रामनवमी मर्यादा पुरषोंत्तम राम का जन्मोत्सव एवं राम राज्य

dr. j k garg
भगवान विष्णु ने सातवे अवतार में भगवान राम के रूप में त्रेतायुग में जन्म लिया था | भगवान राम का अवतार रावण के अत्याचारों को खत्म करने एवं पृथ्वी से दुष्टों को खत्म कर धर्म एवं सात्विकता की स्थापना के लिए हुआ था | मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का जन्म अयोध्या में चैत्र शुक्ल की नवमी को हुआ था इसलिए चैत्रीय नवमी को भगवान श्री राम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है | शारदीय राम नवमी के दिन रावण का वध करने से पहले प्रभु श्रीराम ने मां भगवती की आराधना की थी तथा माता ने प्रसन्न होकर भगवान राम को युद्ध में विजय होने का आशीर्वाद दिया था इसी दिन प्रभु राम ने रावण का वध करके विजय प्राप्त की थी | राम का अर्थ है, स्वयं का प्रकाश; स्वयं के भीतर ज्योति। “रवि” शब्द का अर्थ “राम” शब्द का पर्यायवाची है। रवि शब्द में ‘र’ का अर्थ है, प्रकाश और “वि” का अर्थ है, विशेष। इसका अर्थ है, हमारे भीतर का शाश्वत प्रकाश। हमारे ह्रदय का प्रकाश ही राम है। इस प्रकार हमारी आत्मा का प्रकाश ही राम है यानी हमारे भीतर “ज्ञान के प्रकाश का उदय”।

राजा दशरथ एवं उनकी रानीयों को सन्तान प्राप्ति के लिए महर्षी वशिष्ट जी ने दशरथ की तीनों रानियों को खीर खाने को कहा ठीक 9 महीने पश्चात सबसे बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को, कैकयी ने भारत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया | राम भगवान विष्णु जी के सातवें अवतार थे | भगवान श्री राम का अवतरण पृथ्वी से दुष्टों का संहार कर धर्म की स्थापना करने के लिए हुआ था | कौशल्या का अर्थ है, कुशलता और दशरथ का मतलब है, जिसके पास दस रथ हो। हमारे शरीर में दस इन्द्रिया है पाच ज्ञानेन्द्रियाँ (पाँच इन्द्रियों के लिए) और पांच कर्मेन्द्रिया (जो की दो यानीहाथ, दो पैर, जननेन्द्रिय, उत्सर्जन अंग और मुह)। सुमित्रा का अर्थ है, जो सब के साथ मैत्री भाव रखे और कैकेयी का अर्थ है, जो बिना के स्वार्थ के सब को देते रहे।इस प्रकार दशरथ और उनकी तीन पत्नियाँ एक ऋषि के पास गए। जब ऋषि ने उनको प्रसाद दिया तब ईश्वर की कृपा से, भगवान राम का जन्म हुआ। भरत का अर्थ है योग्य।अयोध्या (जहां राम का जन्म हुआ है) का अर्थ है, वह स्थान जिसे नष्ट ना किया जा सके।इस कहानी का सार है: हमारा शरीर अयोध्या है, पांच इन्द्रिय और पांच कर्मेन्द्रियाँ इस के राजा हैं। कौशल्या, इस शरीर की रानी है। सभी इन्द्रियां ब्राह्य मुखी हैं और बहुत कुशलता से इन्हें भीतर लाया जा सकता है और ये तभी हो सकता हैं जब भगवन राम, प्रकाश हम में जन्म लें।जब मन (सीता) अहंकार (रावण) के द्वारा अपहृत हो जाता है, तो दिव्य प्रकाश और सजगता (लक्षमण) के माध्यम भगवन हनुमान (प्राण के प्रतीक) के कंधो पर चढ़कर उसे घर वापस लाया जा सकता है। ये रामायण हमारे शरीर में हर समय घटित होती रहती है।राम नवमी को भगवान राम के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। खुशी और उल्लास के इस त्योहार को मनाने का उद्देश्य हमारे भीतर “ज्ञान के प्रकाश का उदय” है।

गोस्वामी तुलसी दास ने रामचरित मानस के बालकाण्ड में स्वयं लिखा है कि उन्होंने रामचरित मानस की रचना का आरम्भ अयोध्यापुरी में विक्रम सम्वत् 1631 (1574 ईस्वी) के रामनवमी, जो कि मंगलवार था, को किया था। गोस्वामी जी ने रामचरितमानस में श्रीराम के जन्म का वर्णन करते हुए प्रभु श्री राम की स्तुति करते हुए विष्णु के अवतार राम के बारे में लिखा है ” भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी।हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारीलोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी।भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी॥कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता।माया गुन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता॥करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता।सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रकट श्रीकंता

