सबकी है ये धरती (22 मई विशेष अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस)

सुनील कुमार महला
प्रत्येक वर्ष 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता(जैव वैविध्य) दिवस(इंटरनेशनल बायोडायवर्सिटी-डे) के रूप में मनाया जाता है। जानकारी देना चाहूंगा कि 29 दिसंबर वर्ष 1992 को संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ के तत्‍वाधान में नैरोबी में जलवायु सम्‍मेलन में जैव विविधता पर दुनिया का ध्‍यान गया था और इसी सम्‍मेलन में यह फैसला लिया गया था कि प्रत्‍येक वर्ष वैश्विक स्‍तर पर जैव विविधता दिवस मनाया जाएगा। यहां यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि पहले इसे 29 मई को मनाने का फैसला किया गया था, लेकिन बाद में इसे 22 मई को मनाने पर सहमति बनी। तब से 22 मई को पूरी दुनिया में जैव- विविधता दिवस मनाने की परंपरा शुरू हुई। धरती ग्रह के पारिस्थितिकीय तंत्र के संतुलन को बनाए रखने के जैव विविधता बहुत आवश्यक है। वास्तव में, अंतर्राष्ट्रीय जैव-विविधता दिवस (इंटरनेशनल डे फॉर बॉयोलोजिकल डायवर्सिटी) जैव-विविधता संरक्षण की भावना को बढ़ावा देता है। इसमें पर्यावरण के प्रति सम्मान और इसके संरक्षण हेतु उत्तरदायित्व की भावना निहित है। जैव वैविध्य या जैव विविधता पृथ्वी पर जीवन की विविधता और परिवर्तनशीलता है। यहाँ जानकारी देना चाहूंगा कि जैव विविधता दो शब्‍दों के मेल से बना है। बायो(जैव) और डायवर्सिटी(विविधता)। यहाँ ‘बायो’ का अर्थ है ‘जीव’ तथा ‘डाइवर्सिटी’ का अर्थ है ‘विविधता।’ साधारण शब्‍दों में किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवों की संख्‍या और उनकी विविधता को जैव विविधता कहते हैं। इसका संबंध पौधों के प्रकार व प्राणियों तथा सूक्ष्‍म जीवाणुओं से है। जैव विविधता एक सजीव संपदा है। यह विकास यात्रा के लाखों वर्षों का परिणाम है। जैव विविधता, जैसा कि इसके नाम से ही यह स्पष्ट है कि यह पृथ्वी पर जीवन की विविधता को संदर्भित करती है। इसमें प्रजातियों की विविधता, पारिस्थितिक तंत्र और प्रजातियों के भीतर आनुवंशिक विविधता को शामिल किया जा सकता है। यह पौधों, जानवरों, कवक और सूक्ष्मजीवों की विविधता के साथ-साथ उन पारिस्थितिक तंत्रों की विविधता को समाहित करता है, जिनमें वे निवास करते हैं। जैव विविधता के प्रकारों में क्रमशः पारिस्थितिकीय तंत्र विविधता(वन,महासागर, आर्द्रभूमि), प्रजाति विविधता(किसी क्षेत्र विशेष में रहने वाली विभिन्न प्रजातियों की विविधता), आनुवांशिक विविधता(एक प्रजाति के भीतर आनुवांशिक भिन्नता की विविधता), कार्यात्मक विविधता(भूमिकाओं, कार्यों और प्रक्रियाओं की विविधता को संदर्भित करता है जो विभिन्न प्रजातियों और उनकी अंतःक्रियाओं में पारिस्थितिकी तंत्र में होती है) तथा सांस्कृतिक विविधता(मानव व प्रकृति के बीच) को शामिल किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में कहें तो, जैव विविधता किसी एक क्षेत्र में मौजूद विभिन्न प्रजातियों और इन प्रजातियों के पारिस्थितिक तंत्र की विविधता है। हम यूं भी कह सकते हैं कि ‘जैव विविधता (बायो डायवर्सिटी) पृथ्वी पर व्याप्त सभी जीव स्वरूपों यानी कि पादप व जन्तु की ‘जैविक विविधता’ होती है जो इन प्राणियों की जाति, आनुवांशिकी व इनकी पारिस्थितिकी(इकोलॉजी) में पायी जाती है।’ सरल शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवों एवं वनस्पतियों की संख्या एवं प्रकारों को जैव विविधता कहा जा सकता है। जानकारी देना चाहूंगा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 20 दिसंबर, 2000 को 22 मई को “अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस” के रूप में घोषित किया था। इसके पीछे यूएनओ का मुख्य उद्देश्य यह था की विश्व में सभी लोगों को जैव विविधता के प्रति सतर्क किया जा सके जिससे विश्व की जैव विविधताएं बनी रह सकें और उसका संरक्षण किया जा सके। यहाँ यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि विश्व जैव विविधता दिवस 2020 की थीम-‘हमारे समाधान प्रकृति में हैं’, वर्ष 2021 की थीम-‘हम समाधान का हिस्सा हैं’, तथा वर्ष 2022 की थीम-‘ सभी जीवन के लिए एक साझा भविष्य का निर्माण’ रखी गई थी। इस वर्ष इस दिवस की थीम या यूं कहें कि विषय(सब्जेक्ट) का प्रस्ताव(कॉप-15 के परिणामों पर आधारित) ‘समझौते से कार्रवाई तक: जैव विविधता का निर्माण'(फ्रॉम एग्रीमेंट टू एक्शन: बिल्ड बैक बॉयोडायवर्सिटी) रखी गई है। बहरहाल, कहना गलत नहीं होगा कि जैव-विविधता धरती की एक प्रमुख विशेषता है और इसकी उपस्थिति बिना धरती पर जीवन के अस्तित्व की कल्पना करना संभव नहीं है। जैव विविधता मानव सभ्यता के लिए बहुत उपयोगी है और इसे संरक्षित करना आवश्यक है। पर्यावरणविदों के अनुसार मानव जीवन के प्रारंभ होने से पहले इस धरती पर जैव विविधता किसी भी अन्‍य काल की तुलना में बहुत अधिक थी। मानव के आने से जैव विव‍िधता में तेजी से कमी आने लगी, क्‍योंकि किसी एक या अन्‍य प्रजाति का आवश्‍यकता से अधिक उपभोग होने के कारण वह लुप्‍त होने लगी। पर्यावरणविद बताते हैं कि संसार में कुल प्रजातियों की संख्‍या 20 लाख से 10 करोड़ तक है और वर्तमान समय में भी वैज्ञानिक लगातार नई प्रजातियों की खोज में जुटे हैं और यह खोज लगातार जारी है। करीब 99 फीसद प्रजातियां जो कभी धरती पर विद्यमान थी आज विलुप्‍त हो चुकी हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार विश्व में विभिन्न जीव व पेड़-पौधों की संख्या 1.5 से 20 करोड़ तक हो सकती थी, जो प्रतिवर्ष तेजी से घट रही है। इस पृथ्‍वी की जैव विविधता एक जैसी नहीं है। उष्‍ण कटिबंधीय प्रदेशों में जैवविविधता अधिक पाई जाती है, और जैसे-जैसे हम ध्रुवीय प्रदेशों की तरफ बढ़ते हैं प्रजातियों की यह विविधता नहीं मिलती है अर्थात कम देखने को मिलती है। यहाँ जानकारी देना चाहूंगा कि मानव प्रजाति, जैव विविधता(बायो डायवर्सिटी) का एक अभिन्न और प्रभावशाली घटक है। हमारे शरीर में असंख्य सूक्ष्म जीवों की मौजूदगी रहती है। इनके बिना हम जीवित नहीं रह सकते हैं। भूमि और जैव विविधता के निरंतर क्षरण, बढते कुपोषण भूख और पर्यावरणीय अन्याय से अनिश्चितता बढती जा रही है। अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर जैव विविधता आवश्यक क्यों है ? तो इस प्रश्न का उत्तर यह है कि पारिस्थितिकीय तंत्र(पारिस्थितिकीय तंत्र व प्रक्रियाओं का संतुलन) को बनाए रखने के लिए जैव विविधता बहुत आवश्यक है। जैव विविधता के कारण ही फसलों का परागण, कीट नियंत्रण, मृदा संरक्षण संभव होता है। यह पृथ्वी की जलवायु प्रणाली के कामकाज और मानव आजीविका के लिए विभिन्न प्रकार के संसाधन उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण व अहम् भूमिका