वायुमण्डल आज विषैला ,
नदियों का पानी मटमैला ।
धरती पेड़-लताओं के बिन ,
चहुँ ओर है मरुस्थल फैला ।
धरती माँ को ख़ूब रुलाया ।
मानव तेरी अद्भुत माया ।।
सागर को तुमने झंझोड़ा ,
पर्वतमाला को नहीं छोड़ा ।
जंगल में भी महल बनाए ,
पशु-पक्षी सारे घबराए ।
सबको तुमने बहुत सताया ।
मानव तेरी अद्भुत माया ।।
खेतों में विष को फैलाया ,
फैलाकर खाद्यान्न उगाया ।
जितनी पैदावार बढ़ाई ,
उतनी ही बीमारी आई ।
बीमारी का ग्राफ़ बढ़ाया ।
मानव तेरी अद्भुत माया ।।
तुमने अंतरिक्ष को चूमा ,
चाँद और ग्रहों पर घूमा ।
नित कुछ करने की तैयारी ,
मुट्ठी में नभ-धरती सारी ।
जिसको चाहा उसे दबाया ।
मानव तेरी अद्भुत माया ।।
अनगिन मौतों के संवाहक ,
परमाणु युद्धों के नायक ।
तुमने बहुत तरक़्क़ी की है ,
दुःख की बहु सौगातें दी है ।
जीने को अभिशाप बनाया ।
मानव तेरी अद्भुत माया ।।
– कवि नटवर पारीक, डीडवाना