नहीं चाहिए मुझे सम्मान पत्र
न ही कोई वीरता का पदक
सरकार मेरे,
मेरे माई- बाप
मेरे क्षेत्र के सांसद, विधायक और
छुटभैये नेतागण
बस आप सबसे
मेरी इतनी विनती है
सचमुच मेरे बलिदान ने
आपको दुखी किया है
सचमुच आप मेरे
बलिदान को सम्मान
देना चाहते हैं तो
बस इतना करना
देखना
मेरे बच्चों की पढ़ाई
कहीं छूट न जाए
मेरी पत्नी को
समय से पेंशन
मिल जाए।
चंद नोटों की खातिर
उसे पचासों बार
सरकारी दफ्तर का फेरा
लगाना न पड़े।
मेरे पिता को
मेरी पत्नी को
शहीद उसका ही बेटा है
शहीद उसका ही पति है
यह साबित करने के लिए
हैरान-परेशान न होना पड़े
अपने आत्मसम्मान का गला घोंटकर गिड़गिड़ाना न पड़े
तभी
सही मायनों में
मेरी आत्मा को
सुकून-शांति मिल पाएगी।
सम्मान-पदक
रोल ऑफ आनर की
अपनी जगह है,
मर्यादा है, इज्जत है।
पर ….
सम्मानपूर्वक जिंदगी
को गिरवी रख कर
दीवार पर लटके
सम्मान पत्र
और
शोकेस में सजे पदक
शहीद के परिजन का
मुंह चिढ़ाते से लगते हैं। 00
श्याम कुमार राई