कर्नाटक में मिली जीत से कांग्रेस खेमे में खुशी से ज्यादा चिंता का
माहौल है और उसकी ठोस वजह भीहै। जिस तरह कर्नाटक की जनता ने भ्रष्टाचार
के आरोपों से घिरी भाजपा सरकार को सत्ता से हटाया है वो आकंठ भ्रष्टाचार
में डूबी कांग्रेसनीत यूपीए और कांग्रेस पार्टी के माथे पर परेशानी की
लकीरेंखींचने के लिए काफी है। सत्ता का उलट फेर कोई बड़ी बात नहीं है,
सत्ता तो आती-जाती रहती है लेकिन सत्ता जाने की असली वजह जानना खास बात
जरूर है। और कर्नाटक का असल संदेश यह है कि देश की जनता अब भ्रष्टाचार से
ऊब चुकी है और ईवीएम का बटन दबाते समय वो इस तथ्य को दिमाग में रखती
है।कांग्रेस के चिंता की असली वजह भी यही है कि जिस तरह कर्नाटक की जनता
ने भ्रष्ट भाजपा सरकार को बड़ी बेरहमी से सत्ता से बाहर धकेला है कहीं
उसी तर्ज पर आगामी लोकसभा चुनाव में देश की जनता उसेकहीं दिल्ली की गद्दी
से न उतार फेंके। रेल मंत्री पवन कुमार बंसल और कानून मंत्री अश्विनी
कुमारको कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखाकर कांग्रेस ने यह साफ और सख्त
संदेश देश की जनता को देने की कोशिश तो की है कि भ्रष्टाचार किसी भी कीमत
पर बर्दाशत नहीं होगा लेकिन पिछले नौ साल के कार्यकालमें कांग्रेस के
दामन पर भ्रष्टाचार के जो गहरे दाग लगे हैं वो दो मंत्रियों के इस्तीफे
और कड़े तेवर दिखाने भर से धुलने वाले नहीं है। कांग्रेस का थिंक टैंक इस
स्थिति से उबरने के उपायों पर दिन रात चिंतन मंथन कर रहा है लेकिन गले तक
भ्रष्टाचार के कीचड़ में डूबी कांग्रेस एक पैर बाहर निकालती है तो दूसरा
कीचड़ में फंस जाता है।यूपीए-1 और यूपीए-2 के नौ साल के कार्यकाल में
एक-एक करके भ्रष्टाचार के मामलों का जिस तरह खुलासा हुआ है उसने यूपीए के
सबसे बड़े घटक कांग्रेस की छवि को बुरी तरह प्रभावित किया है। कॉमनवेल्थ
गेम्स घोटाला, २ जी स्पेक्ट्रम घोटाला, हेलीकाप्टर घोटाला, कोयला आंवटन
घोटाला, परमाणु ईंधन थोरियम घोटाला, आदर्श सोसायटी घोटाला, चावल निर्यात
घोटाला, एलआईसी हाउसिंग घोटाला, सेना के लिए मिलट्री ट्रकों की खरीद
घोटाला, मानव रहित विमान खरीद घोटाला, गोदावरी बेसिन में तेल की खोजमें
घोटाला, गोरश्कोव जहाज मूल्य निर्धारण में घोटाला, इंदिरा गांधी
अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा निर्माण घोटाला, मेगा पावर प्रोजेक्ट घोटाला,
एयर इण्डिया सिक्योरिटी सिस्टम घोटाला, आईपीओ डीमैट घोटाला, रूसी
पनडुब्बी घोटाला, पंजाब सिटी सेंटर परियोजना घोटाला, ताज कारिडोर घोटाला,
हसन अली करघोटाला, सत्यम घोटाला, सेना राशन चोरी घोटाला, स्टेट बैंक ऑफ
सौराष्ट्र घोटाला, झारखण्ड चिकित्सा उपकरण घोटाला, उड़ीसा खदान घोटाला,
मधुकोड़ा खनन घोटाला, आईपीएल क्रिकेट घोटाला अर्थात यूपीए के शासन में
घोटालों का वटवृक्ष खूब फला-फूला है।2009 के आम चुनाव में जनता ने एनडीए
के बजाय यूपीए पर भरोसा इस उम्मीद से किया था कि अब शायद आम आदमी का कुछ
