-कांग्रेस के शासनकाल में पेट्रोल, डीजल व रसोई गैस सिलेंडर के दाम बढ़ने पर छाती-माथा पीटने वाले भाजपाई अब कहां हैं
-पहले पानी पी-पीकर कांग्रेस सरकार को कोसने वाली स्मृति ईरानी अब क्यों नहीं बोल रही हैं
-अपनी पार्टी के राज में चुप्पी साधने वाले कांग्रेसी अब क्यों सड़क पर उतर कर विलाप कर रहे हैं
✍️प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
👉पेट्रोल, डीजल व रसोई गैस सिलेंडर के दामों में आए दिन हो रही बढ़ोतरी के खिलाफ जहां कांग्रेसी सड़कों पर उतर कर विलाप कर रहे हैं, वहीं भाजपाइयों के मुंह पर ताले लटके गए हैं। केंद्र में कांग्रेस के शासनकाल में पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस सिलेंडर के दाम बढ़ने पर खूब छाती-माथा पीटने वाले भाजपाई अब किधर हैं। अब क्यों नहीं मुंह खोल रहे हैं। क्या अपनी पार्टी की सरकार होने का यह मतलब है कि जनता पर आए दिन लादे जा रहे भार पर भी मुंह सिल लिए जाएं। क्या अब जनता की पीड़ा उन्हें दिखाई-सुनाई नहीं दे रही है। प्रेम आनंदकरयदि यही बात है तो फिर क्यों कांग्रेस के शासनकाल में गला फाड़-फाड़ कर चिल्लाते थे। जैसे पहले चिल्लाते थे तो वैसे ही अब चिल्ला कर बताओ, तब मानें कि वास्तव में भाजपाई जनता के हमदर्दी हैं। कांग्रेस के राज में सरकार को पानी पी-पीकर कोसने वाली स्मृति ईरानी को क्या अब जनता की तकलीफ का अहसास नहीं हो रहा है। मतलब सत्ता सुख में जनता की पीड़ा का कोई महत्व नहीं है। अब यही सवाल कांग्रेसियों से भी है। जब अपनी पार्टी के शासनकाल में इन सब चीजों के दाम बढ़ने पर मुंह सिल कर बैठे हुए थे तो अब क्यों सड़क पर उतर कर चिल्ला रहे हो।जिस तरह अब धरना प्रदर्शन कर रहे हो, उसी तरह अपनी सरकार के समय में भी करते तो लगता कि उन्हें जनता की चिंता है। कुल मिलाकर यह तो सियासी खेल है, जिसे भाजपा और कांग्रेस अच्छी तरह खेलना जानती है। वो तो जनता ही बेवकूफ, नादान, नासमझ, पागल है जो राजनीतिक दलों के झांसों में आ जाती है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा व मणिपुर विधानसभा चुनावों को देखते हुए उस वक्त ना केवल पेट्रोल-डीजल पर पांच रुपए घटा दिए थे, बल्कि चुनाव परिणाम आने तक कोई दाम नहीं बढ़ाए थे। लेकिन चुनाव निपटते ही फिर जनता पर बोझ लादने का सिलसिला शुरू हो गया। फिर जैसे गुजरात सहित अन्य राज्यों के विधानसभा चुनाव नजदीक आएंगे, तब यह सिलसिला थम जाएगा और चुनाव निपटते ही फिर खेल शुरू हो जाएगा। राजनीतिक दल इसी तरह खेल खेलते रहेंगे और जनता ऐसे ही ठगी जाती रहेगी। सत्तारूढ़ पार्टी के लोग मुंह पर ताले लटका लेंगे और विपक्षी पार्टियों के लोग विलाप करेंगे। अब चाहे सत्ता में भाजपा आए या कांग्रेस, दोनों दलों के लोग तब अपनी-अपनी बहुरूपियाई भूमिका बखूबी निभाएंगे।