मेरे लाडले को मुझसे सख्त शिकायत है। उसका कहना है कि मेरे पिताश्री की वजह से उसका स्टैंडर्ड डाउन हुआ है। सांयकालीन क्लब की मित्रमंडली तथा ‘जिमÓ में उसकी हंसाई होती है। उसकी यह शिकायत इस वजह से नहीं है कि वह अपने माउथ में चांदी का चम्मच ले कर पैदा नहीं हुआ या कि मैंने उसे किसी इन्टरनेशनल कान्वेंट स्कूल में नहीं पढ़ाया, जहां उसे जैक एंड जिल, वैंट अपटू हिल तथा बा बा ब्लैक शीप, हैव यू ऐनी वूल जैसी कविताएं रटाई जातीं। उसका गिला तो कुछ और ही है। उसका फंडा यह है कि हालांकि मेरे पिताश्री देश की आजादी के पूर्व की पैदाइश हैं, फिर भी उनका नाम उन स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों की लिस्ट में नहीं है, जो सन 1947 के बाद जन्म लेकर भी सैनानियों की पेंशन धड़ल्ले से उठा रहे हैं। इसको लेकर उसे बडी ग्लानि होती है।
इन्हीं तथाकथित सैनानियों में से साठ-सत्तर की उम्र के कई योद्धा तो भगतसिंह के साथ जेल में रहने की कसमें खाते फिर रहे हैं और जहां तहां उस समय के किस्से कहानियां लोगों को सुनाते रहते हैं, गोया हूबहू वह घटना उनके सामने ही हुई हो, जबकि हकीकत में भगतसिंह की शहादत को ही 80 वर्ष से ऊपर हो चुके हैं। इतना ही नही मेरे पुत्र का उलाहना यह भी है कि उसके दोस्तों में उसकी नाक तब नीची हो जाती है, जब उनको पता लगता है कि आज तक मेरे घर का टेलीफोन कभी टेप नहीं हुआ। उसका कहना है कि इस बात पर उसकी मम्मी को भी किटी पार्टी में कई बार नीचा देखना पड़ा है। उसे कितने बहाने बनाने पड़े, यह तो वही जानती है। जब तक टेलीफोन टेप न हो, सभा सोसायटी में रुतबा नही बढ़ता। लड़के का कहना है कि काश! कभी हमारे यहां सीबीआई या इन्कमटैक्स का छापा भी पड़ा होता तो अगले रोज देश के प्रमुख अखबारों में सुर्खियों में पिताजी का नाम होता और उनकी प्रसिद्धि में चार चांद लग जाते और मुझे, यानि मेरे लड़के को लोग सभा-सोसाइटी, कैफे आदि में कनखियों से देखते हुए कहते कि यह उन्ही का लड़का है, जिनके यहां सीबीआई का छापा पड़ा था। परन्तु हाय! मेरी ऐसी किस्मत कहां? किसी स्टिंग ऑपरेशन अथवा घोटाले में भी पिताजी का नाम नही है। मेरा वत्स अपने मित्रों से अफसोस जाहिर करते हुए कहता फिरता हैं कि मैं जाने किस मनहूस घड़ी में पैदा हुआ हूं, घुड़दौड़ वाले, बिग बिजनेसमेन, नेताओं इत्यादि कइयों के स्विस बैंकों में खाते खुले हुए हैं या वह कोई न कोई घोटाला करके तिहाड़ जेल जाने का जुगााड़ बैठा लेते हैं, लेकिन एक मेरे डैड हैं, जो मुझे शर्मिन्दा किए दे रहे हैं। न तो स्विस बैंक में उनका खाता, न तिहाड की रिहाइश और न ही दाऊद भाई से कोई लिंक। अरे! बडे राजन से नहीं तो कम से कम छोटे राजन से तो कोई रिश्ता-नाता होता ताकि उनका भी रुआब पड़ता। मेरा भी सुपुत्र आज तक ये सभी गुनगुन परोक्ष में ही करता रहा हैं, लेकिन इस बार वह घर में अपनी मॉम के सामने फट पड़ा। उसके हाथ में ताजा अखबार था, जिसमें शहर में ऑपरेशन पिंक के तहत अतिक्रमण के विषय में समाचार छपे थे और अतिक्रमण करने वाले शहर के नामी-गिरामी लोगों के नाम थे। पुत्र का गिला था कि मैं आज तक सब ज्यादतियां सह गया न तो पापा का नाम मुंबई की आदर्श सोसाइटी घोटाले में आया, न कॉमनवैल्थ गड़बडिय़ों में, न ही टूजी स्पैक्ट्रम स्कैंडल में उनका नाम, न उड़ीसा में नेताओं द्वारा प्लाट हथियाने में उनका कोई हाथ और न ही इन्दौर भोपाल में हाउसिंग बोर्ड के फ्लैट हथियाने में उनका हाथ है। यहां तक कि उन्होंने इतनी हिम्मत भी नहीं दिखाई कि कोई सरकारी अथवा किसी धार्मिक ट्रस्ट की भूमि का ही अतिक्रमण कर लेते। अब मैं अपने मित्रों को कैसे मुंह दिखाऊंगा? कैसे उनके बीच उठ-बैठ करूंगा? उसका यह भी कहना था कि पिताश्री ने कुछ तो सोचा होता। घर में विवाह होने है। समाज में रूतबा बनाना है। लड़के का विचार है कि डैड अब भी अपनी आदतों में सुधार कर लें तो रही सही उनकी और हमारी जिन्दगी सुधर जायेगी। चुप-चाप किसी इस या उस राजनीतिक दल में घुसपैठ करके या तो भूमाफिया से जुड़ जाएं या स्मगलिंग का धन्धा पकड़ लें या कोई घोटाला करके तिहाड़ हो आएं, और कुछ नहीं तो जुगाड़ बैठा कर सरकारी खर्च खाते पर अपना बुत ही खड़ा करवा लें, तब जाकर कोई बात बनेगी, वरना सब मुझे ही कहेंगे कि तू ने हीरा जनम गंवायो रे, मानस, बिन तिहाड़ जायके।
-ई. शिव शंकर गोयल
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