राजनीति में कुरसीमाई (व्यंग्य रचना)

सुनील कुमार महला
न जाने किसने बनाई है ? कुर्सी में ही असली मलाई है। आज की इस दुनिया में कुर्सी के प्रति खूब रूझान है, कुर्सी ही जहान है, कुर्सी ही महान है। कुर्सी पर बैठते ही सबको राजा का सा अहसास होता है। अंग्रेजी में कहते जिसे ‘चेयर’ है, कुर्सी प्राप्ति के लिए इस दुनिया में सबकुछ ‘फेयर’ है। कुर्सी आदमी को देती ‘चीयर'(खुशी) है, कुर्सी है तो न किसी का ‘फीयर'(डर) है। कुर्सी राजनेताओं की असली हमदम है। कुर्सी है तो जीवन चमाचम है। कुर्सी नहीं है तो ग़म ही ग़म है, हर तरफ फिर तम ही तम (अंधेरा) है। कुर्सी कंचन है, कुर्सी वंदन है, कुर्सी ही चंदन है, कुर्सी अभिनंदन है। कुर्सी पावर है, कुर्सी पर दिलो-जान न्यौछावर है। रामलुभाया जी नेता हैं। नेता और कुर्सी का सीधा संबंध है। रामलुभाया जी कुर्सी पर बैठकर जुबान हिलाते हैं। काम सारे पल में कुर्सी के बल करवाते हैं। कुर्सी की यही तो असली खूबी है, यही जूही यही रूबी है। शासन की कुर्सी में ठाठ ही ठाठ हैं, पावर में नौकर-चाकर, बंगला-गाड़ी अस्सी गुणा आठ हैं। आओ आओ खा-पी लें कुर्सी की मलाई, राजनीति में बेस्ट है कुरसी माई। ये कुर्सी तो है बड़ी हाई-फाई। एक बार हाथ आई तो बन बैठते राजनेता जैसे हो शासन के जंवाई। मन में लड्डू ही लड्डू कुर्सी हासिल होने के बाद फूटते। न होती हासिल कुर्सी तो राजनेता हर ऱोज रूठते। फिर आंसू ही आंसू गालों से उनके छूटते। कुर्सी से चेहरे पर होता है इनके वसंत। आम आदमी का फिर पांच साल ले लेते हैं ये अंत। महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, लालफीताशाही कुर्सी को न आते कभी नजर। लेते हैं राजनेता अपनी व अपनी सातों पीढ़ियों की ही खबर। कुर्सी से जाते पांच साल तक चिपक। माल कितना बना लिया, लगती नहीं किसी को तनिक भी भनक। कुर्सी से होता है सभी नेताओं को खूब मोह, चाहते नहीं कभी भी कुर्सी से बिछोह। कितनी बड़ी बात है कि हमारे नेता कभी जमीन पर बैठने का करते नहीं अभ्यास। होता है कुर्सी हथियाने का उनका सदा ही नायाब प्रयास। कुर्सी की आश(आशा) में ही सभी राजनेता हैं जीते। सत्तासीन होकर सुख के घूंट ही सब पीते। वो एक दिन रामलुभाया जी की पत्नी ने रामलुभाया जी से कहा-‘अजी ! बीच-बीच में आम आदमी की तरह आप भी तो जमीन पर बैठा करो। यूं कुर्सी को लेकर सदा ही न ऐंठा(शेखी बघारना) करों, क्यों कि हर वक्त कुर्सी नसीब नहीं होती है, अजी ! कभी नाव गाड़ी पर तो कभी गाड़ी नाव पर होती है। अजी ! कुर्सी साधारण से साधारण आदमी को भी भाषण सिखलाती है। भाषण ही राजनेताओं व राजनीति की असली थाती है।

सुनील महला,
स्वतंत्र लेखक व युवा साहित्यकार
पटियाला, पंजाब
मोबाइल 9828108858

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