सिंधी युवाओं को जागृत होने का संदेश

विश्व भर में हजारों बोलियां और भाषाएं अपने वजूद के लिए संघर्षरत हैं।
भाषाओं और बोलियों पर मंडरा रहे संकटकाल में हर जाति समुदायए प्रदेश अपनी
विरासत को सहेजना जरूरी मानता है और इस सांस्कृतिक साहित्यिक विरासत को
इसलिए अनिवार्य रूप से सहेजना भी चाहिए कि इससे अकथ और अलिखिल ऐतिहासिक
जानकारियां भी हमें नई पीढ़ी तक पहुंचाने में आसानी होती रही है। विभाजन
के बाद सिंधी समाज ने भारत के कोने कोने में अपने प्रदेश सिंध को साकार
बनाया है लेकिन भाषा और साहित्य के संकट से उसे भी जूझना पड़ रहा है ।
बीसवीं सदी के अंतिम दशक में बीकानेर के मोहन थानवी ने सिंधी युवाओं को
जाग्रत होने का संदेश इस रचना के माध्यम से दिया –
उथो जागो त पहिंजी इन्हींअ सिंधु खे ठाह्यूं … उथो जागो त-
उथो जागो त पहिंजी इन्हींअ सिंधु खे ठाह्यूं
अजमेर इन्दौर न उल्हास नगर
हिन्द सजी सिंधु समझयूं असां सभई भाउर
विकणी सभु बुराइयूं पहिज्यूं, चंङाई ठाह्यूं
सच्चा व्यापारी चवायूं सिंधी
हिन्दु जी कुण्ड-कुड़छ में जोति जगायूं सिंधी
उथो जागो त पहिंजी इन्हींअ सिंधु खे ठाह्यूं
जेका विसामिजण ते आहे
सिंधियतजी उवाई वडी जोति भभिकायूं
पहिंजे बारनि जे- जीवन खेत में खोटयूं
कर्म जो दरिया
वाह्यूं पसीनो थे खीरु मिठ्ठो
खारायूं पहिंजे बारनि खे
व्यापार जो गुण साणु पहिंजियूं रितियूं
उथो जागो त पहिंजी इन्हींअ सिंधु खे ठाह्यूं
~मोहन थानवी 

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