दी इलस्ट्रेटेड वीकली आफ़ इंडिया के 28 जून 1971 के जाट विशेषांक अनुसार जाट लोगों के घरों तेजा मंदिर हुआ करते थे. अनेक शिवलिंगों में एक तेज लिंग भी होता है जिसके जाट लोग उपासक थे | वीर तेजाजी महाराज के लिये रचित लोक साहित्य को तेजा टेर/तेजा गीत’ कहा जाता है | तेजाजी की स्मृति में 2011 पांच रुपये की डाक-टिकट जारी किया गया था |प्राण जाये पर वचन नहीं जाए का पालन करते हुए अपने प्राणों की आहुति देने वाले तेजाजी राजस्थान उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश गुजरात एवं पंजाब के भी लोक-नायक हैं। अवश्य ही इन प्रदेशों की जन भाषाओं के लोक साहित्य में उनके आख्यान की अभिव्यक्ति के अनेक रूप भी मौजूद हैं। रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जाये पर वचन नहीं जी का पालन करते हुए तेजा जी का बलिदान आज भी हम सभी को प्रेरणा देता है तेजाजी के निर्वाण दिवस भाद्रपद शुक्ल दशमी को प्रतिवर्ष तेजा दशमी के रूप में मनाया जाता है | भक्त तेजाजी के मन्दिरों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं और दूसरी मन्नतों के साथ-साथ सर्प-दंश से होने वाली मृत्यु के प्रति अभय भी प्राप्त करते हैं। किद्विन्तियो और लोक मान्यता के मुताबिक उन्हें भगवान शिव का ग्यारहवां अवतार माना जाता है | तेजाजी की कर्मस्थली तथा प्रमुख तीर्थस्थल बूंदी का बासी दुगारी क्षेत्र है | वीर तेजाजी माहराज का पूजन पर्व भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन तेजा दशमी के रूप में पर् मनाया जाता है|
मध्यप्रदेश और राजस्थान उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश पंजाब हरियाणा के गांव-गांव में तेजा दशमी मनाई जाती ह | इस दिन अनेक जगहों पर तेजाजी के मंदिरों में मेले का भी आयोजन किया जाता है |
वीर तेजाजी के वंशज मध्य भारत के खिलचीपुर से आकर मारवाड़ में बस गये थे | नागवंश के धवलराव अर्थात धौलाराव के नाम पर धौल्या गौत्र शुरू हुआ | तेजाजी के पूर्वज उदयराज ने मारवाड़ के खड़नाल परगने में 24 गांव पर कब्जा कर खड़नाल को अपनी राजधानी बनाया |
तेजाजी का जन्म विक्रम संवत 1130 माघ सुदी चौदस (गुरुवार 29 जनवरी 1074, अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार) के दिन खरनाल में हुआ था। उनके पिता राजस्थान में नागौर जिले के खरनाल के मुखिया ताहड़जी थे। उनकी माता का नाम राम कंवरी था। तेजाजी के माता और पिता भगवान शिव के उपासक थे तेजाजी महाराज का विवाह बचपन में ही पनेर गांव में रायमल जी की पुत्री पेमल के साथ पुष्कर अजमेर में हो गया था उस वक्त तेजाजी की उम्र मात्र 9 महीने थी और पेमल जी उम्र 6 महीने थी | दोनों परिवारों में अनबन हो जाने की वजह से तेजाजी उनके पेमल के साथ शादी के बारे में कई सालो तक नहीं बताया गया |
उस वक्त गावं में परंपरा थी की वर्षा होने पर कबीले के मुखिया सबसे पहले खेत में हल जोतने की शुरुआत करते थे और उसके बाद ही गावं के अन्य किसान हल जोतते थे | अपने पिता और बड़े भाई की अनुपस्तिथी के कारण तेजाजी खेतों में पहुँच कर हल चलाने लगे ,काम करते करते दोपहर हो गई एवं तेजाजी भूख से परेशान होकर भोजन लेकर आने वाली अपनी भाभी का इंतजार करने लगे उनका खाना ले कर खेतो पर पहुची अपनी भूख से परेशान तेजा ने उन्हें उलाहना दिया जिस से भाभी अपना आपा खो बेठी और उन्हें तंज मारते हुए बोली अगर आपको समय पर खाना चाहिये तो तुम अपनी बीबी पेमल को उसके पीहर से क्यों नहीं ले लाते ? भाभी की बातें सुन कर तेजा को विश्वास ही नहीं हुआ कि उनकी शादी हो चुकी है और वें तिलमिलाते हुए घर आ कर माँ से पूछा “ मेरी शादी कहाँ कब और किसके साथ हुई? “ माँ ने उन्हें कहा तुम्हारा ससुराल पनेर में रायमल जी के घर है और तुम्हारी पत्नी का नाम पेमल है|
तेजा ससुराल जाने को आतुर हो गये तब तेजाजी की को उलाहना देते हुए बोली भाभी बोली अपनी दुल्हन पेमल को घर पर लाने अपनी बहन राजल को तो उसके ससुराल से ले आओ पीहर लेकर आओ और उसके यहाँ आने के बाद पेमल को लेने अपने ससुराल जाना | तेजाजी अपनी बहन राजल को लिवाने उसकी ससुराल के गांव अजमेर के पास तबीजी से ले आये तेजाजी ने अपनी माँ और भाभी से पनेर जाने की इजाजत लेकर वे एक दिन सुबह ही अपनी पत्नी पेमल को लेने के निकल पड़े अपनी ससुराल पनेर आ गये थे|