संत कबीर ने बतलाया कि आदि राम अविनाशी परमात्मा है जो सब के सृजनहार व पालनहार है। जिसके एक इशारे पर‌ धरती और आकाश काम करते हैं जिसकी स्तुति में तैंतीस कोटि देवी-देवता नतमस्तक रहते हैं। जो पूर्ण मोक्षदायक व स्वयंभू है।”एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट में बैठा, एक राम का सकल उजियारा, एक राम जगत से न्यारा।।

रामनवमी के त्यौहार का महत्व सनातन धर्म सभ्यता में महत्वपूर्ण रहा है। इस पर्व के साथ ही माँ दुर्गा के नवरात्रों का समापन भी होता है। हिन्दू धर्म में रामनवमी के दिन राम की पूजा अर्चना की जाती है। रामनवमी की पूजा में पहले देवताओं पर जल, रोली और लेपन चढ़ाया जाता है, इसके बाद मूर्तियों पर मुट्ठी भरके चावल चढ़ाये जाते हैं। पूजा के बाद आ‍रती की जाती है। कुछ लोग इस दिन व्रत भी रखते है।

भगवान राम ने अपने तीनों भाई लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के साथ गुरु वशिष्ठ के गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त की | गुरु वशिष्ठ के आश्रम में शिक्षा पाकर उन्होंने वेदों और उपनिषदों का ज्ञान प्राप्त किया | भगवान राम और उनके भाइयों ने ज्ञान के साथ साथ अच्छे मानवीय और सामाजिक गुणों को प्राप्त किया | सभी भाई अच्छे गुणों और ज्ञान के कारण वे अपने गुरुओं के प्रिय बन गए। श्री राम गुणों के मिसाल थे । राम न केवल दयालु और स्नेही थे, बल्कि उदार और भावनाओं के प्रति संवेदनशील थे। भगवान राम के पास एक अद्भुत काया और मनोरम व्यवहार था। श्री राम उदार व्यक्तित्व के धनी थे। वह अत्यंत महान, उदार, शिष्ट और निडर था। वे बहुत ही सरल थे।

भगवान राम को दुनिया में एक अतुलनीय पुत्र माना जाता है, और अच्छे गुणों के हर पहलू में दशरथ के समान थे। उन्होंने जीवन भर कभी झूठ नहीं बोला। उन्होंने हमेशा विद्वानों और बड़ों का सम्मान किया, लोग उन्हें प्यार करते थे । उनका शरीर पारलौकिक और उत्कृष्ट था। वह प्रजा को अत्यंत प्रिय थे।

भगवान राम अविश्वसनीय पारलौकिक गुणों से संपन्न थे। ऐसे गुणों के स्वामी, जो अदम्य थे, जो बहादुर थे, और जो सभी के अतुलनीय भगवान थे। संक्षेप में कहें तो श्री राम का जीवन पवित्र अनुपालन, निर्मल पवित्रता, अतुलनीय सादगी, प्रशंसनीय संतोष, प्रशंसनीय आत्म-बलिदान और उल्लेखनीय त्याग का जीवन था।

राम का पहला साहसिक कार्य तब हुआ जब ऋषि विश्वामित्र ने राक्षस से लड़ने में मदद मांगी। राम और लक्ष्मण, कौशल के उत्तरी राज्य की राजधानी अयोध्या में अपने बचपन के घर को छोड़कर, विश्वामित्र के पीछे उनके घर गए और वहां एक भयानक राक्षसी तारका को मार डाला। कृतज्ञता में ऋषि ने राम को दिव्य हथियार दिए | तत्पश्चात वे गुरु की आज्ञानुसार आगे की और निकल पड़े। वहाँ विदेह के राजा जनक ने राम का बहुत आदर सत्कार किया, और वह राजा की सुंदर बेटी सीता (जिसे जानकी या मैथिली भी कहा जाता है) से मिले। राजा जनक के घर में भगवान शिव का धनुष रखा हुआ था। जिसे कोई भी व्यक्ति आसानी से उठा नहीं सकता | लेकिन एक दिन सीता जी ने घर की सफाई करते समय उस धनुष को उठाकर दूसरी जगह पर रख दिया | इसे देख कर राजा आश्चर्यचकित हो गए | उसी समय पर उन्होंने यह प्रतिज्ञा ली जो भी इस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा, उसी से मै अपनी पुत्री सीता का विवाह करुँगा | उन्होंने सीता स्वयंवर की तिथि निर्धारित की और सभी देश के राजा और महाराजाओं को इसके लिए निमंत्रण भेजा।

