इंदिरा गांधीनेहरूजी ने अपनी किताब पिता के बेटी के नाम पत्रों में इंदिरा को दुनिया में बदलते हुए हालात की जानकारी दी उन्होंने इंदिरा को लिखा सभ्यता की सबसे बड़ी पहचान है मिलकर काम करना | दुनियां ऐसी हो जहां सभी अमन और चेन से रह सके | नेहरूजी के पत्रों ने ही इंदिरा को आयरन लेडी बनाया और समझाया कि आयरन लेडी वो होती है जो गम्भीर मोकों पर बड़े फेसले लेने में हिचके नहीं और नहीं पीछे हटे | इंदिराजी ने कई अवसरों पर अपने फेसलों से यह प्रमाणित भी कर दिया था | निसंदेह इंदिराजी ने अपनी प्रतिभा और राजनीतिक दृढ़ता मजबूत इरादों आत्म विश्वास स्पष्ट दूरदर्शिता और सज्जनता की प्रतिमूर्ती आयरन लेडी इंदिराजी ने अपना नाम और कीर्ति को बीसवी शदी के महान राजनीतिज्ञयों में हमेशा के लिये लिये स्वर्ण अक्षरों से अंकित कर दिया । 19 जुलाई, 1969 को इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने एक अध्यादेश पारित किया। यह अध्यादेश देश के 14 निजी बैंकों के राष्ट्रीयकरण के लिए था। इन 14 बैंकों में देश का करीब 70 फीसदी जमा था। अध्यादेश पारित होने के बाद इन बैंकों का मालिकाना हक सरकार के पास चला गया। ऐसा आर्थिक समानता को बढ़ावा देने के लिए किया गया। इस अध्यादेश को बैंकिंग कंपनी (उपक्रमों का अधिग्रहण एवं स्थानांतरण दिया गया ) । उसके बाद इसी नाम से एक कानून आया। बेंकों के राष्ट्रीय्क्र्ण से एक तरफ हजारों लोगों को लाभ मिला और वो साहूकारों के चन्कुल से मुक्त होने लगे | इए कदम के कारण उनकी लोकप्रियता और बढी |1984 में भारतीय सेना ने ऑपरेशन मेघदूत को शुरू किया जिससे साबित हो गया की आयरन लेडी कठोर निर्अंणय ले सकती है | मेघ दूत ओपरेशन की वजह से नोसेना ने पाकिस्तान की कब्र खोद दी | दरअसल पाकिस्तान ने 17 अप्रैल, 1984 को सियाचिन पर कब्जा करने की योजना बनाई थी जिसकी जानकारी भारत को लग गई। भारत ने उससे पहले सियाचिन पर कब्जा करने की योजना बनाई और इस ऑपरेशन का कोड नाम ‘ऑपरेशन मेघदूत’ था।18 मई, 1974 भारतीय इतिहास के अंदर सदेव याद किया जाएगा क्योंकि इसी दिन भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण करके दुनिया को हैरत में डाल दिया था। इस ऑपरेशन का नाम स्माइलिंग बुद्धा था। आयरन लेडी ने भारत को दुनिया का छठवा परमाणु बम्ब सम्पन राष्ट्र बना क्र संसार में भारत की सैन्य क्षमता का सफलतापूर्दिवक पूर्यावक प्रदर्शन किया | परमाणु बम्ब का परीक्षण करने की अद्भुत क्षमता सिर्फ आयरन लेडी में ही थी |, स्वतन्त्रता के बाद के बाद भारत में अपनी रियासतों का विलय करने वाले राज परिवारों को एक निश्चित रकम देने की शुरुआत की गई थी। इस राशि को राज भत्ता या प्रिवी पर्स कहा जाता था। इंदिरा गांधी ने साल 1971 में संविधान में संशोधन करके राज भत्ते की इस प्रथा को खत्म किया। उन्होंने इसे सरकारी धन की बर्बादी बताया था प्रिवी पर्स को खत्म करने से उनकी लोकप्रयिता में चार चाँद लगा दिए |हरित क्रांति, सफेद क्रांति भूमी सुधार, सिक्किम का भारत में विलीनीकरण, पाकिस्तान का विघटन और शिमला समझोते जैसे कदमों से इंदिराजी ने अकल्पनीय दृढ़ता दिखा ई थी। इंदिराजी ने भूमि हदबंदी योजना को पूरी शक्ति के साथ लागू किया गया। इससे ग़रीब किसानों को अच्छा लाभ मिला। इंदिरा गाँधी ने ‘गरीबी हटाओ’ के नारे के साथ समाजवादी सिद्धांतों के अनुरूप चुनावी घोषणा पत्र तैयार कराया ‘ग़रीबी हटाओ’ का नारा लोकप्रिय साबित हुआ। उनके पूर्ववर्ती लोकहित कार्यों की पृष्ठभूमि