का निर्वहन करती है। सच तो यह है कि प्रजातियों की विविधता धरती की जलवायु को नियंत्रित करने में सहायक होती हैं। इसके अतिरिक्‍त यह वायुमंडलीय गैस को स्थिर करने में मदद करती है। इसी जैव विविधता के कारण ही यह धरती मानव के रहने योग्‍य बनी है। जैव विविधता के कारण ही भोजन,दवा, लकड़ी, विभिन्न मूल्यवान सामान व सेवाओं की प्राप्ति हो पाती है। मानव संस्कृति और कल्याण के लिए भी जैव विविधता बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखती है, क्यों कि ये हमें विभिन्न मनोरंजन अवसरों के साथ ही आध्यात्मिक और सौंदर्य मूल्य प्रदान करती है। जानकारी देना चाहूंगा कि यह (जैव विविधता) वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए जानकारी का एक मूल्यवान व अहम् स्रोत है, जो प्राकृतिक दुनिया की हमारी समझ को गहरा करने और संरक्षण के प्रयासों में सुधार करने में मदद करती है। पर्यावरण से कार्बन डाइऑक्साइड(सीओटू) और अन्य ग्रीनहाउस गैसों को अवशोषित करके, समुद्र तटों की रक्षा और ( कटाव, मिट्टी के क्षरण और मरुस्थलीकरण को रोककर, पृथ्वी की जलवायु को विनियमित करने में जैव विविधता और पारिस्थितिक तंत्र महत्वपूर्ण हैं। हमें यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि परितंत्र में जितनी अधिक विविधता होगी विभिन्न प्रजातियों के प्रतिकूल स्थितियों में रहने की संभावना और उनकी उत्‍पादकता भी उतनी ही अधिक होगी। जिस परितंत्र में जितनी प्रकार की प्रजातियां होंगी वह परितंत्र उतना ही अधिक स्‍थाई होता है। लेकिन पिछले कुछ दशकों से जनसंख्‍या वृद्धि व विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं के कारण और अन्‍य कारणों से इन विभिन्न प्रजातियों के अस्तित्‍व पर लगातार खतरा मंडरा रहा है। अंत में यही कहना चाहूंगा कि जैव विविधता जीवन का आधार है, यह पृथ्वी पर रहने वाले प्रत्येक जीव को अद्वितीय बनाती है और प्रकृति को फलने-फूलने देती है। वास्तव में, जैव विविधता का संरक्षण किसी व्यक्ति विशेष ,समाज विशेष, देश विशेष की जिम्मेदारी नहीं है, अपितु जैव विविधता का संरक्षण हम समस्त मानव जाति का साझा उत्तरदायित्व है। कुछ अध्ययनों से ज्ञात होता है कि वनस्पतियों की हर आठ में से एक प्रजाति विलुप्तता के खतरे से जूझ रही है। जैव विविधता के लिए पैदा हुए ज्यादातर जोखिम प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बढ़ती जनसंख्या, जो कि बेलगाम दर से बढ़ रही है, से जुड़े हुए हैं। आज भारत दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश हो गया है। विश्व की वर्तमान जनसंख्या 7.84 अरब है, जिसके 2050 तक 10 अरब या इससे भी अधिक तक पहुंचने के अनुमान व्यक्त किए गए हैं। तेजी से बढ़ती इस जनसंख्या से दुनिया के पारिस्थितिकी तंत्रों और प्रजातियों पर अतिरिक्त दबाव तो पड़ना ही है। याद रखिए पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं की जितनी विभिन्न प्रजातियां होंगी, उनकी उपयोगिता मानव जीवन के लिए उतनी ही अधिक होगी, क्योंकि यह सब हमें मात्र भोजन ही नहीं बल्कि फल, फूल, औषधी, लकड़ी, मसाले, जन्म से मृत्यु तक की हर उपयोगी व आवश्यक वस्तुएं प्रदान करते हैं। मानव को टेक्नोलॉजी व विज्ञान के साथ ही मशीनों के विकास के साथ इन जीवित प्राणियों, वनस्पतियों का उनकी विविधता का मोल हमें निश्चित रूप से समझना होगा व इनके संरक्षण