“सत्ता की चाबी” भजनलाल के हाथ में लेकिन इसकी “मास्टर की” भी सुरक्षित
आरएसएस (RSS) का भारत को परमवैभव पद पर प्रतिष्ठापित करने का दिव्य स्वप्न! बिना सरकार में भागीदारी के असम्भव होता! स्वयंसेवकों के पचास वर्षों के अथक प्रयास! तन-मन-धन का समर्पण! तब कही राजस्थान में भाजपा की सरकार बनी. शेखावत मुख्यमंत्री बने. इसके बावजूद स्वयंसेवकों को कुछ कमी अखरती! संघ-शेखावत के बीच लकीर सी खींची रही. मंजे,खुर्राट,खांटी जननेता शेखावत की ढँकी-छुपी मंशा रहती, भाजपा बहुमत से कुछ पीछे रहे! उससे उनका दबदबा कायम रहता. “प्योर संघी” नेताओं पर वे भारी पड़ते.
पुराने स्वयंसेवक बताते हैं, संघ ने योजना मुताबिक ललितकिशोर चतुर्वेदी को जनसंघ में भेजा. शेखावत-चतुर्वेदी की कभी पटी नहीं! इतना ही नहीं चतुर्वेदी के साथ के (संघी) नेताओं को भी क्रश किया. भीम जैसे छोटे से कस्बे से उठे और राज्य,देश भर के नेताओं-जनता समाज में पेठ बनाने वाले जनसंघ नेता स्व. एडवोकेट शंकरलाल जैन सहित अनेकों समर्पित कार्यकर्ता इसके उदाहरण रहे! यही नही संघ-जनसंघ के पुरोधा स्व. सुन्दरसिंह भंडारी तक को भी नही बख्शा! बताते हैं कि राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और सांसद मोहनलाल सुखाड़िया के देहावसान पर उदयपुर लोकसभा उपचुनाव में उनकी पत्नी कांग्रेस की उम्मीदवार बनी. सामने भाजपा से सुन्दरसिंह भंडारी. मुझे याद आता है भंडारी नामांकन भर पहले भीम पहुंचे. अपने साथी एडवोकेट शंकरलाल जैन से पीड़ा शेयर की! शेखावत मुझे जीतने देना नहीं चाहते…! वे उपचुनाव में एक नेता को निर्दलीय खड़ा कर अपनी बाईपास सर्जरी के निमित्त विदेश चले गए. शेखावत काल के अनेको किस्से हैं जिससे पता चलता कि उनके व संघ के बीच सब कुछ ठीक नही है!
हजारों स्वयंसेवको को य़ह सब सालता! फिर भी वे हर बार और दूने उत्साह से जुटते. शेखावत के राजस्थान की राजनीति से अलविदा होते “राजे युग” को थोपते भी कमोवेश ऐसे ही हालात बने रहे. “जनसंघ” की प्राणवायु,भामाशाह,समर्पित,निःस्वार्थ नेता विजयाराजे सिंधिया की इन पुत्री से राजस्थान को बहुत आशा थी! जनता की आकांक्षाओं,कसौटी पर खरा नहीं उतरी? आरएसएस-राजे के बीच पटरी नही बैठी! राजस्थान में शेखावत-राजे का ही राज रहा. संघ की पूरी ताकत लगती. बावजूद इसके यदा कदा मुखिया संघ को ही आँखें दिखाने से बाज नहीं आते? इस सबसे सब ही व्यथित रहते. अंदर ही अंदर कड़वा घूंट पीकर चुप रह जाते. खून-पसीने से सिंचित पार्टी की छिछलेदारी होने देने से बचते और बचाते!इस दफा आलाकमान आर-पार के मूड में था. मुझे इस चुनाव से कोई डेढ़ वर्ष पूर्व पुख्ता संघ सूत्रों के जरिए पक्की जानकारी थी. स्पष्ट बहुमत की दशा में वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री नही बनाना व चुनाव पूर्व ही गुलाबचंद कटारिया को राज्यपाल बना कर भेजना.
पहली बार के विधायक भजनलाल शर्मा को “सत्ता की चाबी” सौप देना मेरी समझ में कोई “रिस्क” नहीं है. कारण स्पष्ट है. नए मुख्यमंत्री आर एस एस में प्रशिक्षण की अंतिम स्टेज “तृतीय वर्ष शिक्षित” (उत्सुक पाठक विस्तृत जानकारी कर ले) है. याने…पूर्णतः संघ निष्ठ! अनुशासन बद्ध! कर्तव्यनिष्ठ! आम जन भरोसा रखे! सत्ता की चाबी सही हाथों में है. इसकी “मास्टर की” भी रहेगी! वो और भी सुरक्षित व मजबूत हाथों में रहेगी. य़ह “मास्टर की” किसी पारिवारिक या जेबी पार्टी के मुखिया के पास होने जैसी तो कतई नहीं माने. सुझाव है…”मास्टर की” रखने वाले य़ह जरूर सुनिश्चित करे…! भाजपा के दो मुख्यमंत्रियों के पिछले कार्यकाल में संघ निष्ठ कार्यकर्ता जिस तरह खुद को उपेक्षित-ठगा सा महसूस करता रहा है! अबकी वो तो न हो.
सिद्धार्थ जैन, पत्रकार
ब्यावर (राजस्थान)
94139 48333