- कई महलों को मालिक थे, मगर 3 साल रहे 1 कमरे के छोटे से घर में
- महाराणा प्रताप के वंशज ने कपड़ा कंपनी में जूनियर पद पर नौकरी भी की
- खुद ही सब्जियां खरीदते और खुद ही खाना बनाते, कहीं भी पैदल ही जाते
- पहली बार विमान में अकेले सफर किया तो थे बहुत सहमे सहमे से थे
- मेवाड़ की विरासत पर सदा विवाद के केंद्र में रहे महाराणा, जंग आगे भी जारी
-राकेश दुबे
मेवाड़ के पूर्व राजपरिवार के सदस्य अरविंद सिंह मेवाड़ का निधन हो गया है। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उन्होंने मेवाड़ राजघराने के मुख्यालय उदयपुर स्थित अपने राजमहल शंभू निवास में आज तड़के अंतिम सांस ली। ने 80 साल के थे और 16 मार्च 2025 को निधन होने के दूसरे दिन 17 मार्च को उनका अंतिम संस्कार किया जाना है। उदयपुर को पर्यटन के वैश्विक मानचित्र पर पहुंचाने में भी अरविंद सिंह मेवाड़ का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। राजपरिवार के होने के बावजूद आम आदमी की जिंदगी में उनकी बड़ी रुचि रही। महाराणा अरविन्द सिंह मेवाड़ ने आम आदमी का जीवन जानने और उसका अनुभव लेने के लिए अपनी जिंदगी के लगभग लिए 3 साल एक कमरे के छोटे से घर में बिताकर आम आदमी के जीवन की मुश्किलों को नजदीक से जाना। वे भारत में ऐसा नहीं कर सकते थे, इसलिए यूके चले गए। जहां, यूके में कपड़े की कंपनी में नौकरी भी की, तो क्रिकेट भी गजब खेला। अकेले ही घूमे, अकेले ही सब्जियां खरीदी और अकेले ने ही खाना भी बनाया। पूरा मेवाड़ अपने श्रीजी के निधन से शोकमय है।
अरविंद सिंह को मेवाड़ की जनता श्रीजी कह कर सम्मान देती थी। वे मेवाड़ राजघराने के कानूनी वारिस थे, और मेवाड़ उदयपुर स्थित सिटी पैलेस राजमहल के शंभू निवास में रहते थे। यहीं पर उनका इलाज चल रहा था। महाराणा प्रताप के वंशज अरविंद सिंह ने अजमेर के मेयो कॉलेज से अपनी स्कूली पढ़ाई की, बाद में उदयपुर में महाराणा भूपाल कॉलेज से आर्ट्स में ग्रेजुएशन किया। फिर ब्रिटेन पढ़ने गए, जहां सेंट एल्बंस मेट्रोपॉलिटन कॉलेज से होटल मैनेजमेंट की डिग्री भी ली थी। मैनचेस्टर नौकरी करने जाना उनकी लाइफ का टर्निंग प्वाइंट रहा, जहां उन्हें कपड़े की फैक्ट्री में जूनियर एग्जिक्यूटिव की नौकरी भी मिल गई। क्रिकेट के गजब शौकीन रहे अरविंद सिंह मेवाड़ मैनचेस्टर में जमकर क्रिकेट खेले, जो एक राजपरिवार के सदस्य होते हुए भारत में वे शायद ही खेल सकते थे। वे महाराणा मेवाड़ फाउंडेशन ट्रस्ट, महाराणा मेवाड़ ऐतिहासिक प्रकाश ट्रस्ट, राजमाता गुलाब कुंवर चेरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष थे। अरविंद सिंह का संसार से चले जाना मेवाड़ राजवंश के लिए एक बड़ी क्षति है। अपने जीवनकाल में उदयपुर और मेवाड़ के विकास में अरविंद सिंह का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
