प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हाल में सम्पन्न हुई अमेरिका की दो दिवसीय यात्रा अनेक दृष्टियों से ऐतिहासिक, अविस्मरणीय एवं मील का पत्थर बनकर प्रस्तुत हुई है। यह निश्चित है कि मोदी के नेतृत्व में एक नई सभ्यता और एक नई संस्कृति गढ़ी जा रही है। व्हाइट हाउस में संपन्न प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बातचीत कई मायनों में सकारात्मक एवं परिणामकारी रही। उसमें किसी तरह की तल्खी नजर नहीं आई, बल्कि मोदी-ट्रंप की दोस्ती ही नये विश्वास एवं संकल्प के साथ उभर कर सामने आयी है। यह निर्विवाद सत्य है कि अमेरिका हमेशा अपने कारोबारी हितों को ही प्राथमिकता देता है। इस मुलाकात में यही नजर आया कि ट्रंप दोनों देशों के व्यापार संतुलन का पलड़ा अमेरिका के पक्ष में करने को कटिबद्ध है। लेकिन मोदी ट्रंप की चतुराई को भी अपनी सादगी एवं सरलता से मात देते हुए भारत के हित में अनेक समझौते कर लिये हैं। यह तथ्य सर्वविदित है कि अमेरिका की नीतियां ‘अमेरिका से शुरू होकर अमेरिका’ पर ही समाप्त हो जाती हैं। दूसरी बार सत्ता में आए ट्रंप ने जिस आक्रामक तरीके से कनाडा, मैक्सिको व चीन आदि पर टैरिफ लगाए हैं, वैसी आक्रामकता उन्होंने भारत के प्रति नहीं दिखायी। यह अमेरिका की भारत के प्रति एक विशेष दृष्टि मोदी के प्रभाव का ही परिणाम है।
ट्रंप ने मोदी को अपनी तुलना में बेहतर सख्त वार्ताकार बताया। दोनों नेताओं ने वर्ष 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को दुगुना करने तथा लाभप्रद व्यापार समझौते के लिये बातचीत करने का संकल्प भी जताया। भविष्य में व्यापार समझौता अमेरिका के पक्ष में न झुके, इसके लिये प्रधानमंत्री मोदी ने कूटनीतिक कौशल का इस्तेमाल किया। भारत को नया बनने के लिए, स्वर्णिम बनाने के लिए, अनूठा बनाने के लिए और उसे विश्व की एक बड़ी ताकत के रूप में उभारने के लिये मोदी के प्रयास अनूठे भी हैं और विलक्षण भी हैं। यहां उल्लेखनीय है कि मोदी-ट्रंप मुलाकात में रक्षा और सुरक्षा क्षेत्र में बातचीत सकारात्मक रही। दोनों देशों ने एक दस वर्षीय रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए। जिसमें प्रमुख हथियारों और प्लेटफार्मों के सह-उत्पादन को आगे बढ़ाने की महत्वाकांक्षी योजना का मार्ग प्रशस्त किया गया। वहीं दूसरी ओर यदि भारत को अमेरिकी एफ-35 स्टील्थ लड़ाकू विमानों की प्रस्तावित आपूर्ति परवान चढ़ती है तो पड़ोसी देशों की बेचैनी और बढ़ जाएगी और भारत की ओर देखने की उनकी हिम्मत नहीं होगी। मोदीजी का जादू एक बार फिर सिर चढ़कर बोला है। मोदी की इस यात्रा के पीछे इरादा केवल भावनात्मक रिश्तों की बुनियाद को मजबूत करना नहीं रहा है, बल्कि भारत के हक में अमेरिकी नीतियों को प्रभावित करने के लिए उनका सहयोग पाने की मंशा भी रहा है, जो सफल हुआ। संभव है इससे भारत और अमेरिका दोनों ही देशों में विकास के नये रास्तें खुलेंगे।
इस यात्रा के दौरान महत्वपूर्ण घोषणा यह भी रही है कि 26/11 के साजिशकर्ता तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण को मंजूरी दे दी गई है। यह पाकिस्तान को चेतावनी भी है कि वह अपनी जमीन से आतंकवादियों को सीमापार आतंकी हमलों को अंजाम देने में मदद बंद करे। अब इस्लामाबाद पर मुंबई और पठानकोट के आतंक हमलों के साजिशकर्ताओं को सजा देने का दबाव भी बढ़ जाएगा। निस्संदेह, ट्रंप का ‘टैरिफ आतंकवाद’ निगलने वाली कड़वी गोली हो सकती है, लेकिन भारत की रक्षा तैयारियों में अमेरिका की बड़ी भूमिका एक आकर्षक प्रस्ताव होगा, जिससे भारत सैन्य मोर्चे पर सशक्त होकर उभरेगा। ट्रंप के साथ मुलाकात में भारत ने अवैध रूप से आए भारतीयों को वापस लेने की बात भी कही। पत्रकार वार्ता में मोदी ने कहा कि इस मुद्दे पर हमारे विचार एक जैसे हैं। यदि अमेरिका में अवैध भारतीय प्रवासियों की पुष्टि होती है तो हम उन्हें वापस लेने के लिये तैयार हैं। उन्होंने इसे मानव तस्करों की करतूत बताया।
