रावण से बात

ई. शिव शंकर गोयल

रामलीलाओं का उत्सव निकट जानकर, पिछले दिनों, उसके एक पात्र के रूप में हिस्सा लेने हेतु एक रोज मैं भी एक रामलीला कमेटी के दफ्तर जा पहुंचा. वहां लम्बी “क्यू” लगी हुई थी. हर कोई लाईन तोडकर घुसने की फिराक में था. जैसे-तैसे मैं भी लाईन में लग गया. वहां लाईन में खडे एक उम्मीदवार पात्र ने मुझसे पूछा

…..कहां से आए हो ?
….वैसे तो मैं पास में ही रहता था लेकिन अपना महत्व बढाने के लिए मैंने जुमलेबाजी से काम लेते हुए कहा कि मैं बहुत दूर से आया हूं. लम्बा सफर था. प्लेन लेट था. सोया तक नही हूं.
….आधार, पेनकार्ड या वोटर आईडी लाए हो ?
मैंने बुदबुदाते हुए, कहा, इन सब की रामलीला में क्या जरूरत है ?
वह बोले, आजकल हर कोई इनके बाबत पूछता है. थोडे दिनों में इस मृत्युलोक-स्वर्गलोक में आने-जाने वालों से भी आधार कार्ड अथवा पेन कार्ड मांगा जायेगा. समझें आप ? मैंने गरदन हिलाई कि समझ गया. खैर,
जैसे तैसे कमेटी के ऑफिस के अंदर पहुंचने पर कमेटीवालों ने पहले मुझें राम-दल का दावा करने वालें बाबाओं की तरफ भेजा. इन बाबाओं में से अधिकांश ने अपने 2 नाम के आगे पीछे राम का नाम लगाया हुआ था. वहां जाकर पता लगा कि इनको खुद को किसी भगवान पर विश्वास नही है लेकिन यह जैड सिक्यूरिटी में बैठकर भक्तों को कहते है कि जिन्दगी क्षणभंगुर है, जीवन-मरण ऊपरवाले के हाथ है आदि. इन बाबाओं के बडें 2 डेरें है, कई 2 आश्रम है. दौलत के ढेर पर बैठकर यह बाबा अपने श्रोताओं को कहते रहते है.
“बहुत पसारा मत करो, कर थोडे की आस. बहु’ पसारा जिन किए, वह भी भये निराश”.
और मजे की बात है कि यह लोग अपनी सम्पति का उत्तराधिकारी अपने बेटें, बहू या रिश्तेदार को ही बनाते है.
इनके भक्तों को लगता है कि सारे मसलें बाबाजी हल करते है लेकिन जब बाबाजी किसी मसलें में फंसते है तो अपने लिए बडे 2 वकीलों की मदद लेते है. भक्त जब बीमार होते है तो ठीक होने के लिए बाबाजी उनको भभूत आदि देते है और जब बाबाजी खुद बीमार होते है तो देश के महंगें 2 अस्पतालों में ईलाज करवाते है. इन बाबाओं के चमत्कारों के सैकडों किस्सें है लेकिन जब यह किसी अपराध में जेल जाते है तो इनके चमत्कार किसी काम नही आते. यह देख सुनकर मैं असमंजस में पड गया. जब मैंने रामलीला में राम-दल को “बाहर से समर्थन” की बात की तो आयोजकों द्वारा वह नकार दी गई.
फिर मैं रामलीला की रावण की सेना के खेमें में गया. हालांकि मुझें पहले ही बता दिया गया था कि रावण आपको अपनी सेना में लेगा नही और दरबारियों की सिफारिश पर ले भी लिया तो मेघनाथ और कुंभकर्ण आपको देखकर कतई हां नही करेंगे. आखिर वही हुआ.
कुंभकर्ण ने मुझें घूरते हुए कहा, मैं साल में छ: महीने सोता हूं. मेरी देखा देखी अधिकांश सरकारी महकमें, राज्यों के मुख्यमंत्री सालों सोते रहते है और जब चुनाव नजदीक देखते है तो जागते है, रेवडियां बांटते है. क्या तुम इतना सो सकते हो ? मेरें खर्राटें से हाथी-घोडें उड जाते है और तुम्हारे बायोडेटा से पता पडा कि तुम खर्राटों से पडौसियों तक की नींद तक नही उडा सकते. ऐसें पात्रों को हमारी सेना में लेने से क्या फायदा ? उधर मेघनाथ का अपना तर्क था. उसने कहा कि मैंने इन्द्र तक को जीत लिया. मेरे पापा ने पिछले वर्षों में विश्व भ्रमण करके सबका दिल जीत लिया है. अब उनसे सब देवता-दानव कांपते है. क्या आपमें हमारी सेना में होने की काबलियत है ?
मैं हतोत्साहित होने लगा. परन्तु मैंने पहले ही सुन रखा था कि मेरठ के आस-पास रावण की ससुराल है. वहां मैंने पहले से ही मंदोदरी के पीहरवालों से पहचान निकाल ली थी अत : उनकी सिफारिश लेकर आया था. वही रावण को दिखाई. उसे यह भी कहा कि वह वो दिन याद करे जब रामायण सीरियल के पात्र, राम (अरूण गोविल)कांग्रेस में जा मिले थे और आप(अर्थात रावण) व सीता(दीपीका चिकलिया) बीजेपी में चले गए थे. यहां तक कि आखिर में हनुमान पात्र (दारा सिंह)भी बीजेपी में होगए थे. तब लक्षमण बहुत व्यथित हुए थे. उनका कहना था कि मैंने फिजूल ही कष्ट देखा और चौदह वर्ष उर्मिला का विरह सहा, वह अलग से.
ससुरालवालों की सिफारिश का रावण पर काफी असर हुआ. उसने मुझें बैठाकर चाय मंगवाई और चाय पर चर्चा करते हुए कहा कि मुझें बाल्मिकीजी और गोस्वामीजी ने व्यर्थ ही बदनाम किया हुआ है. आज भी जो-जो बाबा पकडे गए है सबके नाम के साथ “राम” नाम लगा हुआ है, किसी के भी आगे-पीछे रावण शब्द नही है. मैंने अपहरण के बावजूद सीता के हाथ तक नही लगाया जबकि उपरोक्त बाबोंओं में कई तो सैक्स-अपराधों में “अंदर” बंद है.
उसने यह भी कहा कि मेरी सहनशीलता देखिए कि लोग मुझें हर साल जलाते है फिर भी मैं बुरा नही मानता. लोग एक सिर से ही परेशान हो जाते है मेरे तो दस सिर है. किसी को जुखाम, किसी को सिरदर्द तो किसी को मायग्रेन होता रहता है. आजकल कई डाक्टर तो पुरानी दुश्मनी निकालने के लिए per person की बजाय per head, charge करने लगे है. इससे मुझें दस गुणा ज्यादा पैसा देना पडता हैं, जो मेरे साथ ज्यादती हैं.
इतना सुनकर मैंने रावण से पूछा कि क्या मैं रामलीला में उनके दल में शामिल हो सकता हूं ? तो उसने अपने अंदर की बात बताते हुए कहा कि यह कलियुग है. मेरी मेघनाथ के आगे कुछ चलती नही है और उसकी हिम्मत नही कि वह अपनी पत्नि सुलोचना के आगे कुछ बोल सके.
इतना सुनकर मैं निराश होकर लौट आया कि अगले वर्ष पूरी तैयारी करके ही रामलीला में भाग लेने आऊंगा.

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