भला होगा; पिछले आम चुनाव में एनडीए का कुनबा भी बिखरा हुआ था और वो जनता
केसमक्ष स्वयं को सशक्त विकल्प के तौर पर पेश करने में कामयाब नहीं हो
पाया था। लेकिन अब हालात बदले हुये हैं। विपक्ष सरकार पर हावी है और
सरकार के लिए कदम-कदम पर मुसीबतें खड़ी कर रहा है। सरकार और उसके सहयोगी
दल भी विपक्ष को बैठे-बिठाए नित नये मुद्दे थमा रहे हैं। यूपीए-2 में जिस
तरह भ्रष्टाचार के मामलों में बढ़ोतरी हुई है और घोटालों से पर्दाफाश हुआ
है उसने सरकार की नींद उड़ा रखी है। वहीं सरकार की कारगुजारियों को उजागर
करने और उससे जुड़े मामलों की जांच करनेवाली एजेंसियों की कार्यप्रणाली
पर सरकार दखलअंदाजी और टिप्पणियां भी उसे संदेह के कटघरे में खड़ा करती
हैं।देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी को सर्वोच्च अदालत ने पिंजरे में बंद
तोते की संज्ञा दी है। केट नेइंटेलिजेंस ब्यूरो को चिकन की उपाधि प्रदान
की है। ये हालात खुद ब खुद पूरी कहानी बयां करते हैं कि आखिरकर गड़बड़ी
कहां है। पिछले पांच सालों में संवैधानिक संस्थाओं से रार और दूरी बढ़ी
है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सरकार का संविधान और उसके द्वारा स्थापित
संस्थाओं में विश्वास ही नहीं बचा है। कैग पर सरकार लगातार आक्रमक मुद्रा
अपनाये हुये है। हाल ही में कैग ने यूपीए की सबसे महत्वाकांक्षी योजना
मनरेगा में व्याप्त भ्रष्टाचार का ख्ुालासा किया है लेकिन सरकार अपने
रवैये पर कायम है। समस्या यह है कि सरकार ये मानने को ही तैयार नहीं है
कि कोई गड़बड़ी हुई है। मीडिया में जब कोई मुद्दा जोर-शोर से उछलता है तो
सरकार की नींद ख्ुालती है और वो फौरी कार्रवाई से ज्यादा कुछ नहीं करती।
रेल घूस कांड और कोयला घोटाले में कानून मंत्री द्वारा सीबीआई की रिपोर्ट
बदलवाने के मामले में सरकार का रवैया ताजा उदाहरण है। असल में भ्रष्टाचार
को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है और उसमें नीचे से ऊपर तक सब बराबर के
भागीदार हैं और इसलिए भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लग पा रही है ओर आए दिन
भ्रष्टाचार का आंकड़ा नये कीर्तिमान स्थापित कर रहा है।देश में बढ़ते
भ्रष्टाचार को काबू में लाने के लिए समाजसेवी अन्ना हजारे ने जन लोकपाल
कानून के लिये देशव्यापी आंदोलन छेड़ा था। विदेशी बैंकों में बंद करोड़ों
कालाधन वापस लाने की योगगुरू रामदेव की मुहिम का हश्र सामने है। सरकार ने
आम आदमी और देशहित से जुड़े इन मुद्दों पर जो बेशर्मआचरण प्रस्तुत किया
वो इतिहास में काले अक्षरों में लिखा जाएगा। जन और राष्ट्रहित से जुड़े
मुद्दों पर सरकार का नकारात्मक रवैया और आचरण उसकी वास्तविक नीयत और नीति
को दर्शाता है। सरकार के आचरण से यह संदेश गया कि सरकार भ्रष्टाचार और
भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों से सख्ती से पेश आनानहीं चाहती। अपने पक्ष
में सरकार चाहे लाख दलीलें दे और तर्क पेश करे लेकिन सरकार में
