भूख का कमाल

रास बिहारी गौड़
नौकरी नहीं हैं..जिनकी हैं,वे सुरक्षित नहीं हैं.. सार्वजनिक और जनहित के सारे उपक्रम निजी हाथों में सौंपे जा रहे हैं..महँगाई को विकास माना जा रहा है..आर्थिकी चौपट हैं..। सबके बावजूद कोई आवाज़ नहीं हैं…इसका मतलब सब चंगा सी..देश में मौजा ही मौजा ..।
सच्चा शासन वही होता है जो भूखों को भूखा मरना सिखाए और भरे पेटों को और भूखा कर दें..ले..।
*उदाहरण से समझ सकते हैं- माना आप चार रोटी खाकर डकार लेते हैं..तो सत्ता सबसे पहले डकार को बीमारी बताकर रोटीयों पर पाबंदी लगाएगी..अधिकतम दो रोटी खाने का क़ानून पास करेगी.. जब पेट दो रोटी में भरने लगेगा …तो कुछ दिन बाद एक रोटी खाने को देश भक्ति से जोड़कर आपका देशप्रेम जगाएगी..आप एक रोटी में ख़ुश रहने लगेंगे तो ज़िंदाबाद-ज़िंदाबाद बोलेंगे…। सरकार अपनी योग्यता से उत्साहित होकर “रोटी छीनों” अभियान को घर-घर पहुँचाएगी…धर्म को रोटी से जोड़कर उपवास का आह्वान करेगी..। *
इस तरह भूखा आदमी अपनी भूख के लिए कोई आवाज़ नहीं उठाएगा..। उसके हिस्से की सारी रोटियाँ सरकार ख़ुद या अपने पालतुओं को खिलाकर देश का विकास करेगी..। आख़िर भूख तो उनकी भी है…ये भूख का ही कमाल है ..कि सरकार के ख़िलाफ़ कोई नहीं बोल रहा।

*रास बिहारी गौड़*

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