मोदी की यह यात्रा दो बहुत अच्छे दोस्तों की बहुत ही नाजूक समझौतेवादी भूमिका को देखने का एक दिलचस्प एवं रोमांचक मौका बनी, प्रतिकूल लगते हालात को अनुकूल नतीजों की ओर मोड़ने का कौशल भी इस यात्रा में बेहतरीन अंदाज में नजर आया। दोनों नेता न केवल पहले से एक-दूसरे को अच्छी तरह से जानते रहे हैं बल्कि उनके बीच की व्यक्तिगत मित्रता एवं आत्मीयता भी चर्चित रही है। यह सुखद संयोग है कि दोनों नेता दुनिया के सबसे बड़े पुराने और सबसे विशाल लोकतंत्र के राष्ट्राध्यक्ष हैं। अमेरिका को पहले से ही दुनिया ग्लोबल लीडर मानती रही है। अब भारत नया और उभरता हुआ विश्वनेता बना है। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी और ट्रंप की जोड़ी से दुनिया पर नये तरीके से आधिपत्य बदलता दिख रहा है। दोनों देशों के लगातार बेहतर होते रिश्तों की पृष्ठभूमि इस तथ्य को और महत्वपूर्ण बना रही थी। फिर भी यात्रा से पहले के घटनाक्रम ने इसकी कामयाबी पर भले ही संदेह की परतें चढ़ा रखी थी, लेकिन मोदी की कुशलता एवं कूटनीति से सभी वार्ताएं सौहार्दपूर्ण होकर सकारात्मक बनी। जिससे भारत एक बार फिर दुनिया के सामने सशक्त एवं ताकतवर बनकर ही प्रस्तुत हुआ है।
ट्रंप के कतिपय सख्ती से बने तनाव को मोदी ने हावी नहीं होने दिया। प्रधानमंत्री मोदी पूरी तरह से अपने अजेंडे पर केंद्रित रहे। उन्होंने न केवल ट्रंप की तारीफ की बल्कि राष्ट्रपति ट्रंप के प्रिय नारे ’मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ (एमएजीए) की तर्ज पर अपना नारा पेश किया- ‘मेक इंडिया ग्रेट अगेन’ (एमआईजीए), और यह भी कहा कि जब एमएजीए और एमआईजीए साथ आते हैं तो बन जाता है एमईजीए जो दोनों देशों की शानदार साझेदारी की कहानी कहता है। इस तरह दोनों देश ने दुनिया के बॉस होते हुए अपने वर्चस्वी होने को व्यक्त किया। अमेरिका तो इस भूमिका में रहा है, लेकिन अमेरिका भारत को भी इस भूमिका में मानता है तो निश्चित ही यह भारत की दुनिया में मजबूत होती स्थिति को ही बयां कर रहा है। अब दुनिया के हर विवादों को सुलझाने में भारत-अमेरिका की संयुक्त एवं भूमिका महत्वपूर्ण होने से भारत की ताकत को समझा जा सकता है। निश्चित रूप से दोनों देशों के बीच के कई समीकरण आने वाले दिनों में नया आकार लेंगे, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा ने इस उम्मीद को ठोस आधार दे दिया है कि सहयोग के स्वरूप में जो भी बदलाव हो, रिश्ता बेहतर ही होता जाएगा। मोदी की इस अमेरिका यात्रा की अहमियत जाहिर है और इसे संभावनाभरा भी माना जा रहा है। डोनाल्ड ट्रंप के दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद यह अमेरिका का उनका पहला सफर है। ट्रंप के साथ वाइट हाउस में मोदी की मुलाकात ने यही जताया कि दोनों नेताओं एवं देशों के संबंधों को और प्रगाढ़ करने की ललक दोनों तरफ है।
भारतीय प्रधानमंत्री की अमेरिकी राष्ट्रपति से मुलाकात पर देश ही नहीं, दुनिया की भी निगाहें थीं। एक तो इसलिए कि मोदी उन चुनिंदा शासनाध्यक्षों में से एक हैं, जिनसे डोनाल्ड ट्रंप ने प्रारंभिक दौर में ही मुलाकात करना बेहतर समझा और दूसरे इसलिए कि भारत अब एक बड़ी ताकत बन चुका है और वैश्विक मामलों में उसका रुख-रवैया एवं नीतियां मायने रखती है। इस मुलाकात को लेकर जिज्ञासा का एक कारण यह भी था कि बाइडन प्रशासन के समय अमेरिका और भारत के संबंधों में एक खिंचाव आ गया था। एक अर्से से यह महसूस किया जा रहा था कि बाइडन प्रशासन भारतीय हितों की वैसी चिंता नहीं कर रहा है, जैसी करनी चाहिए। मोदी और ट्रंप की मुलाकात ने यह तो रेखांकित किया कि दोनों देशों के संबंधों में गर्मजोशी लौट आई है, लेकिन अभी यह नहीं कहा जा सकता कि अमेरिका भारत की समस्त चिंताओं का समाधान करने जा रहा है, लेकिन इसे नकारा भी नहीं जा रहा है। ट्रंप ने बांग्लादेश के मामले में भारत के मन मुताबिक बात कहकर, सीमा पार यानी पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से मिलकर लड़ने का वादा किया। कुल मिलाकर विकसित भारत के लक्ष्य में सहायक बनने वाले विभिन्न क्षेत्रों में अमेरिका से सहयोग की राह प्रशस्त होना भारत के लिये एक नये सूरज का उदय ही कहा जायेगा। प्रेषकः
(ललित गर्ग)
लेखक, पत्रकार, स्तंभकार
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