बेर ही बेर : हास्य-व्यंग्य

शिव शंकर गोयल
आम तौर पर बेर तीन तरह के होते हैं. पेमली,गोला और झडबेरी (छोटा और लाल). बेर का पेड बेरी कहलाता है तभी तो फिल्म “अनोखी रात” में नायिका अरूणा ईरानी नायक को खबरदार करती है कि “मेरी बेरी के बेर मत तोडो, कोई कांटा चुभ जायेगा.” खैर, उनकी वह जाने.
बेर को लेकर कभी 2 तानाकशी भी होजाती है. मसलन एक बार एक ठेलेवाला, एक भव्य मकान के सामने, फुटपाथ पर, “एक के चार,” “एक के चार” (एक रू. के चार बेर) आवाजें लगाता हुआ, गोला बेर बेच रहा था. कुछ देर बाद मकान मालकिन, जिसका पति मकानों की रजिस्ट्री करने वालें महकमें में ऑफीसर था, को लगा कि कही इस ठेलेवालें को मेरे पति की ऊपरी कमाई का पता लग गया दिखता है और यह हमारे पर तानाकशी कर रहा है . वह मकान से बाहर निकल कर आई और बड-बडाने लगी कि एक के चार तो सभी कर रहे है. अकेले हम ही थोडे है फिर यह ठेलेवाला हमारे पर ही क्यों ताना कस रहा है ? इसे बेर ही तो बेचना है कही और भी जाकर बेच सकता है. उसके बड-बडाने से वहां से निकलने वालें राहगीरों की भीड लग गई. इधर बेरवाला भी अड गया कि मैं आम सडक पर अपना माल बेच रहा हूं. वहां मौजूद कुछ लोगों ने दोनों पक्षों को समझा बुझाकर मामला शांत किया.
बेर को लेकर राजस्थानी में भी कई कहावतें है उनमें एक कहावत इस तरह है –
“चालबो रस्ते रस्ते, चाहे फेर ही हो. बैठबो छायां म्है, चाहे (पेड) बेर ही हो.
खाबो मां का हाथ को, चाहे जहर ही हो.” (यह तुकबंदी है. कोई मां अपने बेटे को जहर नही दे सकती)
बेर को लेकर एक कवि ने रचना इस तरह भी की है –
“ऊंचे घोर मंदर के अंदर रहनवारी, ऊंचे घोर मंदर में रहाती है.
कंदमूल भोग करै, तीन बेर खाती थी, तै वै तीन बेर खाती है.”
रोजमर्रा की बोलचाल में भी बोल दिया जाता है आपको कितनी बेर यानि कितनी बार कहा हैं. आदि.

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