*■ ओम माथुर ■*
*खुद को भगवान समझने वाले एक इंसान के चरणों की धूल लेने के चक्कर में मची भगदड़ में 122 इंसान खुद कुचल जाने के कारण धूल बन गए। हाथरस के फुलरई गांव सत्संग में हुआ हादसा ना ऐसा पहला हादसा है और ना आखिरी। धर्म के नाम पर अंधविश्वास में जकड़ी देश की धर्मभीरू जनता को ऐसे ही फर्जी बाबा सालों से मूर्ख बनाकर अपनी दुकानें में चला रहे हैं और लोग शायद अपने जीवन में परेशानियों और समस्याओं से इतने परेशान हैं कि इंसानों को ही परमात्मा मानकर उम्मीद करते हैं कि इनकी शरण में जाने से उनका जीवन आनंदमय हो जाएगा। उनके दिए पानी को पीने से,उनके चरणों की धूल को सिर पर लगाने से,उनके दिए ताबीज को गले में पहनने से,उनके सिर पर हाथ रख देने से उनके तमाम कष्ट कट जाएंगे। लेकिन इन आयोजनों,सत्संग और समागमों में जुटने वाले लाखों लोगों की सुरक्षा के लिए वहां पर्याप्त इंतजाम नहीं होते हैं। ऐसे में मामूली सी चूक सैंकड़ों लोगों की जिंदगियों को खामोश कर उन्हें मौत की चादर ओढ़ा देती है।*
*हाथरस में भी यही हुआ। आयोजकों ने 80 हजार श्रृद्धालुओं की इजाजत ले रखी थीँ लेकिन सत्संग में पहुंचे दो-ढाई लाख श्रद्धालु। भोले बाबा उर्फ साकार विश्व हरि के प्रवचन सुनने के बाद उनके चरणों की धूल को सिर पर लगाने की कोशिश में मची भगदड़ में 122 लोग मारे गए और इनमें से 110 से ज्यादा महिलाएं शामिल हैं। सवाल ये है कि क्या प्रशासन को यह मालूम नहीं था कि सत्संग में कितनी भीड़ एकत्र हो रही है और वहां उसे नियंत्रित करने के लिए उसने खुद इंतजाम कितने किए गए हैं ? ये भी कहा जा रहा है कि सत्संग स्थल के भीतर और आसपास की जिम्मेदारी बाबा की प्राइवेट आर्मी के वॉलिंटियर्स संभालते हैं और वह पुलिस या प्रशासन के लोगों को सत्संग के तंबू में भी नहीं जाने देते। अगर ये सच है तो यह और भी गंभीर है कि आखिर लाखों लोगों की सुरक्षा आयोजकों के भरोसे कैसे छोड़ दी गई ? उन्होंने ही साकार विश्व हरि के चरणों की धूल लेने के लिए दौड़ते श्रद्धालुओं को रोकने के लिए उन पर पानी की बौछारें की। जिससे मैदान में फिसलन बढ़ गई और एक बार शुरू हुआ गिरने का सिलसिला भगदड़ में बदल गया। इतना ही नहीं हादसे के बाद में वॉलिंटियर्स में सबूत मिटाने की कोशिश की और बाद में पुलिस और प्रशासन के आने के बाद मौके से चंपत हो गए।*
*विडंबना देखिए खुद को मानव कल्याण व मानव धर्म के लिए समर्पित बताने वाले भोले बाबा खुद हादसे के बाद और अपने भक्तों की मौत के बाथ भी ना मौके पर रुके और ना ही 24 घंटे बाद भी पुलिस उनका पता लगा सकी है। वह खुद को भगवान विष्णु औय कृष्ण का अवतार बतखता था। एफआईआर में भी सिर्फ मुख्य सेवादार देवप्रकाश का नाम शामिल है। जबकि मुख्य आरोपी खुद भोला बाबा को बनाया जाना चाहिए। बाबा को भी यह पता होगा कि उसके काफिले के आगे निकलते ही पीछे भगदड़ मच चुकी है, लेकिन उसने वहां रुकना गंवारा नहीं समझा और सीधा अपने मैनपुरी में बने आश्रम में पहुंच गया। जहां वह बुधवार सुबह तक रहा। लेकिन पुलिस और प्रशासन ने कहा कि बाबा आश्रम में नहीं है। अब हाल ये है कि 24 घंटे बाद भी किसी को पता नहीं है कि भोले बाबा कहां हैं? क्या ये संभव है कि बिना राजनीतिक-प्रशासनिक मदद के बिना बाबा फरार हो? और अगर वाकई ऐसा है, तो यह तो उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के खुफिया तंत्र की नाकामी है कि इतने बड़े हादसे के बाद अब तक वह भोले बाबा की लोकेशन तक ट्रेस नहीं कर पाया है।*
