अजमेर की दोनों सीटों पर कडी टक्कर

हालांकि विधानसभा चुनाव में अजमेर नगर की दोनों सीटों पर कांग्रेस पराजित हुई है, मगर लोकसभा चुनाव में नए समीकरण बनते दिखाई दे रहे हैं। आम धारणा है कि कांग्रेस उम्मीदवार रामचंद्र चौधरी संसदीय क्षेत्र की देहाती सीटों पर बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं, क्योंकि उनका डेयरी नेटवर्क देहात में ही अधिक है। लेकिन समीकरण इस ओर इशारा कर रहे हैं कि वे अजमेर नगर की दोनों सीटों पर भी मजबूत स्थिति में हो सकते हैं।
इसकी एक वजह यह है कि रामचंद्र चौधरी अनेक सालों से अजमेर में रह रहे हैं। आरंभ में हजबैंड मेमोरियल स्कूल में अध्यापक रहे, सैंकडों शिष्य हैं। बाद में अजमेर डेयरी के सदर बन गए और अब तक उस पद पर काबिज हैं। जाहिर तौर पर उनके माध्यम से अनेक लोगों को डेयरी बूथ आवंटित हुए हैं, जो उनसे सीधे संपर्क में हैं। मुख्यालय पर होने के कारण भी अजमेर के कांग्रेस कार्यकर्ताओं से उनके व्यक्तिगत संबंध हैं। धरातल पर कांग्रेस की स्थिति से भी बखूबी परिचित हैं। कौन कार्यकर्ता उपयोगी है और कौन शो पीस, सब पता है। कांग्रेस के कार्यकर्ता पार्टी के नाते कितनी शिद्दत से काम करते हैं, इसका आकलन कठिन है, मगर जो कार्यकर्ता सीधे उनसे सालों से जुडे हुए हैं, वे दिल से काम कर रहे हैं। यह सही है कि भाजपा के मुकाबले कांग्रेस का संगठन कुछ कमजोर है, मगर भाजपा उम्मीदवार भागीरथ चौधरी का अजमेर आना जाना कम रहा है, इस कारण अधिसंख्य कार्यकर्ता उनसे सीधे संपर्क में नहीं हैं। अलबत्ता मोदी व पार्टी के नाम पर वे जरूर काम कर रहे हैं। जहां तक विधानसभा चुनाव का सवाल है, संगठित न होने व गुटबाजी के कारण कांग्रेस को हार का सामना करना पडा, मगर आसन्न चुनाव में वैसी स्थिति नहीं है। अधिसंख्य नेता रामचंद्र चौधरी के प्रति कोई दुर्भावना नहीं रखते। अगर गहलोत-पायलट फैक्टर पर नजर डालें तो कहीं नहीं लगता कि वह काम कर रहा है, क्योंकि पायलट गुट के महेन्द्र सिंह रलावता, विजय जैन, हेमंत भाटी, नसीम अख्तर इंसाफ भी प्रत्यक्षतः ईमानदारी से काम कर रहे हैं, गहलोत गुट के डॉ राजकुमार जयपाल, डॉ श्रीगोपाल बाहेती, धर्मेन्द्र सिंह राठौड, शैलेन्द्र अग्रवाल भी गंभीरता से काम कर रहे हैं। अग्रवाल तो मुख्य चुनाव अभिकर्ता का दायित्व निभा रहे हैं। अजमेर उत्तर के दोनों ब्लॉक के बूथ लेवल के पदाधिकारी राठौड के ही नियुक्त किए हुए हैं। अजमेर दक्षिण में गुटबाजी दिखती है, मगर जहां द्रोपदी कोली खुल कर मैदान में हैं, वहीं हेमंत भाटी गुट के दोनों ब्लॉक अध्यक्ष निर्मल बहरवाल व पवन ओड भी सक्रिय है।
एक ओर जहां कांग्रेस अपने बागी पूर्व विधायक डॉ श्रीगोपाल बाहेती की घर वापसी करवा चुकी है, वहीं भाजपा ज्ञान सारस्वत, जे के शर्मा, सुभाष काबरा, आनंद सिंह राजावत की वापसी अब तक तो नहीं हो पाई है। सवाल उठता है कि अगर उनको भाजपा ने नहीं अपनाया तो क्या वे ईमानदारी से काम करेंगे। ज्ञातव्य है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस भाजपा से तकरीबन नौ हजार वोट पीछे रही है। यह मतातंर बहुत अधिक नहीं है। वह भी तब जबकि कांग्रेस की संगठनात्मक स्थिति भाजपा की तुलना में अच्छी नहीं थी। कांग्रेस की संगठनात्मक स्थिति पहले जैसी है, मगर पहले जैसी गुटबाजी अब नहीं है।
एक बात और। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को एंटी इन्कंबेंसी का सामना करना पडा, जबकि इस चुनाव में केन्द्र सरकार की एंटी इंन्कंबेंसी काम करेगी। कुल जमा अजमेर की दोनों सीटों पर कडी टक्कर हो सकती है।

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