बरसों पहले की बात है, अरविंद सिंह मेवाड़ एक दिन सुबह पिछोला झील के किनारे टहल रहे थे, तो उन्हें वे शाही ठाट – बाट वाला जीवन जो जी रहे थे, उस जीवन से हल्की सी ऊब हुई, और मन में उन्हें कुछ खालीपन महसूस हुआ, तो उदयपुर के अपने शाही राजमहल के भव्य जीवन को छोड़कर ब्रिटेन चले जाने का निर्णय कर लिया, और वे निकल भी गए। लगभग दो दशक पहले अपने समान्य जीवन के अनुभवों को साझा करते हुए महाराणा अरविंद सिंह मेवाड़ ने प्रख्यात पत्रकार निरंजन परिहार से एक बातचीत में कहा था कि मैनचेस्टर के हेल में वे जब नौकरी करने गए, तो एक कमरे के छोटे से घर में रहे, वे अपने खाने का सामान खुद खरीदते थे, और सब्जियां खरीदने से लेकर रसोई में भोजन भी खुद ही बनाते थे। राजपरिवार के होने के बावजूद वहां पर अपनी कमाई से ही जिंदगी बिताई। परिहार बताते हैं कि मेवाड़ के महाराणा होने के बावजूद बातचीत करने में अरविंद सिंह बेहद सरल थे। न उनमें कोई राजपरिवार का रौब और न ही किसी तरह के राजवंश वाला दर्प। अपनी यूके यात्रा के बारे में उन्होंने खुद ही बताया था कि भारत में तो वे हर पल कई लोगों से घिरे रहने वाले राजकुमार थे, लेकिन ब्रिटेन जाते वक्त अरविंद सिंह अकेले थे, क्योंकि वे पहली बार अकेले सफर करने वाले थे, सो कुछ सहमे सहमे से थे। उन्होंने अपने रेल के सफर का पहला दिन याद करते हुए बताया था – मैंने खुद ही अपना रेल टिकट खरीदा था। ये आप लोगों के लिए एक सामान्य बात हो सकती है, लेकिन ये मेरी जिंदगी के लिए बिल्कुल नई चीज थी, क्योंकि हमने कभी ऐसा किया भी नहीं था। परिहार बताते हैं कि उदयपुर में लहलहाती झील के किनारे बसे कई एकड़ में फैले विशाल राजमहल के विराट राजसी ठाट-बाट को छोड़कर अनजाने देश में एक कमरे के घर में रहना उनके लिए अपने आप में एक खास अनुभव था, जिसे अरविंद सिंह मेवाड़ जब बता रहे थे, तो उनके चेहरे पर कुछ खास जीने के अनुभव की छाप को साफ देखा जा सकता था। उन्होंने बताया कि वे जब यूके में थे, तो ज्यादातर काम के लिए कहीं भी पैदल ही जाते थे। उस दौर में उन्होंने खुद के भीतर सामान्य व्यक्ति के होने के अनुभव किया।
मेवाड़ राजवंश के 76वीं पीढ़ी के अरविंद सिंह मेवाड़ इस विरासत के संरक्षण के रूप में परिवार के प्रमुख थे। उनके बड़े भाई महेन्द्र सिंह मेवाड़ का निधन पिछले साल 10 नवंबर 2024 को हुआ था। मेवाड़ राजवंश में राणा सांगा, महाराणा कुंभा और महाराणा प्रताप जैसे पराक्रमी राजा हुए, जिनकी ख्याति देश दुनिया के इतिहास में दर्ज है। पहले चित्तौड़, फिर कुंभलगढ़ और बाद में उदयपुर मेवाड़ राजघराने की राजधानी रहा। इस राजघराने के पास अकूत संपत्ति भी है। यह परिवार भारत के सबसे ऊंचे शिखर के 10 अमीर राजघरानों में से एक है। मेवाड़ राजपरिवार के पास लाखों करोड़ रुपए की संपत्ति है। अरविंद सिंह मेवाड़ ने छोटे बेटे होने के बावजूद अपने पिता महाराणा भगवत सिंह मेवाड़ की एक वसियत के जरिए मेवाड़ राजघराने के कानूनी वारिस के रूप में खुद को स्थापित कर दिया था, इसी कारण वे जब तक जीवित रहे, मेवाड़ राजघराने की संपत्ति के लिए अपने बड़े भाई महेन्द्र सिंह मेवाड़ से विवाद जारी रहा। महेन्द्र सिंह मेवाड़ के बेटे विश्वराज सिंह मेवाड़ नाथद्वारा से विधायक हैं और उनकी पत्नी महिमा कुमारी राजसमंद की सांसद।
अरविंद सिंह मेवाड़ एचआरएच ग्रुप ऑफ होटल्स के अध्यक्ष थे। यह ग्रुप हैरिटेज महलों को होटल और रिसॉर्ट में तब्दील करने का काम करता है। राजशाही समाप्त होने के बाद से वर्तमान में मेवाड़ राजवंश के होटल बिजनेस में भी है। महाराणा प्रताप के वंशज अरविंद सिंह ने यूके के सेंट एल्बंस मेट्रोपॉलिटन कॉलेज से होटल मैनेजमेंट की डिग्री भी ली थी। मेवाड़ राजघराना संसार के सबसे बेहतरीन, सर्वाधिक आलीशान और भव्यतम महंगे होटलों का मालिक हैं। मेवाड़ राजघराने की कुल संपत्ति कितनी है, इसका सही आंकड़ा किसी को नहीं पता। लेकिन उनकी कमाई का सबसे बड़ा जरिया होटलों से मिलने वाली कमाई है। अरविंद सिंह के निधन के बाद उनके बेटे लक्ष्यराज सिंह राजगद्दी के परंपरागत रूप से कानूनी वारिस होंगे।
मेवाड़ राज परिवार बीते कुछ दशकों से लगातार चर्चा में है। कभी अपने शानदार होटलों की वजह से, तो कभी इस राजवंश की राजगद्दी और विरासत उसे चर्चा में लाती रही है। उत्तराधिकार का विवाद नाथद्वारा के वर्तमान विधायक विश्वराज सिंह मेवाड़ और उनके चाचा अरविंद सिंह मेवाड़ के बीच था, जो अब अरविंद सिंह के निधन उनके चचेरे भाई लक्ष्यराज सिंह के साथ चलेगा, यह लगभग सुनिश्चित है। सन 1984 में महाराणा भगवत सिंह के निधन के बाद इस विवाद की शुरुआत हुई थी। एक तरफ जहां भगवत सिंह के बड़े बेटे महेंद्र सिंह का मेवाड़ के ठाकुरों और ठिकानेदारों ने राजतिलक करके उन्हें सांकेतिक तौर पर नया ‘महाराणा’ घोषित किया था, तो दूसरी ओर से भगवत सिंह के छोटे बेटे अरविंद सिंह ने न्यायालय में अपने पिता की एक वसीयत के जरिए सारी संपत्ति का वारिस खुद को बताया था। हाल ही में इस विवाद ने फिर जोर पकड़ा था, जब मेवाड़ राजवंश में महेंद्र सिंह के निधन के बाद उनके बेटे विश्वराज सिंह मेवाड़ का राजतिलक किया गया था। आने वाले दिनों में लक्ष्यराज सिंह वर्तमान में सारी संपत्ति के संरक्षक के रूप में अपने पिता अरविंद सिंह मेवाड़ की विरासत को सम्म्हालेंगे। इसी कारण मेवाड़ राजघराने के इस विवाद के आगे भी लगातार चलते रहने की संभावना है। अरविंद सिंह चो चले गए, लेकिन संसार को रह रह कर विभिन्न कारणों से याद आते रहेंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)