
राजनीति के रंग निराले हैं। राज करना है तो राज करने की कला के साथ साथ और बहुत सी कलाओं का ज्ञाता भी होना लाजिमी हो जाता है। यूं कला का जानकार होना ही अपने आप में सम्मान का सूचक है। कला कोई भी हो, सम्मान ही दिलाती है। सम्मान देने की कला भी होती है। खास तौर से राजनीति में। राज करने की कला के जानकार सम्मान देने की कला को धीर गंभीर होकर सीखते हैं। दरसअल राज कला में प्रशिक्षण काल में ही सम्मान कला का भी प्रशिक्षण खुदबखुद मिलना शुरू हो जाता है। राज कला का प्रशिक्षण लेने वाला, यानी कार्यकर्ता जब अपने से सीनियर को सम्मान पाते देखता है तो रोमांचित हो उठता है। सीनियर को राज से भी सम्मान मिलता है। जनता से भी। जनता के विभिन्न वर्ग से सम्मानित होने वाले सीनियर के साथ रहने वाले जूनियर भी यदा कदा सम्मानित किए जाते हैं। उसकी कमीज मेरी कमीज से ज्यादा सफेद क्यों जैसे भाव इसी काल से पनपने लगते हैं। प्रशिक्षणार्थी यह जानने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाने लगता है कि सम्मान कैसे पाया जाए। प्रशिक्षणार्थी होशियार होता है तो उसे यह जानने में देर नहीं लगती कि सम्मान देने से सम्मान मिल रहा है। सीनियर लोग किसे सम्मान दे रहे हैं यह भी गौरतलब हो जाता है। एक ही क्षेत्र के एक ही समान काम करने वाले दो लोगों में से किसी एक को सम्मान देकर सीनियर वाहवाही लूट लेते हैं। दो में से जिसे सम्मान नहीं मिल पाता वह भी दूसरे को दिए जाने वाले सम्मान के विरोध में कुछ बोल नहीं पाता। प्रशिक्षु को जब पता चलता है सम्मान किसकी सिफारिश पर दिया गया तो वह चमत्कत हो उठता है। सिफारिश करने वाला विपक्षी नेता भी हो सकता है, बड़ा व्यापारी या उद्योगपति भी। किसी सामाजिक संस्था का अध्यक्ष भी या किसी अखबार का संपादक भी। राज के काज में पहुंच रखने वाला ऐसी शख्सियतों की सिफारिश को दरकिनार नहीं कर सकता। उनकी बात को मानता है और फिर एक को सम्मानित करने की एवज में उसे बारंबार सम्मानित होने का अवसर प्राप्त होता रहता है। समर्थन का लाभ अलग से हासिल होता है। ऐसी ही गूंढ़ बातें जानते हुए प्रशिक्षु खुद को सम्मानित करवाने के लिए और अधिक प्रयास करता है और नतीजे में इतना नम्र, धैर्यवान बन जाता है कि अपने पर कीचड़ उछालने वालों को भी सम्मान देना नहीं भूलता। यह सर्वमान्य है कि जब किसी चीज को पाने का प्रयास किया जाता है तो वह चीज प्रयास करने वाले को अवश्य मिलती है। इसलिए प्रयास करने वाला सहज ही यह जान जाता है कि सम्मान पाने से ज्यादा सम्मान देना जरूरी है। सीनियर नेता अपने पर आरोप लगाने वालों को भी सम्मान देते हैं। लेने वाले से देने वाला बड़ा माना जाता है। हर क्षेत्र में। राज की कला में राज की बात ये कि इस गूढ़ विषय को खेल की भावना से सीखा जाता है। खेला नहीं जाता है। राजनीति खेल नहीं है। सम्मान पाना या सम्मान देना भी खेल नहीं है। इसीलिए गंभीरता से सम्मान दिया और लिया जाता है। ऐसा होना भी चाहिए। खास तौर पर राज कला के उन जानकारों को इस बात का अहसास तो होना ही चाहिए जो सम्मान लेने का तो दम भरते हैं लेकिन देने के नाम पर बिदक जाते हैं। नतीजतन वोट के नाम पर वोटर भी ऐसी शख्सियतों से बिदकने लगता है।
-मोहन थानवी