सुभाषचन्द्र बोसः आजादी की सबसे उजली उम्मीद बने

सुभाषचन्द्र बोस जन्म जयन्ती 23 जनवरी, 2025

खून के बदले आजादी देने का वादा करने वाले भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के करिश्माई नेता, महान स्वतंत्रता सेनानी और विलक्षण एवं साहसी व्यक्तित्व के धनी नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम भारतीय इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा है। उनका त्याग, उनका बलिदान, उनकी साहसिकता, उनकी राष्ट्रीयता सर्वोपरि रहने के बावजूद उन्हें आजादी के बाद यथोचित सम्मान नहीं मिलना दुर्भाग्यपूर्ण एवं दुराग्रह का प्रतीक बनी रही, लेकिन लम्बे इंतजार के बाद अच्छी बात हुई है कि आजादी आंदोलन के महानायक एवं कर्मयोद्धा नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती को नरेन्द्र मोदी सरकार ने ‘राष्ट्रीय पराक्रम दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा करके देश के असंख्य लोगों की भावनाओं का सम्मान किया है। वास्तव में हमारी आजादी हमारे ऐसे ही वीरों के पराक्रम, शौर्य, समर्पण और साहस सेे मिली थी। यह सही है कि स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी का योगदान महत्वपूर्ण था, परंतु नेताजी के योगदान को कमतर आंकना या उनके योगदान का विस्मृत करना, किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं कहा जा सकता। भारत के स्वाधीनता संग्राम में आजाद हिंद फौज एवं नेताजी का सर्वाधिक योगदान रहा है, उनके योगदान की अमर कहानी अभी लिखी जानी शेष है और इसकी शुभ शुरुआत हो गयी है।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस आजादी की सबसे उजली उम्मीद बनकर उभरे थे। उन्होंने अपने शौर्य एवं पराक्रम से भारत को आजादी दिलाई एवं उन्होंने जिस अमृत को अपने संघर्ष से बटोरो एवं सुरक्षित भारत की भावी पीढ़ियों के लिए रखा था, वह तो राजनीतिक स्वार्थों की भेंट चढ़ गया। उस अमृत पर तो कोरी राजनीतिक स्वार्थ की रोटियां सेकी गयी, अपने-अपने स्वार्थ सिद्ध किये गये, देश को भूला दिया गया, नेताजी के योगदान को भूला दिया गया। यही कारण है कि 78 वर्षों के कालखण्ड में राष्ट्र मजबूत होने की बजाय दिन-ब-दिन कमजोर होता गया। नेताजी भारत के लिये करिश्में का एक ऐसा नाम था, जिन्होंने आजाद हिन्द सरकार के माध्यम से एक ऐसा भारत बनाने का वादा किया था, जिसमें सभी के पास समान अधिकार हों, सभी के पास समान अवसर हों। जो अपनी प्राचीन परम्पराओं से प्रेरणा लेगा और गौरवपूर्ण बनाने वाले सुखी, समृद्ध एवं सशक्त भारत का निर्माण करेगा। यह करोड़ों भारतीयों का सपना था, किंतु सुभाष बाबू से भय खाने वाले अंग्रेजों और बाद में उसी लीक पर चलकर सत्ता और परिवारवाद को मजबूत करने वाले राजनीतिक दलों एवं सत्ताधारियों ने उस महानायक के योगदान एवं सपनों को कुचलने का षड़यंत्रपूर्वक प्रयत्न किया। जब वर्ष 2018 को आजाद हिन्द सरकार के 75वीं वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से तिरंगा फहराया तो देश को मानो उसका बिसराया प्यार, स्वतंत्रता संग्राम की अनूठी स्मृतियों की जीवंतता से देश को वास्तविक रूप में आजादी का स्वाद चगने का अवसर मिल गया है।
सुभाष चन्द्र बोस के लिये असंभव कुछ नहीं था, वे भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी तथा सबसे बड़े नेता थे। आपका जन्म 23 जनवरी 1897 को को ओड़िशा के कटक शहर में हिन्दू कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माँ का नाम प्रभावती था। जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वकील थे। पहले वे सरकारी वकील थे मगर बाद में उन्होंने निजी प्रैक्टिस शुरू कर दी थी। प्रभावती और जानकीनाथ बोस की कुल मिलाकर 14 सन्तानें थी जिसमें 6 बेटियाँ और 8 बेटे थे। सुभाष उनकी नौवीं सन्तान और पाँचवें बेटे थे। अपने सभी भाइयों में से सुभाष को सबसे अधिक लगाव शरद चन्द्र से था।
