समाचार-पत्र :- हम पर छापा क्यों ?
सरकार :- हम पर क्यों छापा ?
बात इतनी सी है. ये उनसे पूछते है, वे इनसे पूछते है. मन ही मन बुरा भी मान रहे होंगे.
पहले कभी शादी-विवाह में वधु की बिदाई के समय जानियों (वर पक्ष) पर खूब छापें पडते थे परन्तु कभी किसी ने बुरा नही माना. छापा मारनेवाली होती थी वधु-पक्ष की महिलाएं और जिनके ऊपर छापें पडते थे वह होते थे वर पक्ष के खास खास पुरूष, जिसमें वर के मामाजी, मौसाजी और फूफाजी. इसमें भी फूफाजी का विशेष ध्यान रखा जाता था क्योंकि उनकी बात बात में रूठने की महिमा सबको पहले से ही पता होजाती थी. मजे की बात यह कि अगर किसी विशेष रिश्तेदार के छापा नही पडता तो उल्टे वह मन ही मन बुरा मानता था.
वैसे पूर्व में राजस्थान में प्राय: महिलाओं के पहनावें में छपी हुई चूनरी-ओढना-लूगडी (कमर के ऊपर के वस्त्र) होती थी. उनको छापने वालें छपेरा जाति के कारीगर होते थे जिनको काफी इज्जत बख्शी जाती थी जबकि इनका काम ही छापा मारना होता था.
जाने अब ही अब क्या होगया है कि छापों का बुरा माना जा रहा है ?
शिव शंकर गोयल