*दरअसल, भोले बाबा के साथ एससी-एसटी, ओबीसी और दलित वर्ग का एक बड़ा तबका जुड़ा है,जो वोट बैंक की तरह उनके इशारे पर वोट डालता है। इसीलिए राजनीतिज्ञ इस तरह के हादसों के बाद भी ऐसे बाबाओं पर सीधा बोलने या हाथ डालने से कतराते हैं। भोले बाबा के भी उत्तर प्रदेश सहित हरियाणा, मध्य प्रदेश, पंजाब और राजस्थान में बड़ी संख्या में सर्मथक हैं और उन पर सीधा हाथ डालने का मतलब है कि उनके भक्तों को नाराज करना। शायद इसीलिए उत्तर प्रदेश के सीएस योगी आदित्यनाथ ने भी अपनी प्रेस कांफ्रेस में भोले बाबा की गिरफ्तारी पर सीधा बोलने के बजाय सिर्फ यही कहा कि एफआईआर दर्ज होने के बाद उसका दायरा बढ़ भी सकता है। हमने राम रहीम के मामले में देखा है कि बलात्कार के मामले में जेल में होने के बाद भी वह कई बार फरलों पर छोड़ा गया। विशेष रूप से उन दिनों में, जब विधानसभा या लोकसभा के चुनाव नजदीक हो। जाहिर है सत्ताधारी दल को लगता है कि वह उनके लिए वोटों की फसल कटवा सकता है। शायद इसीलिए अब तक भोले बाबा पर हाथ नहीं डाला गया हो। ये भी विडम्बना है कि राम रहीम हो या आसाराम या फिर भोले बाबा सभी पर यौन शोषण के आरोप हैं, लेकिन फिर भी लाखों लोग इनके भक्त है। भगवान में आस्था रखिए,उसकी पूजा कीजिए। लेकिन भगवान ने किसी इंसान को धरती पर अपना प्रतिनिधि बनाकर नहीं भेजा है। इसलिए उसे भगवान मानना सिवाय अज्ञानता और अंधविश्वास के कुछ नहीं है। इसका पछतावा अब 122 लोगों के परिवारों को हमेशा रहेगा। इन बाबाओं का क्या जाना है। उनके पास करोड़़ों रुपए की संपत्ति है। कोठियां हैं। बड़े-बड़े आश्रम हैं। कारों के काफिले हैं। संरक्षण देने के लिए नेता और अफसर हैं। देश में जिस तरह से रोजाना बाबाओं और प्रवचन देने वालों की भीड़ बढ़ रही है, उसे लगने लगा है कि यह भी कमाई का एक बड़ा जरिया बन गया है। दूसरों को त्याग और समर्पण का ज्ञान देने वाले यह बाबा खुद विलासितापूर्ण जीवन जीते हैं।*
*योगी आदित्यनाथ के लिए कहा जाता है कि वह एक कठोर प्रशासक हैं। देखना होगा कि हादसे के दोषियों के खिलाफ वो क्या कार्रवाई करते हैं? क्योंकि इसमें प्रशासन और पुलिस के अधिकारी भी कम जिम्मेदार नहीं है। जिन्होंने सत्संग की अनुमति देने से लेकर व्यवस्थाओं तक सर्तकता नहीं बरती। आदित्यनाथ के लिए समय कुछ ठीक भी नहीं चल रहा है। लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भाजपा की करारी हार,उसके बाद राम मंदिर में बरसात का पानी टपकने और अब हाथरस हादसा। अपनी छवि बनाए रखने के लिए उन्हें सख्ती दिखानी ही होगी।*
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