सुभाषचन्द्र बोस आजीवन भारतीय स्वाधीनता संघर्ष के लिये युद्ध तथा सैन्य संगठन में रत रहते हुए भारत को आजादी दिलाने के प्रभावी एवं सार्थक प्रयत्न किये। सुभाष बाबू के जीवन पर स्वामी विवेकानंद, उनके गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस तथा महर्षि अरविंद के गहन दर्शन और उच्च भावना का प्रभाव था। युवा सुभाष ने 16 जुलाई 1921 को बम्बई  में महात्मा गांधी से मिलने के बाद सम्पूर्ण देश में अंग्रेजों के खिलाफ चल रहे असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया। उस समय देश में गांधीजी के नेतृत्व में असहयोग की लहर थी तथा अंग्रेजी वस्त्रों का बहिष्कार, विधानसभा, अदालतों एवं शिक्षा संस्थाओं का बहिष्कार भी इसमें शामिल था। इस बारे में बहुत कम लोग जानते हैं कि जर्मन के तानाशाह अडोल्फ हिटलर ने ही सुभाष चंद्र बोस को सबसे पहली बार ‘नेताजी’ कहकर बुलाया था। नेताजी के साथ ही सुषाभ चंद्र बोस को देश नायक भी कहा जाता है। कहा जात है कि देश नायक की उपाधि सुभाष चंद्र बोस को रवीन्द्रनाथ टैगोर से मिली थी। ‘नेताजी’ हर कीमत पर मां भारती को आजादी की बेड़ियों से मुक्त कराने को आतुर देश के उग्र विचारधारा वाले युवा वर्ग का चेहरा माने जाते थे। महात्मा गांधी को सुभाष चंद्र बोस ने ही ‘राष्ट्रपिता’ कह कर संबोधित किया था। उन्हें 1921 से 1941 के बीच में 11 बार देश के अलग-अलग जेल में कैद किया गया।
सुभाषचन्द्र बोस के जीवन की कहानी अधिक रोमांचकारी एवं अद्भुत रही है, लौह-संकल्पों एवं हौसल्लों से उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये, जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया था। उनके द्वारा दिया गया जय हिंद का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है। ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूँगा’ का नारा देकर उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ हुंकार भरी। आजाद हिन्द सरकार ने वादा किया था ‘बांटो और राज करो’ की उस नीति को जड़ से उखाड़ फेंकने का, जिसकी वजह से भारत सदियों तक गुलाम रहा था। इसके लिये नेताजी ने 5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हाल के सामने ‘सुप्रीम कमाण्डर’ के रूप में आज़ाद हिंद फौज की सेना को सम्बोधित करते हुए ‘दिल्ली चलो!’ का नारा दिया और जापानी सेना के साथ मिलकर ब्रिटिश व कामनवेल्थ सेना से बर्मा सहित इंफाल और कोहिमा में एक साथ जमकर मोर्चा लिया। आजाद हिन्द फौज को छोड़कर विश्व-इतिहास में ऐसा कोई भी दृष्टांत या उदाहरण नहीं मिलता जहाँ तीस-पैंतीस हजार युद्धबन्दियों ने संगठित होकर अपने देश की आजादी के लिए ऐसा प्रबल संघर्ष छेड़ा हो।
21 अक्टूबर 1943 को सुभाषचन्द्र बोस ने आज़ाद हिंद फौज के सर्वाेच्च सेनापति की हैसियत से स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड सहित 11 देशो की सरकारों ने मान्यता दी थी। जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप इस अस्थायी सरकार को दे दिये। नेताजी उन द्वीपों में गये और उनका नया नामकरण किया। 1944 को आज़ाद हिंद फौज ने अंग्रेजों पर दोबारा आक्रमण किया और कुछ भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त भी करा लिया। कोहिमा का युद्ध 4 अप्रैल 1944 से 22 जून 1944 तक लड़ा गया एक भयंकर युद्ध था। इस युद्ध में जापानी सेना को पीछे हटना पड़ा था और यही एक महत्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुआ। 6 जुलाई 1944 को उन्होंने रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी के नाम एक प्रसारण जारी किया जिसमें उन्होंने इस निर्णायक युद्ध में विजय के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ माँगीं।
नेताजी की मृत्यु को लेकर आज भी विवाद है। जापान में प्रतिवर्ष 18 अगस्त को उनका शहीद दिवस धूमधाम से मनाया जाता है। सुभाषचन्द्र बोस की 128वीं जन्म जयन्ती मनाते हुए भारत को भारतीयता की नजर से देखना और समझना जरूरी है। ये आज जब हम देश की स्थिति देखते हैं तो और स्पष्ट रूप से समझ पाते हैं कि स्वतंत्र भारत के बाद के दशकों में अगर देश को सुभाष बाबू, सरदार पटेल जैसे व्यक्तित्वों का मार्गदर्शन मिला होता, भारत को देखने के लिए विदेशी चश्मा नहीं होता तो स्थितियां बहुत भिन्न होतीं एवं सशक्त भारत का निर्माण होता। प्रेषकः

(ललित गर्ग)
ई-253, सरस्वती कुंज अपार्टमेंट
25 आई पी एक्सटेंसन, पटपड़गंज, दिल्ली-110092
फोनः-22727486, मोबाईल:- 9811051133 

Leave a Comment

This site is protected by reCAPTCHA and the Google Privacy Policy and Terms of Service apply.

error: Content is protected !!