भ्रष्टाचार के पुलों की जलसमाधि*

*बिहार में लगातार गिर रहे हैं पुल,घटिया सामग्री और कमीशनखोरी के कारण सरकारी निर्माण होते हैं कमजोर*
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*●ओम माथुर●*
*पहली बार अपने राजस्थान सरकार की निर्माण एजेंसियों पर गर्व हो रहा है। सार्वजनिक निर्माण विभाग,राजस्थान राज्य सड़क विकास एव़ निर्माण निगम आदि एजेंसियों को हम भले ही घटिया पुलों, ओवरब्रिज,सड़कों आदि के निर्माण को लेकर कोसते रहते हो,लेकिन कम से कम इनका काम बिहार की निर्माण एजेंसियों से तो अच्छा और मजबूत है। बिहार म़े एक दिन में पांच और पंद्रह दिन में 12 पुल गिर चुके है। अभी तो बरसात की शुरुआत है, हो सकता आने वाले दिनों में कुछ और पुल जल समाधि ले लें। एक हम हैं कि सड़कों पर गड्ढे पड़ने,किसी ओवरब्रिज से पानी टपकने या किसी नाले के टूटने पर ही निर्माण विभाग को कोसने लगते हैं। इनके इंजीनियर,ठेकेदारों और कार्मिकों को गालियां देने लग जाते हैं। लेकिन फिर भी अब तक कोई पुल नहीं गिरा है। एक बिहार है,जहां किसी माचिस की डिबिया की तरह पुल पानी में समा रहे हैं।*

ओम माथुर
*यह तो हो नहीं सकता कि राजस्थान में इंजीनियर और ठेकेदारों के बीच निर्माण कार्यों में कमीशनबाजी ना होती हो। यह तो निर्माण कार्यों की नींव है। इसी जमीन पर निर्माण होता है। यही पहली शर्त होती है। पहले तो टेंडर में ही पूल हो जाया करता था। लेकिन जब से ई टेंडर होने लगे हैं, इसमें परेशानी होने लगी है। तो, फिर अब ज्यादा ध्यान कमीशन पर दिया जाने लगा है। पहले कई ठेकेदार ऐसे थे,जो बिना काम करे ही लखपति थे, क्योंकि उन्हें पूल से घर बैठे बिना काम किया अच्छा कमीशन मिल जाया करता था। खैर,कमीशनबाजी और सरकारी निर्माण कार्यों का जन्म-जन्म का रिश्ता है। इसके बिना ना अधिकारी जी सकते हैं, ना ठेकेदार।लेकिन हम यह सोचकर खुश हो सकते हैं कि राजस्थान में कमीशनबाजी थोड़ी कम है। यहां के ठेकेदार निर्माण कार्यों में बिहार के ठेकेदारों की अपेक्षा कम घटिया सामग्री का इस्तेमाल करते हैं। यहां कके इंजीनियर, अफसर कम कमीशन में भी खुश रहते हैं। हमारे यहां तो एक-दो बरसात में बस सरकारी भवनों की छतें टपकने लगती है। दीवारें झड़ने लगती है। ये तो देश के हर राज्य में होता ही होगा। लेकिन पुल और पुलिया तो सलामत रहते हैं।*
*बिहार में पंद्रह साल से सुशासन बाबू यानी नीतीश कुमार मुख्यमंत्री है। फिर भी भ्रष्टाचार की नई नींव पर पुल बनाए गए। राजस्थान में तो कभी सुशासन का दावा किया ही नहीं गया। अशोक गहलोत की सरकार को विपक्ष ने सबसे भ्रष्ट सरकार कहा, तो उनके पहले वसुंधरा राजे के राज में भी कोई ईमानदारी के गीत नहीं गाए गए। लेकिन फिर भी हमारे यहां पुल-पुलियाएं सलामत है। सार्वजनिक निर्माण विभाग के एक हमारे मित्र सेवानिवृत्ति अभियंता बिहार में पुल गिरने की खबरों के बीच ताना दे रहे थे कि आप मीडियावाले फालतू में राजस्थान के इंजीनियरों को बदनाम करते हैं। हम तो आटे में नमक जितनी बेईमानी कर लेते हैं।बिहार में देखो,नमक में भ्रष्टाचार का आटा मिला रहे हैं। फिर फिर बोले, उत्तर प्रदेश को देख लो। अयोध्या में पहली बरसात के बाद ही राम मंदिर टपकने लग गया, तो करोड़ों की लागत से बनाया गया रामपथ धंस गया। राजस्थान में तो सड़कों पर गहरे गड्ढे ही पड़ते हैं,वह तो हर राज्य की सड़कों पर बरसात में नजर आते हैं।*
*लेकिन राजनीति की अपनी लीला है। यहां पुलों के गिरने को भी भ्रष्टाचार या हादसा नहीं माना जाता,बल्कि साजिश कहा जाता है। बिहार में एनडीए के नेता केंद्रीय मंत्री जीतनराम मांझी कह रहे हैं कि जब से बिहार में एनडीए की सरकार बनी है, तब से ही पुल गिर रहे हैं, पहले क्यों नहीं गिरते थे। तब वहां लालू यादव की आरजेडी के साथ जेडीयू की सरकार थी। फिर नितीश कुमार पलटे और भाजपा के समर्थन से एनडीए की सरकार बन गई। क्या नेताओं के ऐसे बयानों से ही भ्रष्ट्र तंत्र को बचने में मदद नहीं मिलती? जबकि इंजीनियरों,अधिकारियों और ठेकेदारों के भ्रष्ट गठजोड़ के कारण ही पुल और सड़क गिरते हैं या धंसते हैं। अब यह कहने की बात नहीं की इन सबको संरक्षण हमारे नेताओं का ही होता है।*
*9351415379*

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