गुरु तो देश और कॉल ( टाइम एंड स्पेस) से ऊपर निकल जाता है

शिव शर्मा
संत कबीर उन दिनों काशी में थे। दादू दयाल नाम का एक युवक अहमदाबाद में था। वहीं जनमा था। उस के पूर्व संस्कार बहुत अच्छे थे। कबीर ने एक दिन उसे अपने ‘परम’ रूप के दर्शन कराए। दादू को समझ में आ गया कि ये ही अकाल पुरुष हैं।
यहां यह समझें कि अ-काल क्या होता है। जहां समय एक सेकण्ड के एक अरबवें भाग जितना सूक्ष्म होता है वहां अकाल होता है ; यानी वहां समय नहीं है। समय नहीं है तो आयु भी नहीं है ; अमरत्व (मरना नहीं) है। समय नही ंतो आकाश यानी स्पेस भी नहीं है। स्पेस नहीं है तो सृष्टि भी नहीं है । सृष्टि के लिए आकाश यानी खाली जगह जरूरी है।
अब प्रकाश को समझते हैं – पांचवें आयाम में प्रकाश का केवल सूक्ष्मतम कंपन है। फोटोन का कम्पन। ये कम्पन अदृश्य होते हैं। जब इनका कम्पन प्रति सेकण्ड दस लाख तक पहुंच जाता है तब ये तरंग का रूप धारण करते हैं। यह तरंग भी दिखती नहीं है। इन्हें निद्युत चुम्बकीय तरंग कहते हैं। जब इन तरंगों में कम्पन प्रति सेकण्ड पचास करोड़ तक चला जाता है तब हमें प्रकाश दिखता है। हमारे सूर्य का प्रकाश केवल तीन लोकों (भू, भुवः, स्वः) तक हैं। जब कि विद्युत तरंगों से सारा ज्ञात ब्रह्मण्ड भरा हुआ है। पांचवें आयाम में प्रकाश केवल अदृश्य कम्पन के रूप में है। जहां प्रकाश नहीं वहां जीव सृष्टि नहीं।
इस तरह अकाल का मतलब हुआ वह अवस्था जहां दिक्, काल, प्रकाश आदि नहीं है। वहां केवल शून्य है। योगी ऐसी ही स्वयं की आंतरिक अवस्था में स्थिर रहता है। इस कारण वह काल से ऊपर होता है और एक सेकण्ड में कहीं भी पहुंच जाता है।
कबीर ने दादू को यही कहा कि काल से ऊपर निकल जाओ। काल जिन्हें मारता है वे पराजित की तरह दुनिया से जाते हैं। किंतु महात्मा विजेता की भाँति जाता है – वह स्वयं ही स्थूल देह का त्याग करता है। मृत्यु (काल) उसे नहीं मारता है; मार ही नहीं सकता है।
दादू ने ऐसा ही किया। कबीर ने भी यही किया। रज्जब भी ऐसे ही गये थे। इन सब ने ब्रह्मरंध्र से जीवात्मा को निकाल दिया । फिर अकाल अवस्था में ठहर गए – अकाल पुरुष हो गए।

error: Content is protected !!