन्हा महसूस करंेगे क्योंकि उस समय तक सभी हमे छोड़कर जा चुके होंगे। रिश्तो में भी प्राय: हम अपने अंह के आगे किसी की सुनना पंसद नहीं करते। हमे लगता है कि मैं ही सत्य हूं। मान ले ऐसा ही हो कि हम ही सत्य है लेकिन इसका यह तात्पर्य नहीं होता सामने वाला व्यक्ति हमेशा के लिए असत्य ही हो।
जीवन वैसे ही बहुत छोटा है और किया गया आचरण व शब्द पुन: हम तक लौट कर आते है तो प्रयास करे जीवन सदैव ऐसा जिएं कि वह औरो के लिए प्रेरणादायी और सहयोगी बन सके। दंभ में भरा जीवन जब अग्रि की भेंट चढ़ता है तो उसकी तपन वहां खड़े लोगों के बीच इस बात का अहसास जरूर कराएंगी कि आदमी ने अपना जीवन केवल अहं के लिए जिया। क्या हम भी ऐसी मृत्यु का वरण करना चाहते हंै? यदि नहीं तो आज ही समय रहते अपने अहं का विसर्जन कर लोगों में प्रिय बन जाने के प्रयास करने होगे और स्वीकार कर लेना होगा कि हम तो कार्य करने के कत्र्ता मात्र है और सब कुछ यही शेष रह जाना है।
DINESH K.GARG ( POSITIVITY ENVOYER) AJMER
dineshkgarg.blogspot.com

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