*ये हर साल के टॉपर हमें हीन भावना दे जाते हैं…इस साल 99.96%%..*

*अब बताओ ये क्या बात हुई….अमा नंबर ले रहे हो या कॉपी चेक करने वाले को लूट रहे हो…..*
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*हमारे टाइम पर अखबार में अगर फर्स्ट डिवीजन दिख भर जाए…लड्डू बंट जाते थे मोहल्ले में….60% के ऊपर का हर बच्चा इंटेलिजेंट की श्रेणी में काउंट कर लिया जाता था….मुश्किल भी होता था….87% वाला तो यू पी टॉप कर जाता था….सेकण्ड डिविजन भी है तो कोई दिक्कत नहीं जी…उसमें भी गुड सेकण्ड डिविजन का ऑप्शन था….गुड सेकण्ड वाला खुद को फर्स्ट वाले से उतना ही नीचे समझता था जितना NIT वाला खुद को IIT वाले से समझता है…अच्छा अगर थोड़े बहुत नंबर से फर्स्ट डिवीजन रुक जाए तो बिना मार्कशीट देखे पूरा परिवार एक सुर में प्रैक्टिकल सब्जेक्ट वाले मास्टर पर आरोप मढ़ देता था….चिढ़ता है हमारे बेटे से..पता नहीं क्यों ??*
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अमित टंडन

*रिजल्ट का दिन* किलकारियों का दिन होता था…किसी घर से खुशियों की किलकारियां सुनाई देती थी तो किसी घर से से *चप्पल-प्रसादी* के बाद ह्रदय-विदारक वाली…मोहल्ले में ऐसे ऐसे जियाले थे कि घर में घुसते ही *रिजल्ट की बजाय गाल आगे कर देते थे….*बाप भी समझ जाता था कि रिजल्ट क्या रहा…फिर वो अपनी *वार्षिक जिम्मेदारी* बुझे मन से निभाते थे….अब कभी कभार हो तो ठीक है लेकिन हर साल लड़के को कुत्ते की तरह धो-धो के बोर नहीं हो जाएगा इंसान ??

*ऐसे लड़के जब चार साल बाद गोल्डन चांस में बारहवीं थर्ड डिविजन में पास कर घर में घुसते थे तो बाकायदा अभिषेक होता था उनका…मम्मी आरती का थाल सजाती थी….पापा HMT की घड़ी देते थे…साथ के यार दोस्त,जिनमें से कुछ की शादी भी हो चुकी होती थी,अपने बच्चों से भी कौन्ग्रेचुलेशन्स बुलवा लेते थे….*
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कुल मिलाकर माहौल ही अलग होता था…..रिजल्ट वाले अखबार की कम प्रतियां आती थी…..जिस न्यूज एजेंसी वाले के पास होती थी वो ऐसे बिहेव करता था मानों *अमिताभ बच्चन जलसा के अपने झरोखे से फैन्स का अभिवादन स्वीकार कर रहे हों….*
लाइन में आओ…पांच रुपया छुट्टा लाना…ओये एक एक करके आओ…जाओ मैं नहीं बताता….बाद में आना….बता दे भाई पैर पड़ता हूँ तेरे……अबे एक बार में एक का ही बताऊंगा….. अच्छा मेरी बहन का बता दे प्लीज……लड़कियों के रिजल्ट उनके अगर सगे भाई हैं तो वो देखने जाते थे…अगर नहीं है तो *हर मोहल्ले में एक जगत-भैय्या तो होते ही थे…..*रिजल्ट देख के घर आते वक़्त चेहरे के सारे भाव पोंछ दिए जाते थे ताकि घर में घुसने तक सस्पेंस बना रहे…..मम्मी-पापा चातक दृष्टि से देखते थे….अबे बता ना….
*बताएगा तभी तो हम डिसाइड करेंगे* कि कौन सी वाली आरती करनी है…..
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अब क्या है….कम्पूटर खोला और फर्र्र्रर्र्र्र से सारे रिजल्ट सामने…हाउ बोरिंग….अब किसी से अपना रिजल्ट छुपा भी नहीं सकते…झूठ भी नहीं बोल सकते…….
*ये सारी सुविधाएं और रोमांच तो अखबार के जमाने में ही हुआ करता था भाई…..*

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