3 मई विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस
विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस हर साल 3 मई को मनाया जाता है। विश्व भर में यह दिन मीडिया के योगदानों को याद करने के लिए समर्पित किया जाता है। यह दिवस हमें मीडिया की स्वतंत्रता के महत्व के बारे में बताता है और पत्रकारों की सुरक्षा के लिए आवाज उठाने के लिए प्रेरित करता है। 1991 में यूनेस्को की जनरल असेंबली के 26वें सत्र में अपनाई गई सिफारिश के बाद, संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) ने दिसंबर 1993 में विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की घोषणा की थी। यह विंडहोक की घोषणा की वर्षगांठ का प्रतीक है, जो प्रेस स्वतंत्रता का वैश्विक पालन बन गया है।
विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पत्रकारों और मीडियाकर्मियों की सुरक्षा की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है, जो अक्सर धमकियों, हिंसा और हत्याओं का सामना करते हैं। यह दिन स्वतंत्र, निष्पक्ष और सच्ची पत्रकारिता के महत्व को याद दिलाता है, जो लोकतंत्र और विकास के लिए आवश्यक है। विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस सूचना तक पहुंच के महत्व पर भी जोर देता है जो सभी नागरिकों का मूल अधिकार है। इस दिन, हम दुनिया भर के पत्रकारों के योगदान को स्वीकार करते हैं और उनकी सराहना करते हैं।
यह दिन उन पत्रकारों को श्रद्धांजलि के रूप में भी कार्य करता है जिन्होंने जनता को सूचित करने और प्रबुद्ध करने के अपने कर्तव्य को पूरा करते हुए दुखद रूप से अपनी जान गंवा दी है। उनका बलिदान हमें उन जोखिमों की याद दिलाता है जिनका वे सत्य की खोज में सामना करते हैं। हमें यह कतई नहीं भुलना चाहिए कि आज की पत्रकारिता कितनी जोखिम भरी हो गई है, जब भ्रष्टाचार को उजागर करते हुए पत्रकारों को अपनी जान तक गंवानी पड़ रही है। इंडिया फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन इनिशिएटिव की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2023 में पूरे भारत में पांच पत्रकारों की हत्या हुई और 226 पत्रकारों को निशाना बनाया गया। इससे पहले साल 2022 में देशभर में 94 पत्रकारों को निशाना बनाया गया। वहीं 8 पत्रकारों की हत्या हुई। इसमें से 103 पत्रकारों को राज्य द्वारा निशाना बनाया गया, 91 पत्रकारों को राजनीतिक कार्यकर्ताओं सहित गैर-राज्य अभिनेताओं द्वारा निशाना बनाया गया। इसके अलावा 2019 और 2021 के बीच 256 घटनाएं दर्ज की गईं जिनमें पत्रकारों के साथ हिंसा हुई थी। इन घटनाओं में शारीरिक हमले, धमकियां, गिरफ्तारी, और मानहानि के मामले शामिल थे। ऐसी घटनाएं हर बार फिर सवाल खड़ा करती है कि आखिर मीडियाकर्मियों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाए।
विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर पत्रकारों की सुरक्षा का सबसे बड़ा सवाल उभर कर आाना चाहिए कि आखिर अपनी जान की बाजी लगाकर सच को लोगों के सामने पहुंचाने वाले जांबाज पत्रकारों पर हमले क्यों हो रहे हैं। प्रेस की स्वतंत्रता पर कोई भी सभ्य समाज इस तरह के हमलों को स्वीकार नहीं कर सकता। आखिर सच दिखाने की कीमत कब तक पत्रकार यूं अपनी जान देकर चुकाते रहेंगे।
विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के दिन हमें यह सोचने की जरूरत है कि प्रेस को सिर्फ लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा न जाए बल्कि संविधान के जरिए पत्रकारों को जरूरी अधिकार भी दिए जाए। पत्रकार अपना काम ईमानदारी से कर सके इसके लिए उन्हें सुरक्षित माहौल मिलना चाहिए। पत्रकारों की सुरक्षा के लिए यथाशीघ्र एक कानून बनाए जाने की जरूरत है। राज्य और केंद्र सरकारों को कम से कम उन पत्रकारों की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेनी चाहिए जो अपनी जान पर खेलकर संवेदनशील इलाकों में गंभीर मुद्दों पर संवाद जुटाने का साहस कर रहे हैं।
प्रेस की स्वतंत्रता से यह बात भी साबित होती है कि किसी भी देश में अभिव्यक्ति की कितनी स्वतंत्रता है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में प्रेस की स्वतंत्रता एक मौलिक जरूरत है। यह दृष्टिकोण मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुच्छेद 19 द्वारा समर्थित है, जिसमें कहा गया हैः ‘प्रत्येक व्यक्ति को राय और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है, इस अधिकार में हस्तक्षेप के बिना राय रखने और किसी भी मीडिया के माध्यम से और सीमाओं की परवाह किए बिना सूचना और विचारों को प्राप्त करने, प्रदान करने और प्रदान करने की स्वतंत्रता शामिल है।‘ पर आज देखा जा है कि देश की सरकारें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का खुला अपमान करते हुए कैसे डराने की नीयत से मीडिया पर कार्रवाई कर रही है। विभिन्न मीडिया संस्थानों पर पड़ रहे छापे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है। सत्ता की आलोचना करने वाले समाचार संगठनों/मीडिया संस्थानों को डराने-धमकाने के लिए सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है।
देश में तेजी से बढ़ रही सरकारों की इन गतिविधियों से साफ हो गया है कि अब सरकारें आलोचक मीडिया की आवाज को दबाने की लगातार कोशिश कर रही है। सरकारों की ओर से प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ को दबाने का, सच को रोकने का काम शुरू से ही किया जा रहा है, जो सरासर गलत है। एक के बाद एक लगातार मीडिया संस्थानों पर हो रही कार्यवाहियों से साफ है कि जो मीडिया संस्थाएं सरकार की नीतियों का विरोध करेगी, सरकार राजनीति प्रतिशोध की भावना से ऐसी छापेमारी वाली कार्यवाहियां कर उनको परेशान करेगी। ऐसे में संविधान में मीडिया संस्थानों को जो चौथे स्तंभ का दर्जा दिया गया है, उसे बचाकर रख पाना चुनौती है।
बहरहाल, वर्ष 2025 के लिए अपने विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस का उत्सव मानते हुए इसके महत्त्व को समझें कि एक स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रेस लोकतंत्र, जवाबदेही और एक सूचित समाज के लिए कितना महत्वपूर्ण है। जबकि हम साहसी पत्रकारों का सम्मान करते हैं, हमें प्रेस की स्वतंत्रता के लिए सतर्क रहना चाहिए, गलत सूचनाओं के खिलाफ लड़ना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सत्य और पारदर्शिता हर देश की उन्नति और न्याय का आधार हों। सरकारों, मीडिया और नागरिक समाज को मिलकर प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए और स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करना चाहिए, क्योंकि यही लोकतंत्र और सूचित सार्वजनिक विमर्श की आधारशिला है। (लेखक भारत अपडेट के संपादक हैं)
बाबूलाल नागा
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