ने भी चमत्कारी भूमिका निभाई। इन क़दमों के कारण जनता के मध्य इंदिरा गांधी की एक सुधारवादी प्रधानमंत्री की छवि कायम हुई और उनकी लोकप्रियता का ग्राफ शिखर पर पहुंच गया | युद्ध हो या विपक्ष की नीतियाँ हों अथवा, कूटनीति का अंतर्राष्ट्रीय मैदान हो इंदिरा गाँधी ने स्वयं को सफल साबित किया था। इंदिराजी थीं तो नेहरूजी की बेटी उन्होंने अपने पिता की सज्जनता एवं दूरदर्शिता के साथ साथ लोह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल के गुण भी आत्मसात कर लिये थे | आयरन लेडी इंदिरा मानती थी की खादी पहनना सम्मान का प्रतीक हैं। खादी पहनने पर मुझे गर्व महसूस होता हैं। इंदिरा जी कहा करती थी की शहीद होना खत्म होना नहीं है, यह केवल एक शुरुआत है।जन जन की नायिका ने अपने जीवन में अनेकों उपलब्धियां प्राप्त की। उन्हें 1972 में भारत रत्न पुरस्कार, 1972 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए मैक्सिको अकादमी पुरस्कार, 1973 में एफएओ का दूसरा वार्षिक पदक और 1976 में नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा साहित्य वाचस्पति (हिन्दी) पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1953 में श्रीमती गांधी को अमेरिका ने मदर पुरस्कार, कूटनीति में उत्कृष्ट कार्य के लिए इटली ने इसाबेला डी ‘एस्टे पुरस्कार और येल विश्वविद्यालय ने होलैंड मेमोरियल पुरस्कार से सम्मानित किया। फ्रांस जनमत संस्थान के सर्वेक्षण के अनुसार इंदिरा जी वह 1967 और 1968 में फ्रांस की सबसे लोकप्रिय महिला थी।
तत्कालीन जनता पार्टी की सरकार ने प्रतिशोध की वजह से उन्हें जेल भीजवा दिया वो संगर्ष करती रही और अपने जुझारूपन से जन हित के काम करते हुए अपना संघर्ष चालु रक्खा बेलची की यात्रा के बाद जनता का प्यार और सहानुभूति उनको वापस मिलने लगी | संघर्षशील इंदिरा जी अपने आपातकाल लगाये जाने को ही गलत मानते हुए सार्वजनिक सभाओं में माफी मागी और जनता ने उन्हें वापस अपना लाड प्यार दिया जिसके फलस्वरूप वो 1980 में पुनः पूर्ण बहुमत के साथ प्रधानमंत्री बनी | 1980 में उनके ही कार्यकाल में भारत ने पहली बार अन्तरिक्ष युग में प्रवेश करवा कर भारत को दुनिया के उन्नत राष्ट्रों शामिल में करवा दिया | 1984 में ख़ुफ़िया एजेंसियों ने आशंका प्रकट की थी कि इंदिरा गांधी की जान लेवा हमला हो सकता है इसीलिए उनके सुरक्षा गार्डो में से सिखों को हटा लेना चाहिए लेकिन जब यह फ़ाइल इंदिरा के पास पहुंची तो उन्होंने उस पर पर लिखा, Are We Not Secularl यानि क्या धर्म निरक्षेप नहीं है ? वो सभी धर्मावलम्बियों को समान नजर से देखती थी और उनका सम्मान करती थी | उन्होंने आदेश दिया कि कोई भी सिख उनके सुरक्षा गार्ड से नहीं हटाये जायें, जिससे मालुम पड़ता है कि उनके लिये भारत का संविधान सर्वोच्च था| |इंदिरा गाँधी लगातार तीन बार यानि 1966 से 1977 और फिर चौथी बार 1980 से 31 अक्टूबर 84 तक म्रत्यु पर्यन्त भारत की लोकप्रिय प्रधानमंत्री रही | उनकी आतंकियों द्वारा निर्मम हत्या पर लोगों ने सही ही कहा था “आसमान में जब तक सूरज चांद रहेगा,इंदिरा तेरा नाम रहेगा” | गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगौर ने इंदिराजी को एक नया नाम “प्रियदर्शिनी” दिया था, बापू भी उन्हें इसी नाम से पुकारते थे। इंदिरा की सक्रियता 5 साल की उम्र में ही प्रारम्भ हो गई थी जब उन्होंने आजादी के संघर्ष के वक्त स्वदेशी आंदोलन से प्रभावित होकर इंग्लैंड से मंगाई गई अपनी सबसे पसंदीदा एवं महंगी गुड़िया जला दी थी। उन्होंने 25 वर्ष की आयु में परिवार की ईच्छा के विरुद्ध निडर बनते हुये फिरोज गांधी से शादी कर ली।