के उपाय भी करने होंगे। प्रकृति ने जैव-विविधता के रूप में जो भी अपार प्राकृतिक संपदा हम मानवजाति को दी है, पेड़-पौधों व हर प्राणी मात्र में विभिन्न प्रजातियां व उनमें विविधता निर्मित की है, उसे बचाने हेतु बनाए रखने के हमें यथेष्ठ व नायाब प्रयास करने होंगे। आज बढ़ते औधोगीकरण, शहरीकरण, वनों की अंधाधुंध कटाई, खनन, धरती के संसाधनों का अंधाधुंध दोहन, बढ़ती जनसंख्या के कारण जैव-विविधता बुरी तरह से प्रभावित हुई है। जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण, औधोगीकरण के कारण प्राकृतिक चरागाह खत्म हो गये हैं, वन्य जीवों पर संकट आ गया है, हर तरफ कंक्रीट की ही कंक्रीट की दीवारों को हम देख रहे हैं, वन्य जीवों के अधिवास नष्ट हो गये हैं। आवासीय क्षति से वन्य प्राणियों, वनस्पतियों पर संकट आ खड़ा हो गया है। वनस्पतियों, जीव जंतुओं का अस्तित्व लगातार खतरे में है। कई प्रजातियां लुप्त होने की कगार पर है या लुप्त हो चुकी है। जंगली जानवरों का अवैधानिक शिकार हो रहा है, मनुष्य के लालच व स्वार्थ के चलते जैव विविधता पर लगातार खतरा मंडरा रहा है। मानव-वन्य जीवन संघर्ष जारी है। विकास जैव विविधता को कहीं न कहीं छीन रहा है, संतुलन नहीं है। सड़क, रेलमार्गों के लिए वनस्पति क्षेत्रों व प्राणियों को उजाड़ा जा रहा है।कृषि भूमि आज आवासीय भूमि में तब्दील की जा रही है। आज के समय में लगातार बढ़ता हुआ औधोगीकरण(इंडस्ट्रीयलाइजेशन) वनों,चरागाहों को लगातार लीलता चला जा रहा है। यह बहुत ही गंभीर व संवेदनशील है कि आज वन्य प्राणियों को भोजन, सजावट की वस्तुओं व बाजार मूल्य की अधिकता, स्वार्थ व लालच की पूर्ति के लिए के लिए मारा जा रहा है।जैव विविधता के संरक्षण के लिए हमें अपने स्वंय के हित में मानसिकता विकसित करनी होगी। जैव विविधता के संरक्षण के लिए हमें राष्ट्रीय उद्यानों,अभ्यारण्यों की स्थापना करनी होगी,इनका संरक्षण, संवर्धन करना होगा।वनस्पतियों के संरक्षण के लिए जीन बैंकों,बीज बैंकों की स्थापना करनी होगी। वनों का विनाश रोककर अधिकाधिक वन लगाने होंगे, वनों का संरक्षण(वृक्षारोपण करके) करना होगा। जल संसाधनों का किफायती उपयोग करना होगा। धरती के संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करना होगा। अनियंत्रित खनन पर पाबंदी लगानी होगी। जल के अंधाधुंध दोहन पर नियंत्रण करना होगा। हमें धरती के विभिन्न मरूस्थलीय क्षेत्रों को हरा भरा व ऊपजाऊ बनाने के प्रयास करने होंगे। इसके अलावा, चरागाह क्षेत्रों में अनियंत्रित पशु चारण पर रोक लगानी होगी। कृषि में रोटेशनल फसलों पर जोर देना होगा। हमें खनिज पदार्थों का भी किफायती व विवेकपूर्ण उपयोग करना होगा। वास्तव में, हमें सभी प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करने की मानसिकता पर विशेष बल देना होगा। सबसे बड़ी बात यह है कि हमें यह बात समझनी होगी कि इस धरती पर स्वतंत्रता से जीने का, बसने का, अपनी प्रजाति को विकसित करने, उसे बढ़ाने का हक हर जीव का, हर वनस्पति का व उसकी हर प्रजाति का है, जब यह बात हम सब लोग समझ लेंगे तो कोई दोराय नहीं है कि जैव विविधता न बनी रहे।

आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)
सुनील कुमार महला
स्वतंत्र लेखक व युवा साहित्यकार
पटियाला, पंजाब
ई मेल [email protected]

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