अपने ससुराल किसी बात वे पेमल के माता पिता से नाराज तेजाजी वहाँ से वापस लौटने लगे तभी ही पेमल ने अपनी सहेली लाछा गूजरी को संदेश दे कर भेजा अगर वो मुझे खरनाल नहीं ले जाएगें तो मे जहर खा कर मर जाऊंगी मैंने इतने वर्ष आपके इंतजार में निकले है मैं आपके चरणों में रह कर आपकी सेवा करुगी | रूपवती पेमल की व्यथा देखकर तेजाजी उसे अपने साथ ले जाने को राजी हो गये और उससे बात करके अपने साथ चलने को कहा तभी एकाएक वहां लाछां ने आकर कहा कि“मेर के मेणा डाकू उनकी गायों को चुरा कर ले गए हैं, इसलिए तेजा जी आप मेरी गायों को डाकुओं से छुड़ा कर लायें | तेजाजी गायों को लाने के अपने पांचों हथियार लेकर अपनी घोडी लीलण पर सवार हुए| रास्ते में उन्हें एक इच्छाधारी काला नाग आग में जलता हुआ दिखाई दिया तेजाजी ने तुरंत अपने भाले से नाग को आग से बाहर निकाला | नाग उन्हें धन्यवाद देने बजाय क्रोधित होकर बोला क्योंकि तुम मेरी मुक्ति में बाधक बने हो इसलिए मे तुमको डसूंगा | तेजाजी बोले नागराज मरते डूबते और जलते हों को बचाना मानव का धर्म है |
तेजाजी ने प्रायश्चित स्वरूप नागराज की बात मान ली और नागराज को वापिस लौट आने का वचन देकर सुरसुरा की घाटी में पहुंचें जहाँ मंदारिया की पहाड़ियों में डाकुओं के साथ उनका भंयकर संघर्ष जिसमें तेजाजी के शरीर पर अंको गहरे घाव हो गये और वो लहूलुहान हो गये लडाई मे अनेको डाकू मारे गये इव बाकी के डाकू भाग गये | वादा पूरा करने के लिये तेजा जी नाग राज के पास जाकर उस डसने के लिए अपने को प्रस्तुत कर दिया | लहूलुहान तेजाजी देख कर नागराज बोले तेजा तुम्हारे रोम रोम से तो खून टपक रहा है, में तुम्हें कहाँ डसू | तेजाजी बोले कि मेरे हाथ की हथेली व जीभ पर कोई घाव नहीं है इसलिए आप यहाँ डसं लें | नागराज बोला तुम शूरवीर होनेके साथ साथ अपने वचन के पक्के भी हो तुम्हारी सच्चाई के सामने में हार गया हूँ | में तुम्हें वरदान देता हूँ कि तुम अपने कुल के एक मात्र देवता बनोगे | आज के बाद काला सर्प का काटा हुआ कोई व्यक्ति यदि तुम्हारे नाम की तांती बांध लेगा
उसका जहर उतर जायेगा |
तेजाजी ने कहा “ नागराज आपको मुझें डसंना ही होगा | आखिर तेजाजी की जिद्द से हारकर तेजाजी की जीभ पर डस लिया |
अपने जीवन का अंत नजदीक देखकर सत्यवादी तेजा जी ने पास मे खडी ऊंट चराने वाले रबारी आसू देवासी को कहा “भाई मेरा प्रभु के परम धाम जाने का समय आ गया है | मेरी पत्नीं पेमल को मेरा रुमाल देकर कहना कि मेरे देव भगवान शिव मुझे बुला रहे है | तेजाजी की हालत को देख कर उनकी घोड़ी लीलण की आँखों से आंसू की अविरल गंगा बहने लगी उसे तेजा जी ने आदेश दिया के गंगा जल से परिवार के लोग और पेमल को मेरा हाल बता देना | “तेजाजी के बलिदान का समाचार सुनकर पेमल की आँखें पथरा गई उसने मां से नारियल माँगा, सौलह श्रृंगार किये, परिवार जनों से विदाई लेकर सुरसुरा ( किशनगढ़ के समीप ) जाकर अपने सत्यवादी पति के साथ सती होने का निश्चय कर लिया | कहते हैं कि चिता की अग्नि स्वतः ही प्रज्वलित हो गई थी लोगों ने पूछा कि सती माता तुम्हारी पूजा कब और कैसे करें तब सती पेमल ने बोला भादवा सुदी नवमी की रात्रि को तेजाजी धाम पर जागरण करना और दसमी को तेजाजी के धाम पर उनकी देवली को धौक लगाना, कच्चे दूध का भोग लगाना ऐसा करने से आप की सारी मनोकामनाये पुरी होगी |
मान्यताओं के अनुसार तेजा जी की बहिन राजल भी खरनाल के पास जोहड़ में सतीहो गई थी | भाई के पीछे सती होने का यह अनूठा एक मात्र उदाहरण है | राजल बाई का मंदिर खरनाल में गाँव के पूर्वी जोहड़ में है जिसे बांगुरी माता का मंदिर कहते हैं | तेजाजी की प्रिय घोड़ी लीलण ने भी अपना शारीर छोड़ दिया | लीलण घोड़ी का मंदिर आज भी खरनाल के तालाब के किनारे पर बना हुआ है |
डाक विभाग ने 7 सितंबर 2011 को तेजाजी के सम्मान में एक विशेष डाक टिकट जारी किया था. | 26 सितंबर 2024
सोमवार को तेजा जी के भक्त तेजा जयंती धूमधाम केसाथ मनाएंगे |
डा जे के गर्ग
पूर्व संयुक्त निदेशक कॉलेज शिक्षा जयपुर