इंदिरा के पिता नेहरूजी का अधिकांश समय जेल और स्वाधीनता के आंदोलनों में ही बीतता था | अपने परिवार के संस्कारों से प्रभावित होकर बचपन में ही इंदिरा ने क्रांतिकारियों और आंदोलनकारियों की सहायता करने के उद्देश्य से अपने हम उम्र बच्चों और मित्रों के सहयोग से 12 साल के उम्र में ही ‘वानर सेना’ का गठन किया | वानर सेना स्वतंत्रता आंदोलन के लिए झंडा बनाने का काम करती थी। भारत छोड़ो आन्दोलन के समय सितम्बर 1942 में 22 वर्षीय इंदिरा जी को गिरफ्तार कर लिया गया | 1965 के भारत पाकिस्तान के युद्ध के समय इन्दिराजी सेन्य अधिकारियों की चेतावनी के बावजूद घायलों की देखभाल करने एवं सैनिकों के उत्साहवर्धन हेतु युद्ध क्षेत्र में पहुंच गई |1971 के नवम्बर माह तक पूर्वी पाकिस्तान केएक करोड़ शरणार्थी भारत में प्रविष्ट हो चुके थे। इन शरणार्थियों की उदर पूर्ति करना तब भारत के लिए एक समस्या बन गई थी। ऐसी स्थिति में भारत ने पाकिस्तान की पूर्वी पाकिस्तान केअन्दर बर्बरता के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवता के हित में आवाज़ बुलंद की, इसे पाकिस्तान ने अपने देश का आंतरिक मामला बताते हुए पूर्वी पाकिस्तान में घिनौनी सैनिक कार्रवाई जारी रखी। छह माह तक वहाँ पाकिस्तान का दमन चक्र चला। पाकिस्तान ने 3 दिसम्बर,1971 को भारत के वायु सेना के ठिकानों पर हमला करते हुए उसे युद्ध का न्योता दे दिया। पश्चिमी भारत के सैनिक अड्डों पर किया गया हमला पाकिस्तान की ऐतिहासिक प राजय का कारण बना। इंदिरा जी ने चतुरतापूर्वक तीनों सेनाध्यक्षों के साथ मिलकर यह योजना बनाई कि उन्हें दो तरफ से आक्रमण करना है। एक आक्रमण पश्चिमी पाकिस्तान पर होगा और दूसरा आक्रमण तब किया जाएगा जब पूर्वी पाकिस्तान की मुक्तिवाहिनी सेनाओं को भी साथ मिला लिया जाएगा। जनरल जे.एस अरोड़ा के नेतृत्व में भारतीय थल सेना मुक्तिवाहिनी की मदद के लिए मात्र ग्यारह दिनों में ढाका तक पहुँच गई। पाकिस्तान की छावनी को चारों ओर से घेर लिया गया। तब पाकिस्तान को लगा कि उसका मित्र अमेरिका उसकी मदद करेगा। उसने अमेरिका से मदद की गुहार लगाई। अमेरिका ने भारत के सामने अपनी दादागिरी दिखाते हुए अपना सातवां बेड़ा बंगाल की खाड़ी की ओर रवाना कर दिया। तब इंदिरा गाँधी ने फ़ील्ड मार्शल मानिकशाह से परामर्श करके भारतीय सेना को अपना काम शीघ्रता से निपटाने का आदेश दिया। 13 दिसम्बर को भारत की सेनाओं ने ढाका को सभी तरफ से घेर लिया। 16 दिसम्बर को जनरल नियाजी ने 93 हज़ार पाक सैनिकों के साथ हथियार डाल दिए। उन सभी को बंदी बनाकर भारत ले आया गया। शीघ्र ही पूर्वी पाकिस्तान के रूप में नये देश बांग्लादेश का जन्म हुआ और पाकिस्तान पराजित होने के साथ ही साथ दो भागों में विभाजित भी हो गया। भारत ने बांग्लादेश को अपनी ओर से सर्वप्रथम मान्यता भी प्रदान कर दी। भारत ने युद्ध विराम घोषित कर दिया क्योंकि उसका उद्देश्य पूर्ण हो चुका था। इसके बाद कई अन्य राष्ट्रों ने भी बांग्लादेश को एक नए राष्ट्र के रूप में मान्यता दे दी। युद्ध में शर्मनाक हार झेलने के बाद यहिया ख़ान के स्थान पर ज़ुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के नए राष्ट्रपति बनाए गए। उन्होंने भारत के समक्ष शांति वार्ता का प्रस्ताव रखा जिसे विश्व शांति के लिये इंदिरा जी ने स्वीकार कर लिया।