राजा जनक ने राजकुमारी सीता का विवाह उसी से करने का फैसला किया था जो शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा सके । एक-एक कर सभी ने धनुष उठाने की कोशिश की , लेकिन कोई भी इसे उठा ना सका | उसके पश्चात गुरु की आज्ञा पाकर राम धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने लगे तभी धनुष टूट गया। फिर बड़ी ही धूमधाम से राम और सीता का विवाह हुआ | इस खुशी के मौके पर सभी देवताओं ने फूलों की वर्षा की |

भगवान राम के जीवन की सबसे बड़ी शिक्षा अपने दिए वचन और कर्तव्यों का पालन करना है |-कैकयी द्वारा राजा दशरथ से राम का 14 वर्ष का बनवास मांगने का कारण कम ही लोगों को ज्ञात है. दरअसल राजा दशरथ की रानी कैकेयी राजा अश्वपति की बेटी थी. राजा अश्वपति के राजपुरोहित श्रवण कुमार के पिता रतन ऋषि थे. कैकेयी को वेद-शास्त्रों की शिक्षा रत्न ऋषि ने ही दी थी. उन्होंने कैकेयी को बताया था कि राजा दशरथ की कोई संतान राज गद्दी पर नहीं बैठ पाएगी. इसके साथ ही ज्योतिष गणना के आधार पर उन्होंने बताया था कि दशरथ की मृत्यु के बाद यदि चौदह वर्ष के दौरान कोई संतान गद्दी पर बैठ भी गया तो रघुवंश का नाश हो जाएगा |

राम ने सुपर्णखा के नाक कान काट दिए थे जिससे उसका भाई रावण क्रोधित हो गया | तदनुसार, राक्षस राजा ने राम के घर की तलाश की | और जब रावण के दुवारा मायावी मारीच को सोने के हरण के रूप में भेजा तब सीता ने राम को हरण को पकड़ क्र लाने को कहा और उसकी त्लास्खोज में राम बहुत दूर चले गये तब सीता जी ने लक्ष्मण को उनकी मदद करने को भेज दिया और सीताजी घर पर अकेली रहगई तब रावण साधू के वेश मे आकर माता सीता का अपहरण करके ले गया | राम लक्ष्मणजी जी की साथ सीता जी को खोजने निकले तब उनको जंगल में कुछ आभूषण मिले जिनमे सीता जी का कर्णफूल भी था तब श्रीराम ने लक्ष्मण से पूछा क्या तुम सीता के इस कर्णफूल को पहचानते हो तो लक्ष्मण बोले कि कर्णफूल भाभी के हैं या नहीं मैं कैसे बता सकता हूं. ? मैंने तो कभी भाभी के मुख की ओर देखा ही नहीं. |लक्ष्मण ने कहा कि मैंने तो सेवक और पुत्र भाव से सदा भाभी के चरणों को देखा है इसलिए मैं सिर्फ उनकी पायल को पहचानता हूँ |

राम लक्ष्मण को सिरविहीन राक्षस कबंध मिला राम न्र उसको यातना से मुक्त कर दिया तब उसने राम को सलाह दी कि रावण का सामना करने से पहले, आपको वानरों के राजा सुग्रीव की मदद लेनी चाहिए। सुग्रीव की राजधानी किष्किंधा में उनके आगमन पर यह देखते हुए कि राजा ने अपने भाई बालि को अपना सिंहासन खो दिया था, राम ने सुग्रीव को सत्ता में बहाल करने में मदद की | श्री राम की हनुमान जी के साथ पहली मुलाकात का किस्सा बेहद दिलचस्प है | हनुमान जी ब्राह्मण का रूप धारण कर प्रभु श्री राम और लक्ष्मण के पास पहुंचे. अन्होंने राम और लक्ष्मण को देखा तो समझ गए थे कि ये दोनों वीर कोई आमजन नहीं, बल्कि साक्षात किसी देवता के रूप हैं इसके बाद हनुमान जी चरणों में गिरकर उन्हें दंडवत प्रणाम किया |। कृतज्ञ सुग्रीव ने राम सहायता के लिए एक सेना का गठन किया और हनुमान की मदद ली, जो एक सक्षम सेनापति होने के अलावा पवन पुत्र भी थे और बड़ी दूरी तक छलांग लगाने और अपनी इच्छा अनुसार कोई भी रूप लेने में सक्षम थे। यह वह था जिसने विश्वकर्मा के पुत्र कुशल नायक नल तथा नील द्वारा निर्मित ब्रिज को पार करते हुए, राम और उनकी सेना को लंका पहुँचाया |

राम की सेनाओं और राक्षसों के बीच कई युद्धों की एक श्रृंखला हुई, लेकिन अंततः रावण मारा गया, लंका पर राम की विजय हुई, और राम अपनी पत्नी सीता से मिल गए और वापस अपनी नगरी अयोध्या लौट गए |

