रूहानी संवाद

शिव शर्मा
कबीर की गति सर्वापरि नाद मण्डल तक थी। वे स्वयं नादयोग के फकीर थे – स्वयं के हृदय में नाद , ओम् की गुंजार, साहं का नद सुनते थे। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में भी यही नाद गूंज रहा है। यही हमारी श्वास में सोहं है और चिदाकाश (चित् रूपी आकाश) में ओम् है। इसी का साकार रूप् सगुण ब्रह्म है। इसी सगुण ब्रह्म के तीन प्रमुख रूप – ब्रह्म, विष्णु, महेश हैं। । कबीर ने यह देखा। इस की अनुभूति की। फिर कहा कि – मो को कहां ढूंढे बन्दे, मै तो तेरे पास में अर्थात् हृदय में ।
यहां तक पहुंचने का उपाय है ध्यान योग। स्वयं के श्वास पर ध्यान टिकाना। श्वास में ही सोहं सुनाई देगा। यही सोहं जब सूक्ष्म होजाएगा तब ओम् सुनाई देगा। यही ओम् आदि नाद है, आदि ज्योति है। यही परब्रह्म है। इसी को निराकार, अनादि, अनंत कहा गया है। इसी का सूक्ष्मतम बिंदु आत्मा है – जो बिंदु प्राणी में आत्मा है वही ब्रह्मण्ड में ब्रह्म है। वैसे ही जैसे – जो धरती पर पहाड़ दिखता है उसके लिए वैज्ञानिक कहेगा कि यह ऊर्जा का ही स्थूल रूपांतरण है। वैज्ञानिक यह जानता है किंतु हम नहीं जानते हैं। इसी तरह महात्मा गण जानते हैं कि ईश्चर हमारे हृदय में ही है लेकिन हम नहीं जानते हैं।
ध्यान योग का सफलतम उपाय है अपने आप को देखते रहना। स्वयं के अंदर वाले मनुष्य पर नजर रखना। गृहस्थी में रहते हुए लगातार ऐसा अभ्यास करते रहने से अंततः हम अपने आत्मा तक पहुंच सकते हैं।

क्बीर ने कहा है कि खुद को हेरते हेरते वे खुदा
तक पहुंच गये । तब वे बोले . मो को कहां ढूंऐ बंदेए मै तो तेरे पास में । आत्मा आपके अंदर है तो वहीं उसकी अनुभूति होगी य बाहर कहीं नहीं। इसका उपाय है ध्यान योग। अपनी आत्मा के ध्यान में ठहरना। ध्यान प्रक्रिया को स्वयं के ही शरीर से शुरू करो . अपने शरीर को विपश्यना वाली विधि से देखते रहो – यह स्वस्थ है अथवा रोगी। फिर इंद्रियों पर ध्यान लगाओ . भोग में प्रवृत्त रहती हैं या योग में अथवा दोनो में। इसके बाद मन को टटोलो . राग.द्वेष , लोभ.मोहए शत्रु.मित्र.भाव आदि में उसकी लिप्तता। अब बुद्धि पर नजर रखो . नकारात्मक.सकारात्मक विचार, वैचारिक अस्थिरता, संशय, सन्देह आदि । तत्पश्चात् अहंकार . कर्ता भाव का अभिमान और भोक्त होने की आसक्ति। इन चारों पक्षों पर ध्यान लगाने का अभ्यास करो। धीरे धीरे जो कुछ भी गलत है, अनैतिक है, अकर्तव्य है, वासनामय है, पतनकारी है और रूहानी यात्रा में बाधक है वह कम होने लगेगाै। वह छूटता जायेगा । स्वतः ही ध्यान शरीर से इंद्रियों की तरफ मुड़ेगा। फिर यही ध्यान इंद्रियों से मन ,बुद्धि, अहंकार आदि की तरफ मुड़ता हुआ रूह तक पहुंच जायेगा।
यह स्थूल से सूक्ष्म की यात्रा है। जैसे पदार्थ से कण, अणु, परमाणु तक जाने का क्रम। फिर परमाणु से इलेक्ट्रान, प्रोटोन एवं न्यूट्रोन तक पहुंचना। इस से भी आगे क्वार्क, लेप्टान, हिग्स बेसान आदि मूल कण और फिर हाईड्रोजन, हीलियम आदि गैस। अंततः महासफोट। यह जड़ प्रकृति में स्थूल से सूक्ष्मतम तक पहुंचना है। ऐसे ही शरीर से इंद्रियां, मन, बुद्धि, अहंकार, जीवात्मा, आत्मा और परमात्मा तक चले जाना या अनुभूति करना ध्यान योग से सम्भव है। ऐसी अनुभूति ही आत्म दर्शन है, रूहानी दर्शन है, परमात्म दर्शन है। जो आपके भीतर है वह वही तो दिखेगा। बाहर तो प्रकृति है य आत्मा अंदर हे।
इसलिए स्वयं के आत्मा का ध्यान करो। स्थूल देह से परम ज्योति स्वरूप ब्रह्म तक पहुंचो। विज्ञान तो पदार्थ से बिगबैंग ;महाविस्फोटद्ध तक चला गया है। हमारे ऋषि गण व अनेक महात्मा भी देह से अदेह तक पहुंचं हैं। अब हमें भी यही प्रयास करना है। पारीवारिक एवं सामाजिक दायित्व निभाते हुए आतमानुभूति भी करनी है। प्रति दिन एक घण्टा ध्यान का अभ्यास . नाम के सहारे या श्वास के सहारे। संकल्प एवं अभ्यास से सब सम्भव है।

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