भ्रष्टाचारसे लडने की इच्छाशक्ति नहीं है यह साफ हो चुका है। वहीं तस्वीर
का दूसरा रूख यह भी है खुद बड़े-बड़े राजनेता भ्रष्टाचार के संगीन आरोपों
से घिरे हैं।पिछले नौ साल के कार्यकाल में यूपीए ने जो काला-सफेद किया
जनता ने उसे खामोशी से देखा। पिछले साल उत्तर प्रदेश की भ्रष्ट बसपा
सरकार को सत्ता से बाहर करने से लेकर भ्रष्टाचार और आपसी विवादों में
उलझी हिमाचल, उत्तराखण्ड,पश्चिम बंगाल की सरकारों को सत्ता से बाहर का
रास्ता दिखानेका काम जनता ने बखूबी किया। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में
इसकी पुनरावृत्ति हुई है। जनता ने भ्रष्टसरकार को सत्ता से खदेडकर यह साफ
कर दिया है कि भ्रष्टाचार बर्दाशत नहीं होगा। 2014 के लोकसभा चुनाव से
पूर्व भ्रष्टाचार के विरूद्ध स्व निर्मित इस वातवरण ओर जनता के मूड ने
भ्रष्ट कांगे्रस नीति यूपीए सरकार को बैचेन कर दिया है। कांग्रेस के बड़े
नेताओं को लग रहा है कि जो कर्नाटक में भ्रष्टाचार के विरूद्ध बह रही हवा
अगर लोकसभा चुनाव तक चलती रही तो सत्ता उससे दूर हो जाएगी। एक ही दिन दो
सीनियर मंत्रियों को हटाकर कांग्रेस आलाकमान ने देश की जनता को हार्ड
मैसेज देने की कोशिश की है कि उसे भ्रष्टाचार किसी भी कीमत पर बर्दाशत
नहीं है। भ्रष्टाचारी को सजा मिलेगी भले ही वो किसी भी पद पर हो। अब यह
देखना है कि कांग्रेस के इस मैसेज को देश की जनता कितनी गंभीरता से समझती
है क्योंकि राजनीतिक दलों का गिरगट चरित्र और मगरमच्छी आंसू भी जनता को
बखूबी याद है।
-विजय शर्मा
1 thought on “कांग्रेस खेमे में खुशी से ज्यादा चिंता का माहौल”
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तुरंत सभी राष्ट्रवादी पेज और मित्रों ध्यान दें:
इस खबर पर हल्ला करें……क्यूंकि न्यूज़ मीडिया चेनल ये खबर नहीं दिखायेंगे…..
अभी तक का सबसे बड़ा खुलासा:
जब जेनरल वी.के.सिंह को जन्मतिथि के मामले में अपना पद छोड़ना पड़ा तो देश के सत्ता के
सर्वोच्च पदासीन मनमोहन सिंह को धोखेबाजी के आरोप में गिरफ्तार किया जाए…..
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की उम्र 80 साल है या फिर 82 साल. इस धोखेबाजी का खुलासा हुआ है
उनके उस हलफनामे से, जिसे उन्होंने असम से पांचवीं बार राज्यसभा चुनाव के लिए पर्चा भरने के
दौरान दाखिल किया है।
इस हलफनामे में भारत सरकार के सर्वोच्च पद पर बैठे मनमोहन सिंह, प्रधानमन्त्री, भारत सरकार के
पद पर बैठे ने अपनी उम्र 82 साल बताई है, जबकि 2007 में दाखिल दस्तावेज के हिसाब से
प्रधानमंत्री की उम्र करीब 80 साल होती है, जो प्रधानमंत्री कार्यालय की वेबसाइट पर उल्लिखित
पी.एम. की उम्र से मेल खाती है। इस वेबसाइट पर उनकी जन्मतिथि 26 सितंबर,1932 है, जिसका मतलब है कि कुछ महीने बाद वह 81 साल के हो जाएंगे। देशभक्त वकील मित्रगण इस बात को माननीय सुप्रीम कोर्ट की निगाह में लायें और इस पर तत्काल एक जनहित याचिका दाखिल करें……….!!!
वन्दे मातरम्….