12 दिसंबर 2023 का दिन आप भूल नहीं होंगे जब कुटिल मुस्कान के साथ देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने राजस्थान के मुख्यमंत्री के रूप में भजनलाल शर्मा के नाम की पर्ची अपनी जेब से निकाल कर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे को थमाते हुए कहा था, यह लीजिए अब नए सीएम का नाम प्रस्ताव आप दीजिए। रक्षा मंत्री सिंह और पूर्व सीएम वसुंधरा एक गाड़ी से पहुंचे थे लेकिन उसके बावजूद रास्ते में राजे को सिंह ने विश्वास में नहीं लिया था। उस समय राजनाथ सिंह की कुटिल मुस्कान के बाद जिस तरह से वसुंधरा राजे ने उन्हें आंखे ततेर प्रतीकात्मक अंदाज में देखा उन्हें घूरते हुए देखा था उससे निश्चित था कि लोकसभा चुनाव में वह मुस्कान का बदला चुका देंगी। वसुंधरा राजे की घूरती हुई आंखें चित्र में स्पष्ट दिखाई दे रही हैं कि वह क्या कहना चाहती है। प्रधानमंत्री मोदी से लेकर मुख्यमंत्री भजनलाल तक राजस्थान की सभी 25 सीटें मोदी की गारंटी के नाम बीजेपी के पक्ष में आने का हसीन ख़्वाब पार्टी के कर्णधार देखते रहे और जब नतीजा सामने आया तो हाथों के तोते उड़ गए। खास बात है कि जिन लोकसभा की 11 सीटों पर कांग्रेस जीती है उन लोकसभा सीटों के विधानसभा विधायक भाजपा के वसुंधरा समर्थित हैं। इसके अलावा वसुंधरा भाजपा के स्टार प्रचारक सूची में शामिल होने के बावजूद राजस्थान में मोदी की गारंटी का व्यापक प्रचार करने या भाजपा को जिताने में उन्होंने कोई दिलचस्पी नहीं ली। बताया जाता है कि बीजेपी की चुनाव प्रचार की सूची से भी वसुंधरा का नाम गायब था। जिसका खामियाजा मुख्यमंत्री भजनलाल की राजनैतिक पकड़़ पर काले धब्बे के समान अंकित हो गया। इससे जाहिर हुआ है कि पार्टी के वसुंधरा समर्थकों ने सीएम भजनलाल शर्मा का प्रदेश नेतृत्व स्वीकार नहीं किया। यह अलग है कि झालावाड़ से पूर्व सीएम राजे के पुत्र दुष्यन्त की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी। गौर से देखे तो पास के राज्यों गुजरात और मध्य प्रदेश में भाजपा को तगड़ी बढ़त मिली है जबकि राजस्थान में ऐसा नहीं हुआ। वसुंधरा राजे ने पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व को आईना दिखा दिया कि उन्हें इग्नोर करने का नतीजा भुगतो। राजनाथ सिंह तो शहंशाह के वजीर की हैसियत से पर्ची लेकर आए थे। राजस्थान में भाजपा को जो नसीहत राजे से मिली है उसमें एक गहरा संदेश भी लगता है। जिसका असर इस साल दिसम्बर में होने की संभावना राजे समर्थक ने जताई है। बताया जाता है कि पार्टी की उच्च स्तरीय समिति ने सीएम शर्मा जी के कार्यकाल और उनके क्षमताओं का आकलन करना शुरू कर दिया है।
’लाल डायरी पर समझौता?’
एक बात और समझ में नहीं आई जिस लाल डायरी का जिक्र पीएम मोदी और देश के गृहमंत्री अमित शाह ने अपनी सार्वजनिक सभा में किया था। वह लाल डायरी लोकसभा चुनाव में अचानक विलुप्त कैसे हो गई? राजेंद्र गुड्डा साहब कहां गायब हो गए? क्या लाल डायरी के मामले में कोई बड़ा राजनीतिक समझौता हुआ है। यह बुद्धिजीवियों के बीच विचारणीय है। कहा जा रहा है कि भाजपा के बड़े नेता के पुत्र और कांग्रेस के वरिष्ठतम नेता के पुत्र की मित्रता से लाल डायरी को बर्फ में गला दिया गया। भाजपा के लिए यह डायरी लोकसभा चुनाव में महत्वपूर्ण दस्तावेज साबित हो सकती थी गर इसके राज बाहर आते तो? राजनीति की बिसात पर कौन सा प्यादा वजीर बनने की लालसा में दगा कर दे सोचा भी नहीं जा सकता। अपन का तो इतना ही कहना है———
’मौसम था चुनाव का’
’मदहोश थे सितारे’
’प्यादों खेल बिगाड़ा’
’वजीर बने थे सारे’
राजेन्द्र याग्निक