अयोध्या आगमन के बाद राम ने कई वर्षों तक अयोध्या का राजपाट संभाला और इसके बाद गुरु वशिष्ठ व ब्रह्मा ने उनको संसार से मुक्त हो जाने का आदेश दिया. इसके बाद उन्होंने जल समाधि ले ली थी |

राजा राम ने भाईचारे और भाई भाई के मध्य प्यार स्नेह की अनूठी मिसाल स्थापित की थी | राम अपने भाईयों भरत लक्ष्मण शत्रूघन को अपने प्राण से भी ज्यादा प्रिय थे } सतयुग में राजाओं की अनेक पत्नियां होती थी किन्तु राजा राम ने एक पत्नी व्रत का पालन किया | अपनी धर्म पत्नी को रावण के चगुल से छुडाने के लिए धर्म युद्ध किया और रावण का वध करके राम भक्त विभिष्ण को लंकापति बनाया | राम ने निस्वार्थ भाव से राज्य किया और राज धर्म का पुरी तरह पालन किया | निसंदेह राम निःस्पृह निरहंकार आसक्तिहीनता के प्रतीक हैं | वानर राज बाली का वध करके अपने मित्र सुग्रीव को वानर राज मनाया इसी प्रकार शरण में आये विभिष्ण को लंकापति बनाया | मर्यादा पुरषोत्तम राम वीरता धैर्य की साक्षात मूर्ति ही हैं | अपनी भक्त शबरी के झूटे बैर करने वाले प्रभु राम ही थे | निषाद राज केवट को उपक्रत करने वाली श्री राम ही है | गोतम ऋषि की शाप ग्रस्त पत्नी जो पत्थर की शीला बन गई कोशल्या को पुन:जीवन दान देने वाले भी श्री राम हैं | ज्ञान के पिपासु राम ने अपने भाई लक्ष्मण को म्रत्यु शय्या पर लेते रावण से गया प्राप्त करने के लिए लक्ष्मण आदेशित किया |

निसंदेह भक्त और एक दुसरे के पूरक होते हैं | राम भक्त हनुमान ने अपने सीने को चीर कर सबको राम लक्ष्मण और माता सीता के दर्शन करवाए थे | भक्त हनुमान ने ही सुग्रीव विभिष्ण को प्रभु राम की शरण में भिजवाया था | संजीवनी बूटी लाकर लक्स्मन जी को जीवन दान देने वाले भक्त हनुमान ही थे | माता सीता की लंका जाकर खोज करने वाले पवन पुत्र हनुमान ही थे | राम और लक्ष्मण को अहिरावण की कैद से छुडाने वाले भी भक्त हनुमान ही थे | इसीलिए आज भी हनुमान जी की पूजा अर्चना की जाती है |

निसंदेह राम का राम राज्य सच्चाई में सुशासन, प्रगति, समृद्धि और शांति का प्रतीक हैं | राम के शासन काल में दर्द, गरीबी, बीमारी, शोक दुराचार या योंणशोषण बलात्कार का नामो निशान नहीं था | राम राज में अमीर गरीब ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शुद्र को बिना भेदभाव के तुरंत न्याय दिया जाता था | धोबी के संदेह और शिकायत पर माता सीता का त्याग करके उनको वन में निर्वाचित करने की हिम्मत राम ही कर सकते थे | राम के शासन सभी सत्य और अहिंसा का पालन करते थे | राम राज्य के अंदर नागरिक नैतिक जिम्मेदारी और आत्म-अनुशासन का पालन करते थे |

राम नवमी को भगवान राम के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। खुशी और उल्लास के इस त्योहार को मनाने का उद्देश्य हमारे भीतर ” प्रेम स्नेह करुणा संवेदनशीलता और ज्ञान के प्रकाश का उदय करना है। हम सभी अपनी अपनी आस्था के साथ सुखमय जीवन जिए इसी के साथ हमारे मन के अंदर दर्द, गरीबी, बीमारी, शोक दुराचार या योंणशोषण बलात्कार का नामो निशान नहीं रहे | हम भारत में पु:न रामराज स्थापना का संकल्प लेकर देश के समस्त नर नारी को चाहे वो अमीर गरीब ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शुद्र मुलमान सिख ईसाई फारसी हो को बिना भेदभाव के तुरंत न्याय प्राप्त कराएं | हमारे शासक राजनेता अधिकारी सही मायनो में राज धर्म का पालन करें | हम सभी सत्य और अहिंसा का पालन करते हुए नैतिक जिम्मेदारी और आत्म-अनुशासन का पालन करने का संकल्प लें |इन्हीं संकल्पों के साथ 30 मार्च 2023 को सनातन धर्मी हर्ष उल्लास के साथ रामनवमी मनाएं |

डा. जे. के. गर्ग
पूर्व संयुक्त निदेशक कॉलेज क्शिक्षा जयपुर

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