इतना ईमानदार कोई कुलपति नहीं देखा

अनंत भटनागर
तीन विश्वविद्यालयों का कार्यभार सौंपकर मुख्यमंत्री ने ओम थानवी को निहाल कर दिया है।यह कथन पत्रकार,लेखक, कथित ब्लॉगर्स खूब धड़ल्ले से प्रयुक्त करते आये हैं। इस कथन की धार को खूब नीम्बू,मिर्ची,मसाला लगाकर पेश करने वालों की भी कमी नही रही है।
मुझे आश्चर्य होता है कि तीन चार दशकों से पत्रकारिता करने का गुरूर पालने वाले अनेक पत्रकारों ने उक्त कथन को तोते की तरह दोहराया तो कई बार मगर किसी ने भी यह जानने की जरा भी कोशिश नही की कि क्या वाकई ओम थानवी सरकार के इस उपकार से निहाल हो रहे हैं।

कोई पत्रकार इतना ही पता करने की जहमत उठा लेता कि तीन विश्वविद्यालयों का कुलपति रहता कहाँ है,तो ही उसकी ज़ुबान पर ताला लग जाता। इस दौर में जहां कुलपति बड़े बड़े सरकारी आवासों में शाही ज़िन्दगी जीते हैं ,वहीं ओम थानवी आज भी जयपुर में ढाई कमरों के फ्लैट में रहते हैं।वह फ्लैट भी कोई सरकारी नही है, बल्कि उनके पुत्र का निजी आवास है।पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पास अपना निजी कुलपति आवास नही है ,मगर वे बड़ा आवास सरकारी किराए पर लेने के हकदार हैं। इसके बावजूद उन्होंने नए बने विश्वविद्यालय पर आर्थिक भार डालने के बजाय अपने पुत्र के घर में ही रहना उचित समझा।
अभिमान रहित जीवन का उदाहरण उन्होंने अजमेर ज्वाइन करते ही दिया। उन्होंने कुलपति के लिए निर्धारित ऊंची कुर्सी को देखते ही हटवाने का आदेश दिया। जब सामान्य कुर्सी रखी गई तब ही वो कुर्सी पर बैठे। आम तौर पर बड़े अधिकारियों के कक्ष में सीसीटीवी कैमरा नहीं लगाए जाते हैं,उन्होंने आदेश दिए कि कुलपति के कक्ष में भी कैमरा लगे। आखिर कुलपति कक्ष में ऐसा गोपनीय क्या होता है,जिसे किसी और को नही देखना चाहिए?

म द स विश्वविद्यालय ,अजमेर का कार्यभार मिलने पर अजमेर कुलपति की सरकारी गाड़ी उनके उपयोग के लिए जयपुर निवास पर पहुंचा दी गई थी। उन्होंने वह गाड़ी यह कहकर वापिस लौटा दी कि – ” ओम थानवी तो आदमी एक ही है,वह तीन गाड़ियों में एक साथ कैसे बैठेगा?”
जब छोटे बड़े अधिकारी दो दो तीन तीन गाड़ियां अपने बंगले के बाहर खड़ी रखने में अपनी शोभा समझते हैं,उनके घरवाले सरकारी गाड़ियों का खुलेआम उपयोग करते हैं, ऐसी नैतिकता का उदाहरण बिरले ही देखने को मिलता है।

एक ऐसी ही घटना और भी रोचक है।एक बार श्री ओम थानवीअजमेर आ रहे थे तो उनके साथ उनके परिवार के सदस्य भी अजमेरा घूमने की मंशा से साथ आ गये।वे सभी विश्वविद्यालय के सरकारी गेस्ट हाउस में रात को ठहरे। गेस्ट हाउस का एक कक्ष उन्हें व एक उनके पुत्र-पुत्रवधू ने उपयोग में लिया। वापिस जयपुर लौटते समय उन्होंने पुत्र पुत्रवधू द्वारा प्रयुक्त कमरे का किराया पुछवाया और बिल मंगवाया ।यह सुनकर कार्मिकों के होश उड़ गए। उन्होंने सपने में भी नही सोचा था कि कुलपतिजी उनका बिल चुकाएंगे । जिस गेस्टहाउस को वहां के प्रोफेसर भी अपनी जागीर समझते आये हों और अपने मिलने वालों को ठहरा कर उपकृत करवाने में अपनी शान समझते आये हों वहां कुलपति द्वारा अपने बच्चों के उपयोग का किराया चुकाना अचरज की बात थी। स्टाफ ने उनसे बहुत अनुनय विनय की,मगर वो नहीं माने और किराया ही नहीं उनके खाने के खर्च का भी खुद भुगतान किया।

अजमेर विश्वविद्यालय के काम से अजमेर आने पर वे नियमानुसार यात्रा व्यय लेने के हकदार थे। लेकिन विश्व विद्यालय के कर्मचारी बताते हैं कि उन्होंने ग्यारह महीने के कार्यकाल में एक बार भी भत्ता नही लिया। यहां तक कि उनसे मिलने अगर कोई परिचित या मित्र आ गए और उन्होंने उनके साथ गेस्टहाउस में भोजन किया तो उनके खाने का खर्च भी खुद की जेब से उठाया।विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ कर्मचारी ने भरी आंखों से मुझसे कहा कि मैंने अपनी ज़िंदगी में इतना ईमानदार कोई कुलपति नहीं देखा।

ईमानदारी और नैतिकता की ये मिसालें आज के दौर में दुर्लभ होती जा रही हैं । इन मिसालों को सामने लाने की जरूरत है। मगर,लोग एक प्रवाह में बहकर जब उल्टा सीधा लिखते हैं तो दुख होता है।

तीन विश्वविद्यालयों का कुलपति होना शान की बात तो है मगर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि तीन विश्वविद्यालयों के कुलपति को वेतन तीन नहीं एक ही जगह से मिलता है और उसे काम तीन गुना ज्यादा करना पड़ता है। इस गणित को भी पढ़ा जाना चाहिये।

*अनन्त भटनागर*

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